Positive India: Sushobhit:
जिस तरह से वामियों के इकोसिस्टम ने एकजुट होकर सुशोभित को घेरा, उसका नाम लेकर पोस्टें लिखीं, प्रवाद किया, उसने इन पंक्तियों के लेखक सहित कइयों को चकित किया होगा।
आखिर कौन हूं मैं और मुझे इतना महत्त्व क्यों दिया गया? किसी नियतिवंचित-नगण्य पर तो हिन्दी के ये चतुरसुजान इतनी कृपा नहीं करते, अपनी तवज्जो के फूल उस पर नहीं बरसाते! मुझसे किस प्रकार का खतरा या असुरक्षा उन्हें महसूस होती है, जो उन्होंने एकजुट होकर नामजद प्रहार किया? और यह पहली बार नहीं है। अतीत में भी ऐसा हो चुका है।
मेरी कोई राजनैतिक या अकादमिक संबद्धताएं तो हैं नहीं, न ही मैं किसी प्रभावी पद पर हूं। मेरी किताबें ज़रूर बहुत छपती और पढ़ी जाती हैं, तो क्या उस बात की ईर्ष्या है? क्योंकि मैं देख रहा था कि प्रकाशकों से मेरा बहिष्कार करने की मांग की जा रही थी। शायद उन्हें नहीं पता कि प्रकाशक उसके पक्ष में होते हैं, जिसके साथ पाठक हों!
बड़े मज़े की बात है कि उन्होंने मुझे वह साबित करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया, जो कि मैं वस्तुतः हूं नहीं। कोई भी साधारण बुद्धि का व्यक्ति मेरी टाइमलाइन को खंगालकर या मेरी किताबों के पन्ने उलटकर यह मालूम कर सकता है कि मैं कई वर्षों से क्या सोचता और लिखता रहा हूं, कि मेरे राजनैतिक विचार विशेषकर इन लोकसभा चुनावों के दौरान क्या थे, कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर मेरा क्या मत है, कि महात्मा गांधी पर अपनी पुस्तक में मैंने पांच वर्ष पूर्व क्या लिखा था जिस पर तभी से कायम हूं, कि मैं अपने आपको एथीस्ट और कॉस्मोपॉलिटन क्यों कहता हूं, कि मेरे रचनात्मक लेखन में किस तरह की अर्थछटाएं प्रकट होती हैं आदि।
चोर-चोर चिल्लाने से आप भीड़ तो इकट्ठा कर सकते हो, लेकिन किसी को जबरन चोर नहीं साबित कर सकते। हां, अपने मन का चोर अवश्य उजागर कर सकते हो!
ऐसा कौन-सा डेस्पेरेशन था, जो हिन्दी के इतने सारे होनहार एक साथ टूट पड़े और वह भी उस किताब के लिए जिसे उन्होंने अभी पढ़ा तक नहीं है, न कभी पढ़ेंगे। जानवरों के हित में बात करना और शाकाहार की आवाज़ बुलन्द करना उन्हें इतना क्यों खटक गया कि चिन्दी-चोर की तरह एक रैंडम स्क्रीनशॉट पर समवेत होकर झूल उठे?
याद रहे, किसी व्यक्ति का मूल्यांकन अगर किया जायेगा तो फ्रैगमेंट्स में नहीं, टोटलिटी में किया जाएगा और मेरी टोटलिटी मेरी २० छपी हुई किताबें हैं, उनसे सिर फोड़े बिना आप मुझे जज नहीं कर पायेंगे! न ही आप यह कह पायेंगे कि हम आपको इतना महत्त्व नहीं देते कि आपकी पुस्तकें पढ़ें। महत्त्व तो दुर्भाग्य से आप मुझे पहले ही अतिशय दे चुके हैं, और स्वेच्छा से दे चुके हैं! बीते दो दिन में मेरे एक हज़ार फॉलोअर्स बढ़ गए और मेरी नई किताब की बिक्री में तेज़ी से इज़ाफ़ा हो गया। हानि अंत में किसकी हुई?
Courtesy:Sushobhit-(The views expressed solely belong to the writer)