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हिंदुओं पर आक्रमण इस्लाम का प्रिय शग़ल क्यों है ?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India: Rajkamal Goswami:
ऐसा भी नहीं है कि शेख़ हसीना का कोई जनाधार नहीं है । वे पंद्रह साल से सत्ता में थीं और इतने सालों में उन्होंने बांगलादेश को प्रगति के शिखर पर पहुँचा दिया । वस्त्र निर्यात में बांगलादेश दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुँच गया । सिलाई कढ़ाई का काम घर घर होने लगा और नाइका जैसी बड़ी बड़ी कम्पनियों से ऑर्डर मिलने लगे । मैं ऑस्ट्रेलिया गया था तो देखा वहाँ का टेक्सटाइल मार्केट मेड इन बांगलादेश उत्पादों से पटा हुआ था ।

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अवामी लीग की अपनी छात्र शाखा छात्र लीग भी है । किसानों मजदूरों पर भी अवामी लीग की पकड़ भी है । फिर यह सब हुआ कैसे ?

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याद कीजिये जब शाहीन बाग में धरना प्रदर्शन चल रहा था और उधर किसान आंदोलन चल रहा था । २६ जनवरी को खालिस्तानियों ने लाल किले पर घोड़े दौड़ा दिये और झंडा फहरा दिया । अगर ऐसे अवसर पर आंदोलनकारियों और पुलिस तथा सेना की मिलीभगत हो जाती तो मोदी अपनी तमाम लोकप्रियता के बावजूद सत्ता बचा न पाते । मोदी का समर्थक तो वैसे ही घरघुस्सू है वोट देने तक नहीं निकलता । किसान वेश में खालिस्तानी और पीएफआई वाले प्रधानमंत्री आवास में घुस जाते । पुलिस कहती गोलियाँ ख़त्म हो गईं और सेना जनता पर गोली चलाने से मना कर देती ।बांगलादेश जैसी दशा होते देर नहीं लगती ।

बांगलादेश में यही हुआ । आरक्षण आंदोलन की आड़ में जमाते इस्लामी ने भीड़ एकत्र ली और सेना की मिली भगत से हसीना को सत्ता से बेदख़ल कर दिया । संभलने का कोई मौका भी न दिया । हिंदुओं पर आक्रमण इस्लाम का प्रिय शग़ल है जिससे माले ग़नीमत हाथ आती है ।

लेकिन अवामी लीग और छात्र लीग भी सड़कों पर उतर आई है । हिंदू भी प्रतिकार कर रहे हैं । उधर अमेरिका ने लोकतांत्रिक देशों में सैन्य शासन बैठाने की अपनी नीति बदल दी है । अब सरकार कोई भी हो सेना की कठपुतली होनी चाहिये और सेना अमेरिका की कठपुतली होनी चाहिए । पाकिस्तान में वर्षों से यही चल रहा है । वहाँ सेना अब सीधे मार्शल लॉ नहीं लगाती बल्कि लोकतांत्रिक सरकार को अपनी मुट्ठी में रखती है ।

बांगलादेश में पाकिस्तान वाला मॉडल सफल नहीं होगा । यहाँ सबसे शक्तिशाली पार्टी अवामी लीग भारत की मित्र है । वैसे भी लोकतांत्रिक देशों में विपक्ष कितना भी कमज़ोर हो देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

बांगलादेश को देर सवेर चुनाव कराने होंगे उससे पहले शेख़ हसीना को चुनाव के अयोग्य ठहराने की कोशिश की जायेगी । लेकिन फिर आईएसआई रॉ और सीआईए की भूमिका शुरू होगी । भारतीय सेना का सीधा हस्तक्षेप न हो तो भी उसकी उपस्थिति ही पलड़ा भारत की तरफ़ झुकाने के लिए काफ़ी है ।

ये नेपाल बांगलादेश और भूटान जैसे पड़ोसी भारत के विरोध में लंबे समय तक नहीं रह सकते । बांगलादेश तो चारों तरफ़ भारत से धिरा है । यदि कभी सैन्य हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ी तो एक सप्ताह से अधिक वह हमारे सामने नहीं टिक सकता ।

मगर भारत को इस नई रणनीति से बहुत सावधान रहने की जरूरत है । बांगलादेश शैली की क्रांति यहाँ कभी भी घटित हो सकती है । मोदी समर्थकों को ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए स्वयं को तैयार रखना चाहिये । टूल किट के इरादे नेक नहीं हैं ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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