चे ग्वेवारा मेडिकल डिग्री धारक चिकित्सक थे लेकिन कम्युनिस्ट क्रांतिकारी बन गये
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
चे ग्वेवारा(Che Guevara )मेडिकल डिग्री धारक चिकित्सक थे लेकिन कम्युनिस्ट क्रांतिकारी बन गये । जब क्यूबा में फिडेल कास्त्रो के नेतृत्व में बातिस्ता की तानाशाही को उखाड़ फेंका गया तो कास्त्रो के नेतृत्व में नई सरकार के गठन के लिये बैठक हुई । बैठक में कास्त्रो ने प्रश्न किया कि क्या हमारे बीच कोई इकोनॉमिस्ट है ? जवाब में चे ने अपना हाथ उठा दिया ।
कास्त्रो ने चे को बैंक ऑफ क्यूबा का प्रेसीडेंट नियुक्त करने की घोषणा की और चे के कंधे पर हाथ रख कर कहा कि हम लोगों ने इतने वर्षों तक साथ साथ रह कर सफल क्रांति की लेकिन मैं आज तक नहीं जान पाया कि तुम इकोनॉमिस्ट भी हो मैं तो तुम्हें डॉक्टर समझता था । बेचारे चे ग्वेवारा ने बड़े भोलेपन से कहा कि मैं शायद ठीक से सुन नहीं पाया मैंने समझा कि आप कम्युनिस्ट बोल रहे हो ।
ख़ैर बड़े अनमनेपन से चे ने बैंक का काम संभाला । करेंसी नोटों पर भी वह पूरे हस्ताक्षर नहीं करते थे , सिर्फ चे लिख कर कर्तव्य की इतिश्री कर लेते थे । बाद में क्यूबा की सरकार छोड़ कर वह पहले कांगो और फिर बोलीविया में क्रांति करने चले गये । बोलीविया में वह पकड़े गये और उन्हें गोली मार दी गई । क्रांतिकारियों का यह स्वाभाविक हश्र होता है ।
तालिबानी क्रांतिकारी मौलवी नुरुल्ला मुनीर भी बरसों क्रांति करने के बाद सरकार में मंत्री बने हैं । पहले वह अमेरिकी जेल ग्वांटेनामो बे में भी बंद रहे और क़ैदियों की अदला बदली में उन्हें छोड़ा गया । सत्ता में आने के बाद उनका पहला वक्तव्य आया है कि बड़ी बड़ी एमए पीएचडी जैसी डिग्रियों की कोई उपयोगिता नहीं है । देखिये हम मौलवियों के पास कोई डिग्री नहीं है और सरकार चला रहे हैं ।
बड़ी पते की बात कही है । जीवन में सफल होने के लिये पढ़ाई लिखाई की कोई उपयोगिता नहीं है । पैग़ंबर साहब स्वयं भी पढ़े लिखे नहीं थे । सम्राट अकबर निरक्षर था । पढ़ने लिखने से सफलता का क्या ताल्लुक ? गोली चलाना तो एक हुनर है । हुनर जानने वालों को डिग्री की क्या दरकार । जब मुल्क के सारे बाशिन्दों को जिहाद पर लगाना है तो उतनी ही पढ़ाई ज़रूरी है कि नमाज़ पढ़ सकें ।
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं,
आज ग़ालिब ग़ज़लसरा न हुआ
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)