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भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी !

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी ! समय बता रहा है कि त्रेता की इस आधुनिक और चुनावी अयोध्या में लगी आग शायद द्वापर का अर्जुन ही बुझाए। ऐसे जैसे कभी शर-शैया पर लेटे गंगा पुत्र भीष्म की प्यास तीर मार कर अर्जुन ने ही बुझाई थी। दरअसल आज सेंट्रल हाल से एक बड़ी ख़बर यह मिली है कि अठारहवीं लोकसभा को प्रधानमंत्री के रूप में अभिमन्यु नहीं अर्जुन मिला है। कौरवों के सारे चक्रव्यूह तोड़ कर लोकतंत्र में गहरी आस्था जगाने के लिए। देश के चौतरफा विकास ख़ातिर यह अर्जुन कुछ भी करने के लिए बेक़रार दिखता है। वह अर्जुन जो कृष्ण नीति से चलता है। तीसरी अर्थव्यवस्था जैसी बहुत बड़े-बड़े काम करने का अब भी दम भरता है। मोदी ने अपने भाषण में इंडिया गठबंधन पर जैसे मिसाइल पर मिसाइल दागे। तेजाबी मिसाइल। आंकड़ों के आइने में कांग्रेस को उतार कर किसी धोबी की तरह पीट-पीट कर धोया। ऐसे जैसे सर्जिकल स्ट्राइक हो। कांग्रेस अभी तक निरुत्तर है। सहयोगी दलों को एड्रेस करते हुए मंत्री आदि मामलों में भी न झुकने का संकेत देते हुए मोदी ने स्पष्ट बता दिया है कि कामकाज और सरकार तो वह अपनी शर्तों पर ही चलाएंगे।

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पर क्या सचमुच ?

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लगता तो है। क्यों कि जो धुंध कल तक एन डी ए के सहयोगी दलों की तरफ से छाई थी , तात्कालिक रूप से यह धुंध अब छंटी हुई दिखती है। और तो और इंडिया गठबंधन में रहते हुए भाजपा और नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत में लंगड़ी मारने वाले नीतीश कुमार ने मंच पर अपने उदबोधन के बाद अनायास और अचानक नरेंद्र मोदी के पांव छू कर न सिर्फ़ इस लंगड़ी मारने का प्रायश्चित किया है बल्कि यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि अब वह और पलटी नहीं मारेंगे। अलग बात है कि लोग भूल गए हैं कि नीतीश पहले भी मोदी को बैठे-बैठे प्रणाम कर चुके हैं। आज खड़े हो कर कर दिया। भावुकता में , सम्मान में हो जाता है ऐसा भी। इस बात को तिल का ताड़ बनाना ठीक नहीं। मोदी के पांव तो आज चिराग़ पासवान ने भी छुए। और भी कुछ लोगों ने। सब के सब विनयवत रहे। यहां तक कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तो आज मोदी को दही-चीनी खिलाया अपने हाथ से राष्ट्रपति भवन में। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद भी मोदी को मिठाई खिलाते दिखे आज।

बहरहाल , आप पूछ सकते हैं कि नीतीश कुमार ने भाजपा की हाहाकारी जीत में लंगड़ी कैसे मारी है ?

याद कीजिए जातीय जनगणना की क़वायद। शुरुआत नीतीश कुमार ने ही बिहार से की थी। बिहार विधान सभा से इस जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास करवाया। जातीय जनगणना करवाई। आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए। पर इसी बिना पर बिहार में 75 प्रतिशत आरक्षण भी लागू कर दिया। इसी दौरान विधान सभा में लड़का-लड़की के शादी के बाद वाला अश्लील बयान भी नीतीश का आया था। दरअसल यह जातीय जनगणना का दांव नीतीश कुमार ने बहुत सोच समझ कर चला था। भाजपा ने जो बड़ी मेहनत से मंडल-कमंडल का वोट बैंक 2014 और 2019 में एक किया था और चौतरफा लाभ लिया था। 303 सीट इसी बल पर लाई थी भाजपा। मंडल-कमंडल का वोट एक करना मतलब अगड़ा-पिछड़ा वोट बैंक एक कर हिंदू वोट बैंक खड़ा करना। इसी हिंदू वोट बैंक के चक्कर में मुस्लिम वोट बैंक ध्वस्त हो गया था।

