कोउ नृप होउ हमहि का हानी , का संवाद कसौटी पर कसा जा चुका है
-दयानंद पांडेय की कलम से-[रिपोस्ट]
Positive India: Dayanand Pandey:
कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी।।
मंथरा का यह संवाद जब तुलसी दास ने लिखा तो वह भला यह कहां जानते रहे होंगे कि भारत के लोकतंत्र में मध्य वर्ग वोट न डालने के लिए इसे अपनी ओट बना लेगा। बहुत से लोगों को वोट के दिन , वोट न डालने के लिए , कोउ नृप होउ हमहि का हानी। कहते पाया है। यह कहते हुए लोग कहते ही रहते हैं कि कोई सरकार आए , जाए हमें क्या ! लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी राज और देश में मोदी राज ने स्पष्ट बता दिया है नृप सही न हो , यानी शासक सही न हो तो बहुत फ़र्क़ पड़ता है। शासक सही हो तो और ज़्यादा फ़र्क़ पड़ता है।
आप सोचिए कि 40 बरस से आतंक का पर्याय रहा अतीक़ अहमद क्या कभी कांग्रेस , सपा या बसपा राज में इस दुर्गति को प्राप्त होता ? चालीस साल में पहली बार वह सज़ायाफ्ता हुआ है। बर्बाद तो पूरी तरह। कहते हैं बाप के कंधे पर बेटे की लाश से बड़ा दुःख कोई नहीं होता। लेकिन अतीक़ को तो बेटे के जनाजे में भी शामिल होना बदा नहीं हो रहा। अतीक़ ही क्यों मुख़्तार अंसारी जैसे हत्यारे भी क़ानून के फंदे में दिन गुज़ार रहे हैं। क़ानून का यही राज जनता चाहती है। यह वही अतीक़ जिस के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट के दस जज एक साथ हाथ खड़ा कर बैठे थे कि वह अतीक़ अहमद केस की सुनवाई नहीं करेंगे।
ऐसा ख़ौफ़ लोकतंत्र , और क़ानून के लिए शर्म का सबब था। अच्छा है कि यह शर्म का दाग़ अब धुल रहा है। आहिस्ता-आहिस्ता ही सही , क़ानून का राज पटरी पर आ रहा है। अतीक़ अहमद का स्वागत लोग प्रयाग की कचहरी में जूते की माला से करने लगे हैं। अतीक़ का बेटा फ़िल्मी ढंग से बाप को छुड़ाने की योजना बनाता ही रह जाता है और मारा जाता है। कोउ नृप होउ हमहि का हानी , का संवाद कसौटी पर कसा जा चुका है।
[ रिपोस्ट ] साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)