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इस एंटी मोदी स्क्वॉड के क्या कहने !

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
इस एंटी मोदी स्क्वॉड के क्या कहने ! यह मोदी को हरा कर ही मानेंगे। मोदी की जीत की सुनामी को तहस-नहस कर के ही मानेंगे। ठाना तो यही है। इस एंटी मोदी स्क्वॉड में राजनीतिक पार्टियों के लोग तो भर्ती हैं ही , तमाम लेखक , पत्रकार और बुद्धिजीवी भी इन के अल्सेशियन बन कर , लंगोट पहन कर झूठ के अखाड़े में कूदे पड़े हैं। एंटी मोदी स्क्वॉड के यह लोग जब देखिए तब युधिष्ठर बने रहते हैं। अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा ! का भ्रम भूजते हुए अपने फ्रस्ट्रेशन की नित नई रोटी सेंकते रहते हैं। फिर इस एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियनों की जब देखिए , तब कांग्रेसी हड्डी या वामी हड्डी की पार्टी चलती रहती है। उदाहरण अनेक हैं। पर यहां अभी दो ही उदाहरण। पहला उदाहरण हर आदमी के खाते में पंद्रह लाख रुपए आने का है। यह 2014 का मामला है। सच यह है कि नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विदेशों में देश का काला धन इतना ज़्यादा है कि अगर वापस आ जाए तो हर किसी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख आ जाएगा। मोदी ने कहा था , अगर वापस आ जाए तो इतना धन आ जाए कि सब के खाते में पंद्रह लाख आ जाए। यह मात्र उस काले धन का आकलन था , सब के खाते में डालने का आश्वासन नहीं। पर कान ले गए कौवे के पीछे भागने का जो यह अभ्यास है , बहुत मुश्किल से छूटता है। आज तक इस कौवे के पीछे भाग रहे हैं यह एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियन।

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पूरे विश्वास के साथ एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियन ले उड़े हैं इस पंद्रह लाख को। अब दस साल बीत जाने पर भी अपने खाते में पंद्रह लाख की प्रतीक्षा में विक्षिप्त हैं। जब देखिए तब पंद्रह लाख की माला जपते रहते हैं। इन दस सालों में अगर मेहनत से काम किए होते तो पंद्रह लाख तो क्या पंद्रह करोड़ भी कमा कर अपने खाते में जमा कर सकते थे। पर कोढ़ में खाज की तरह यह पंद्रह लाख की खुजली मुसलसल जारी है। तिस पर मोदी के नंबर दो अमित शाह ने मज़ा लेते हुए कह दिया कि यह पंद्रह लाख तो एक जुमला था ! अब अमित शाह के इस जुमले वाले डायलॉग को भी एंटी मोदी स्क्वॉड ने खट से कैच कर लिया। इन दस बरसों में समंदर में जाने कितनी नदियों का पानी मिल गया। मीठे से खारा हो गया पानी पर एंटी मोदी स्क्वॉड के चैंपियंस के खातों में पंद्रह लाख की मिठास नहीं आई , जो नहीं ही आनी थी। एंटी मोदी स्क्वॉड की टीम को लगता है कि इस नैरेटिव से वह मोदी की सत्ता को उखाड़ फेकेंगे। जनता को इतना मूर्ख समझना भी इन की बलिहारी है।

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दूसरा उदाहरण :

एंटी मोदी स्क्वॉड ने अब एक नया अश्वत्थामा फिर मारा है। बतर्ज पंद्रह लाख महात्मा गांधी आ गए हैं। आप वह क्लिपिंग देखिए न कभी। जिस में मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि जब गांधी फ़िल्म बनी तब दुनिया में ज़्यादा लोगों ने गांधी को जाना। क्या यह काम हम नहीं कर सकते थे ? नरेंद्र मोदी ने यह पूछा है। उन के पूछने का आशय यह है कि किसी भारतीय फ़िल्म निर्देशक ने बहुत पहले यह काम क्यों नहीं किया। किया तो आज तक नहीं है। यह तो ठीक बात है। इस में ग़लत बात क्या है। अब एंटी मोदी स्क्वॉड के खूंखार अल्सेशियन तो जैसे झपट पड़े। कि बताइए फ़िल्म नहीं बनती तो गांधी पैदा ही नहीं होते ? गांधी को लोग जानते ही नहीं ?

