नसीरुद्दीन शाह के नाम पर सिनेमा हॉल पहुँचने वाले दर्शकों की संख्या भारत में शुतुरमुर्गों जितने क्यों है?
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
यह संयोग ही है कि मुझे न कभी मुल्ला नसरुद्दीन की बी ग्रेड हास्य कहानियां पसन्द आईं, न नसीरुद्दीन शाह का अभिनय ही पसन्द आया। और ऐसा केवल मेरे ही साथ नहीं है, नसीरुद्दीन शाह के नाम पर सिनेमा हॉल पहुँचने वाले दर्शकों की संख्या उतनी ही होगी जितने भारत में शुतुरमुर्ग होंगे…
कुछ फिल्में समीक्षकों के लिए बनती हैं। आम दर्शक उसकी ओर पलट कर भी नहीं देखते। बस किसी बन्द कमरे में बैठ कर कुछ बुद्धिजीवी उसपर आह-वाह करते हैं। अभिनेताओं की जयजयकार होती है, और बात खत्म हो जाती है। महान समीक्षकों की समीक्षाएं दस लोगों को भी सिनेमा हॉल तक नहीं पहुँचा पाती हैं। नसरुद्दीन भाई वैसी ही फिल्मों के अभिनेता रहे हैं।
आप बहुत अच्छे लेखक हों और आपका लिखा कोई न पढ़े, आप महान कवि हों और आपकी कविता कोई न सुने, तो आपके लेख और कविता का कोई मूल्य नहीं। उसे डायरी के पन्नों में दब कर मर जाना होगा। लगभग ऐसा ही अभिनय के मामले भी है। आप कमाल के अभिनेता हैं और कोई आपको देखना ही नहीं चाहता। क्या मूल्य है उस अभिनय का?
आम दर्शकों के बीच में नसीरुद्दीन शाह का परिचय सहायक अभिनेता के रूप में है। आप हजार बार सरफरोश के मकबूल हसन की चर्चा कीजिये, पर सच यही है कि वह फ़िल्म आमिर खान के नाम पर चली थी। हम क्रिस के सिद्धांत आर्या की खूब बड़ाई कर लें, पर यह सच नहीं बदलेगा कि दर्शक रित्तिक को देखने पहुँचे थे। नसीरुद्दीन थाली के कोने में पड़ी उस स्वादिष्ट चटनी की तरह रहे जो भात दाल के साथ थोड़ी सी खा ली जाती है। पर चटनी कभी अकेले भोजन नहीं बनती।
दरअसल उनके एनएसडी वाले चेलों ने नसीरुद्दीन की इतनी बड़ाई कर दी, कि उन्हें लगने लगा वे अभिनय के शहंशाह हैं। वे जिसे चाहें बेहतर और जिसे चाहें बेकार बता सकते हैं। इस लोकतांत्रिक देश में ऐसा कोई भी कर सकता है। पर जनता उसे ही स्वीकार करती है जो उसे पसन्द आता है। उसके सामने नसीरुद्दीन की किसी बात का कोई मूल्य नहीं।
रही बात अमिताभ बच्चन की, तो उनका कद इतना विराट है कि नसीरुद्दीन का फेंका हुआ कोई पत्थर उनतक पहुँच ही नहीं सकता। और ना ही वे किसी एक छोटे लेख में अंटने वाले हैं। और राजेश खन्ना? लगातार पन्द्रह सुपरहिट फिल्म देने वाले इकलौते अभिनेता थे वे… नसीर का पूरा कैरियर उनकी किसी एक फ़िल्म से छोटा निकलेगा।
साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।