तो जातीय जनगणना एक ऐसा दांव था जिस ने अगड़े-पिछड़े वोट बैंक को तितर-बितर कर दिया। आप याद कीजिए अखिलेश यादव और कांग्रेस पोषित यू ट्यूबर अजित अंजुम को। जो बीते विधान सभा चुनाव में अकसर गांव-कस्बे में कुछ औरतों को घेरते और पूछते रहते थे कि किस जाति से हो ? संयोग से वह औरतें कहतीं हिंदू। बहुत कुरेदने पर भी वह औरतें जाति नहीं बताती थीं। अजित अंजुम निराश हो जाते थे। एक समय रवीश कुमार भी कौन जाति हो का सवाल लिए घूमते रहते थे। तो रणनीति बनी जातीय जनगणना की। प्रयोगशाला बना बिहार। जो पहले ही से जातीय दुर्गंध से बदबू मारता है।

लालू , नीतीश की बिहार की सारी राजनीति ही जातीय नफ़रत और घृणा की ताक़त पर है। नक्सल कांग्रेसी बन चुके राहुल और यादवी राजनीति के सूरमा अखिलेश यादव ने इस लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना का बिगुल बजा दिया। आंख में धूल झोंकने के लिए नाम दिया पी डी ए। अपने को चाणक्य बताने वाले , सोशल इंजीनियरिंग के अलंबरदार अमित शाह पी डी ए के जाल में कब फंस गए , जान ही नहीं पाए। गरीबों के लिए लोक कल्याणकारी योजना चलाने वाली केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने इस जातीय जनगणना के खेल को भी समय रहते समझा नहीं। मंडल-कमंडल के वोट इस जातीय जनगणना के व्यूह में कब तार-तार हो गए , चाणक्य लोग जान ही नहीं पाए। अयोध्या , चित्रकूट हाथ से निकल गया। अमेठी , रायबरेली , सुलतानपुर समेत आधा उत्तर प्रदेश निकल गया। बनारस जैसे-तैसे जाते-जाते बचा है।

जातीय जनगणना की हवा में आग यह लगाई गई कि भाजपा संविधान बदल कर आरक्षण ख़त्म कर देगी। और उत्तर प्रदेश की ज़्यादातर सीटें निकल गईं भाजपा के हाथ से तो यह वही रसायन है। वही केमेस्ट्री है। उत्तर प्रदेश ही नहीं , बिहार , महाराष्ट्र , बंगाल हर कहीं यह केमेस्ट्री काम आई और 400 की लालसा लिए भाजपा और सहयोगी दल औंधे मुंह गिरे। मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , हिमाचल जैसे प्रदेशों में जाने कैसे मंडल-कमंडल साथ रह गए तो भाजपा की जैसे-तैसे लाज बच गई। नीतीश कुमार एन डी ए में न आए होते तो भाजपा का जाने क्या हाल हुआ होता। याद कीजिए इस बाबत अमित शाह का एक डाक्टर्ड वीडियो भी कांग्रेसियों ने जारी किया था। भाजपा ने क़ानूनी एफ आई आर , कुछ गिरफ्तारी आदि से इतिश्री कर ली। लेकिन आरक्षण ख़त्म करने की आग सुलगती रह गई , भीतर-भीतर। भाजपा ज़मीन पर गई नहीं। गांव-गांव यह वीडियो फ़ैल चुका था। एल आई यू भी सोई रही। मीडिया भी। असल में आरक्षण ऐसी बीमारी है जिस के आगे राम , कृष्ण , शंकर सब फ़ालतू हैं। राम नहीं आरक्षण चाहिए। कान नहीं , कौआ चाहिए। जैसे मुसलमान को देश नहीं इस्लाम चाहिए , दलित और पिछड़ों को राम , कृष्ण , शंकर नहीं , आरक्षण चाहिए। बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अब आप मुफ्त अनाज रोकने की हैसियत में नहीं हैं। गैस भी आप को देना है , शौचालय भी और पक्का मकान भी। एक बार रोक कर देखिए , आग लग जाएगी देश में।