एंटी मोदी स्क्वॉड का यह अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा ! का ड्रामा अब इतना बचकाना हो चला है कि बस ऐसा नैरेटिव बनाने वालों की मानसिक ख़ुराक़ बन कर रह गया है। यह लोग ख़ुद ही पाद कर ख़ुद ही हंसने का खेल खेलने में इतने शिशुवत हो गए हैं कि भारतीय मतदाता अब इन्हें बालिग़ मानने से इंकार कर इन के पक्ष में वोट नहीं डालते। लगातार दस बरस से यह लोग राहुल गांधी के हमराह बने हुए हैं। एक सॉलिड मुस्लिम वोट बैंक के बूते यह लोग कब तक देश को मारीच बन कर धोखा देते रहेंगे भला ! वह मुस्लिम वोट बैंक जिस का मिथ 2014 में ध्वस्त हो चुका है। फिर भी बच्चों वाले खेल के खोल से बाहर निकलने में इन्हें डर लगता है। ऐसे जैसे मोगली हो गए हैं। याद कीजिए एक पुराने टी वी सीरियल में मोगली नाम का बच्चा जंगल में जानवरों के साथ पला-बढ़ा। बाद में जब उसे मनुष्यों के साथ रहना पड़ा तो उस को मुश्किल हो गया। वह जंगल के अपने साथी जानवरों को मिस करने लगा। जंगल-जंगल बात चली है पता चला है / चड्ढी पहन कर फूल खिला है गाना ख़ूब मशहूर हुआ था। तो जाने कब राहुल गांधी इस गाने से बाहर निकलेंगे। राहुल तो राहुल , समूचा विपक्ष इसी त्रासदी से दो-चार है। चाहिए कि तमाम फोटो सेशन के तलबगार राहुल गांधी चरखे पर सूत कातना शुरू करें। इस से उन में धैर्य धारण करने का सलीक़ा आएगा। सत्य और अहिंसा का भाव भी शायद आ जाए। मोटर साइकिल की मरम्मत , बढ़ई का काम , धान रोपने जैसे काम के फ़ोटो सेशन से बेहतर होगा। गांधी को समझने का रास्ता मिलेगा। एंटी मोदी स्क्वॉड का फर्जी मूवमेंट चलने से भी फुरसत मिले शायद।

यह सही है कि 1982 में ब्रिटिश डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो निर्देशित जब गांधी फ़िल्म आई और बेन किंग्सले ने गांधी की भूमिका में गांधी का अनूठा अभिनय परोसा तो दुनिया ने गांधी के बारे में ठीक से जाना। गांधी का डंका पहले से बजता था , और ज़्यादा बजने लगा। गांधी को तो लोग जानते थे। पर गांधी का नाम , उन का सत्य , उन की अहिंसा जैसी बातें , उन के जीवन के बारे में , उन के संघर्ष के बारे में लोग ठीक से नहीं जानते थे। इतना नहीं जानते थे। न जानने वाले अभी भी ठीक से नहीं जानते। गांधी नामधारी सोनिया , राहुल और प्रियंका तो अभी भी गांधी के बारे में ठीक से नहीं जानते। कभी कोई इन लोगों से गांधी के बारे में बात कर के देख तो ले। गांधी की खादी तक तो अब यह लोग पहनते नहीं। गांधी की टोपी भी नहीं जानते। गांधी का सत्य और अहिंसा का पाठ भी इस गांधी परिवार से कोसो दूर है। गांधी का सत्य और अहिंसा जानते तो रोज इतना झूठ न बोलते। हार-हार जाते पर लोगों को बरगलाते नहीं। जातीय जनगणना की नफ़रती बात नहीं करते। हां , दुर्भाग्य से राहुल गांधी और उन की आज की कांग्रेस मुस्लिम वोट ख़ातिर गांधी का मुस्लिम तुष्टिकरण ज़रूर जानते हैं। दिन-रात इसे ओढ़ते-बिछाते हैं।

