वो बच्चा जिसे वैष्णों माता की यात्रा के दौरान बस रोक कर आतंकियों ने मार दिया।
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
उस लड़के की तस्वीर देखी आपने? वही दो-तीन साल का छोटा बच्चा, जिसे वैष्णों माता की यात्रा के दौरान बस रोक कर आतंकियों ने मार दिया। आपने देखा? नहीं देखे होंगे जी। बच्चा सीरिया, तुर्की या फिलिस्तीन का होता तो आज भारतीय बुद्धिजीवी तड़प उठे होते, और हम आप भी उसपर प्रतिक्रिया दे रहे होते, पर इसके लिए कहीं कोई संवेदना नहीं है।
चार दिन पहले भारत के सैकड़ों प्रभावशाली लोग फिलिस्तीन के लिए रो रहे थे। ऑल आइज आर फलाँ फलाँ… सिनेमा की अभिनेत्रियां, खिलाड़ियों की पत्नियां… सबकी प्रोफ़ाइल उस तस्वीर से भर गई थी। इस बच्चे के लिए कहीं कोई संवेदना नहीं, कहीं कोई शोक नहीं, प्रतिक्रिया का कोई स्वर नहीं… जबतक सामने टुकड़े न फेंके जाय, तबतक वे क्यों बोलेंगे? उनके लिए तो संवेदना भी धंधा ही है।
पर हम आप क्या कर रहे हैं? हमारे वे प्रतिनिधि क्या कर रहे हैं जिन्हें अभी कल ही चुना है हमने! किसी की वाल पर दिखी उस बच्चे की तस्वीर? हिंदुत्व केवल वोट के समय याद आएगा? राष्ट्र की सुरक्षा केवल चुनावी विषय है क्या?
अवैध तरीके से किसी देश में घुसने का प्रयास करते लोग जब नाव पलट जाने के कारण डूब गए, तो उनके एक बच्चे की तस्वीर दिखा कर समूची मानव जाति को दोषी करार देते रहे लोग! उस बच्चे की तस्वीर आपके फोन में भी होगी कहीं… पर इस बच्चे को उसी के देश में मार दिया गया है, और कहीं कोई चर्चा नहीं…
चार लोगों द्वारा सरकार से सवाल पूछ कर चुप हो जाने से काम नहीं चलता दोस्त! और सरकार से ही कितने लोग पूछ रहे हैं? वह तस्वीर कितनों की प्रोफाइल पर लगी है? उस विषय पर कितने लोग बोल रहे हैं?
देखिये! आपको इस घटना के लिए जो भी दोषी लगे उससे ही सवाल पूछिये, पर पूछिये। यदि फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत भर में हल्ला हो सकता है, तो भारत के मुद्दे पर क्या हम सवाल भी नहीं पूछ सकते?
मैं किसी को कठघरे में खड़ा नहीं कर रहा, आप खुद तय करिए। मैं बस यह कह रहा हूँ कि बोलिये। अगर इस बच्चे के लिए नहीं बोल पा रहे हैं आप, तो फिर विचारधारा और राष्ट्र, सुरक्षा, भविष्य आदि बेकार बातें हैं। कोई मतलब नहीं है आपकी किसी भी बात का…
बोलो दोस्त! उस बच्चे के लिए नहीं, अपने लिए। अपने भविष्य के लिए! अपने देश के लिए! वरना किसी भी मुद्दे पर तुम्हारे बोलने का कोई अर्थ नहीं।
साभार: सर्वेश कुमार तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)