क्यों कि जैसे कभी नक्सली वामपंथी होते थे , अब नक्सल कांग्रेसी हो चले हैं। समूची कांग्रेस की जुबान अब नक्सली हो गई है। जुबान ही नहीं , सारी गतिविधियां भी। राहुल ही नहीं , सारे प्रवक्ता भी। आप अवसर तो दीजिए। यह दोनों मिल कर आग लगाने को तैयार बैठे हैं। राहुल की कुतर्की आक्रामक शैली , और गाली-गलौज की भाषा , कांग्रेस की भाषा नहीं है। नक्सलियों की भाषा है। कांग्रेसियों को बड़ी शिकायत रहती है कि नरेंद्र मोदी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते। हां , राहुल गांधी जब तब प्रेस कांफ्रेंस करते रहते हैं। किसी असहमत प्रश्न पर फौरन भड़कते हैं। कहते हैं यह तो भाजपा का सवाल है। और उस रिपोर्टर पर आक्रामक हो जाते हैं। ताज़ा मसला आज तक की मौसमी सिंह का है। मौसमी सिंह राहुल गांधी की प्रिय रिपोर्टर रही हैं। सालों से। कुछ पत्रकार उन्हें कांग्रेस की गोद में बैठी पत्रकार का तंज भी कसते रहे हैं , बतर्ज़ गोदी मीडिया।

ख़ैर जातीय जनगणना ने भाजपा की अयोध्या में जो आग लगाई है। अगर इस आग को समय रहते नहीं बुझाया भाजपा ने तो 2027 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में साफ़ हो जाएगी।

जो भी हो आज की तारीख़ में सारा राजनीतिक मंज़र मोदी के पक्ष में है। नीतीश ही नहीं , नायडू समेत सभी सहयोगी दल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक सुर से साथ खड़े दीखते हैं। समर्पित भाव में। नीतीश ने अपने उदबोधन में यहां तक कह दिया कि अगली बार जब आइएगा तो जो कुछ लोग इधर-उधर जीत गए हैं , वह सब भी हार जाएंगे। नीतीश का इशारा तेजस्वी की तरफ था। नीतीश तो और दो क़दम आगे जा कर बोल रहे हैं कि जल्दी काम शुरू कीजिए। यानी तेजस्वी को जेल भेजिए।

नीतीश कुमार का सहसा नरेंद्र मोदी का पांव छूना बताता है कि लालू और तेजस्वी से बिहार में वह बहुत आजिज हैं। नरेंद्र मोदी की राजनीतिक छांव की उन्हें बहुत ज़रूरत है। मोदी को नीतीश की ज़रूरत कम , नीतीश को मोदी की ज़रूरत ज़्यादा है। जो भी हो नीतीश और नायडू समेत सभी सहयोगी दल अब इंडिया गठबंधन के खिलाफ न सिर्फ एकजुट हैं बल्कि फ़ायर के मूड में हैं। देखिए कि यह मंज़र कब तक बना रहता है।

क्यों कि समय तो सर्वदा बदलता रहता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता। सब कुछ बदलता रहता है। पर राजनीति इतनी तेज़ बदलती है कि कई बार लगने लगता है कि घड़ी की सूई कहीं पीछे तो नहीं रह गई इस राजनीति से। राजनीति और वह भी नरेंद्र मोदी की राजनीति। मोदी निरंतर कपड़े बदलते रहते हैं। एक-एक दिन में आधा दर्जन बार कपड़े बदल लेते हैं। एक समय मनमोहन सरकार में गृह मंत्री शिवराज पाटिल भी निरंतर कपड़े बदलने के लिए जाने गए थे। पर मोदी उन से बहुत आगे हैं। फिर वह कपड़े से ज़्यादा अपना गोल बदलते रहते हैं।

एक पुराना क़िस्सा याद आता है।

एक कुम्हार अपने चाक पर घड़ा बना रहा था। अचानक मिट्टी बोली , कुम्हार , कुम्हार यह क्या कर रहे हो ? कुम्हार हैरत में पड़ गया। बोला , माफ़ करना हमारा ध्यान बदल गया था। मिट्टी बोली , तुम्हारा तो सिर्फ़ ध्यान बदल गया था , हमारी तो दुनिया बदल गई। घड़ा बनना था , सुराही बन गई।

राजनीति की दुनिया भी कई बार ऐसे ही बदल जाती है। मतदाताओं का ज़रा सा ध्यान बदलते ही देश घड़े की जगह सुराही या सुराही की जगह घड़ा बन जाता है। क्यों कि लोगों को आरक्षण और इस्लाम चाहिए होता है। जाति और भ्रष्टाचार चाहिए होता है। देश नहीं। देश का विकास नहीं। निजी स्वार्थ सर्वोपरि है मतदाता का भी। देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति का यह अर्जुन भाजपा की अयोध्या में लगी आग बुझा पाता है कि ख़ुद इस में झुलस जाता है।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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