अलग बात है कि गुजराती नरेंद्र मोदी भी गुजराती महात्मा गांधी के विचारों को ओढ़ते-बिछाते नहीं हैं। गांधी के विचार और सिद्धांतों से कोसों दूर रहते हैं। बस जब तब गांधी का नाम लेते रहते हैं। बस। गांधी के सत्य और अहिंसा का पाठ अब किताबों और कुछ गांधीवादी विचारकों के विमर्श तक सीमित रह गया है। महात्मा गांधी मार्ग भी अब हर जगह एम जी मार्ग हो गया है। दिल्ली में गांधी समाधि अरविंद केजरीवाल जैसे भ्रष्ट लोगों की आड़ बन कर रह गया है। कुछ विदेशी मेहमानों द्वारा औपचारिक तर्पण और कुछ संस्थानों के नामकरण में ही शेष रह गया है , गांधी नाम। राजनीति में जहां सब से ज़्यादा ज़रूरत है गांधी की , वहां मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी का अवशेष भी अब समाप्त हो चला है। गांधी नाम का खंडहर भी अब पहचान में नहीं आता। बहुत नज़दीक से भी नहीं। नेहरू जो गांधी के सब से प्रिय रहे , उन नेहरू ने ही गांधी की सब से ज़्यादा उपेक्षा की। प्रधान मंत्री बनते ही गांधी की सभी नीतियों को नाबदान में डाल दिया। स्वदेशी , अहिंसा , सत्य , कुटीर उद्योग आदि सब को तिलांजलि दे दी। वामपंथियों ने तो गांधी को सर्वदा दुश्मन ही माना। उन की सशस्त्र क्रांति के आड़े आ जाती थी गांधी की अहिंसा और सत्य की बात। गांधी को मानते तो नक्सल मूवमेंट होता ही नहीं कभी। मुसलमान भी गांधी को मानते होते तो कश्मीर को जहन्नुम न बनाते। आतंक की फसल देश भर में नहीं काटते। पश्चिम बंगाल और केरल में हिंसा का तांडव नहीं करते।

गांधी जब गोलमेज कांफ्रेंस में लंदन गए तो जार्ज पंचम ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। गांधी एक धोती पहने और उसी को लपेटे , मामूली चप्पल पहने पहुंचे। सूटेड-बूटेड सर्दी में कांप रहा जार्ज पंचम यह देख कर चकित हुआ। गांधी से पूछा , आप के कपड़े कहां हैं ? गांधी ने छूटते ही कहा , मेरे और मेरे देशवासियों के कपड़े आप ने लूट लिए हैं। ठीक इसी तरह कांग्रेस ने अपने लंबे कार्यकाल में देश को बुरी तरह लूटा है। कंगाल बनाया है।

आप सभी को याद होगा कि योगी आदित्यनाथ जब 2017 में मुख्यमंत्री बने थे तब योगी ने उत्तर प्रदेश में एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाया था। अखिलेश यादव के राज में लव जेहाद की जैसे सुनामी आई हुई थी। तमाम हिंदू लड़कियों को मुस्लिम लड़के हिंदू बन कर फंसाते थे। प्यार का ड्रामा करते थे। फिर धर्म परिवर्तन करवा कर निकाह पढ़वाते थे। फिर इन लड़कियों को बेच भी देते थे। इस काम में इन लड़कों को अच्छी खासी फंडिंग मिलती थी। तो ऐसी लड़कियों को बचाने के लिए योगी ने एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाया। काफी मुस्लिम लड़के तब पकड़े गए थे। लगातार पकड़े गए। अंतत: उत्तर प्रदेश में लव जिहाद पर भारी अंकुश लग गया। एंटी रोमियो स्क्वॉड से भयभीत ऐसे अराजक लोगों का खात्मा हो गया। लव जिहाद के मामले अब इक्का-दुक्का ही सामने आते हैं। अखिलेश यादव राज के समय की लव जिहाद की सुनामी लगभग चली गई।

तो इसी तर्ज़ पर मोदी की जीत की सुनामी को रोकने के लिए , मोदी राज को समाप्त करने के लिए एंटी मोदी स्क्वॉड का गठन हुआ है कोई दस सालों से। पहले इस का नाम यू पी ए था , अब इंडिया है। इस एंटी मोदी स्क्वॉड में कांग्रेसी , वामपंथी , सपाई , राजद टाइप के तमाम सेक्यूलर रसगुल्ले एक साथ सक्रिय हैं। सोशल मीडिया पर माहौल बनाने के लिए एन जी ओ धारी सेक्यूलर लेखक , पत्रकार बुद्धिजीवी शामिल हैं। ख़ास माइंड सेट के तहत एक कहता है हुआं ! फिर सुर में सुर मिला कर सभी कहने लगते हैं , हुआं-हुआं ! कुछ भौ-भौ वाले भी इन के साथ सुर में सुर मिलाने लगते हैं। अपने-अपने इलाके में भले एक दूसरे को न आने दें पर अपने-अपने इलाके से सामूहिक भौ-भौ से माहौल बना कर इलाक़ाई कलक्टर तो बन ही जाते हैं। इन इलाक़ाई कलक्टरों का ट्रैक्टर जब चल पड़ता है तो माहौल तो बन ही जाता है। उन को लगता है कि मोदी अब गया कि तब गया। एंटी मोदी स्क्वॉड की इतनी सी ही सही पर उन की राय में यही भारी सफलता है। वह नहीं समझ पाते कि इस तरह मुसलसल ऐसा ख़याली पुलाव पकाना एक गंभीर बीमारी है। बहुत ख़तरनाक़ बीमारी। झूठ के प्राचीर पर सत्ता का क़िला नहीं बनता। भाड़े के यू ट्यूबर माहौल तो बना सकते हैं , उसे वोट में कभी कनवर्ट नहीं कर सकते।

हां , एंटी मोदी स्क्वॉड की एक और तकलीफ़ अभी सामने आई है चुनाव प्रचार ख़त्म होने के बाद कन्याकुमारी में विवेकानंद मेमोरियल में मोदी के ध्यान की। एंटी मोदी स्क्वॉड के कबीले के सारे सूबेदार एक सुर में खड़े हुए हैं कि मोदी के इस ध्यान सत्र को टी वी पर हरगिज न दिखाया जाए ! टी वी वाले दिखा भी नहीं रहे हैं। बस फ़ोटो आई है। पर एक तानाशाह के साथ ऐसी तानाशाही का सपना गुड बात तो नहीं है। क्या पता कोई याचिका ही न दायर हो जाए सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत। क्यों कि जो अभिषेक मनु सिंघवी अपने मुख मैथुन सुख का वीडियो यू ट्यूब से हटवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को कनविंस कर सकते हैं , हटवा लेते हैं , वह या कोई और सही इतना तो कर ही सकता है। लेकिन मोदी ने तो 2019 में भी ध्यान लगाया था। मीडिया ने उसे भी दिखाया था। तो क्या उस एक ध्यान से भाजपा का प्रचार हो जाता है ? मोदी भारी अंतर से जीत जाता है। मोदी मैजिक चल जाता है।

अगर ऐसा है तो क्या बात है !

फिर तो यह देश भर में सड़कों का संजाल , रेल और रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प , नदी के बीच से मेट्रो , समुद्र पर सेतु , सरहदों तक सड़क , टनल , सरहद पर गांव का फिर से बसना , बेशुमार हवाई अड्डों आदि का बनना , गरीबों के लिए कल्याणकारी योजना , पक्का मकान , शौचालय , गैस , नल से जल इत्यादि चौतरफा विकास की चांदनी की कोई ज़रूरत ही नहीं। चांद पर भी जाने की क्या ज़रूरत। इतने रोड शो , इतनी रैली , इतने इंटरव्यू , रात-दिन इतनी मेहनत की ज़रूरत भी क्या है। शराब घोटाला करो। संदेशखाली करो। शिक्षक भर्ती घोटाला करो। जगह-जगह नोटों का पहाड़ खड़ा करो। हेलीकाप्टर में मछली खाने का वीडियो बनाओ , मुस्लिम वोटरों को भयभीत करो , जातीय जनगणना का जहर घोल कर ध्यान करो और वोट लो। गज़ब है एंटी मोदी स्क्वॉड की यह हुआं-हुआं और भौं-भौं !

याद कीजिए नोटबंदी , जी एस टी , सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक , अभिनंदन , राफेल , तीन तलाक़ , धारा 370 , अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा। जातीय जनगणना , इलेक्टोरल ब्रांड का तराना। कोरोना वैक्सीन का फ़साना। इन सब मामलों में एंटी मोदी स्क्वॉड का सुर एक भी सूत जो इधर-उधर हुआ हो। एंटी मोदी स्क्वॉड के सभी लोग एक सुर में हुआं-हुआं और भौं-भौं का आलाप जो लिए हुए हैं , इन का जो आरोह-अवरोह है , वह अद्भुत है। बड़े-बड़े बड़े गुलाम अली खां , बिस्मिल्ला ख़ान , भीमसेन जोशी , किशोरी अमोनकर फेल। नो तथ्य , नो तर्क पर माहौल बिलकुल टनाटन ! बार-बार एक अश्वत्थामा की आड़ में एंटी मोदी स्क्वॉड के इस अपने ही ईगो मसाज की भी कोई हद होती है क्या ?

होती हो तो प्लीज़ बताइए भी न !

बात फिर भी शेष रह जाती है : अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा !

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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