ईवीएम का उपयोग शुरू करने से बेहतर और कोई चुनावी सुधार अभी तक नहीं हुआ
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
मैंने ईवीएम से पूर्व और बाद के दोनों तरह के संचालन में चुनाव आयोग द्वारा दी गई भूमिका को निभाया है । सेक्टर मजिस्ट्रेट, ज़ोनल मजिस्ट्रेट, पोस्टल बैलेट इन्चार्ज से लेकर मतगणना अधिकारी जैसी लगभग सभी तरह की चुनाव ड्यूटी निभाई है । मैं समझता हूँ कि ईवीएम का उपयोग शुरू करने से बेहतर और कोई चुनावी सुधार अभी तक नहीं हुआ ।
पोस्टल बैलेट के युग में हर तरह की धांधली संभव थी और होती भी थी । शुरुआती दो तीन चुनावों में तो पोलिंग बूथ में प्रत्याशियों के अलग अलग बक्से रखे जाते थे जिन पर उनका चुनाव चिह्न अंकित होता था । बैलेट पेपर पर किसी प्रत्याशी का न नाम होता था चुनाव चिह्न । वोटर बैलेट लेकर बूथ में जाता था और अपनी पसंद के प्रत्याशी के बक्से में वोट डाल आता था । काउंटिंग के समय कर्मचारियों की मिलीभगत से एक प्रत्याशी के वोट दूसरे में मिलाये जा सकते थे । कभी कभी सीलबंद बक्से को नीचे से खोल कर वोट निकाल लिए जाते थे जो गणना के समय दूसरे प्रत्याशी के वोटों में मिलाये जा सकते थे ।
बाद में पोस्टल बैलेट पर चुनाव चिह्न छापने और उस पर मोहर लगाने का युग शुरू हुआ लेकिन बूथ कैप्चरिंग पर कोई नकेल लगाना संभव नहीं रहा । शेषन के आने के बाद चुनाव सुधारों का नया युग शुरू हुआ और बूथ कैप्चरिंग के विरूद्ध पैरा मिलिटरी फ़ोर्स का इस्तेमाल शुरू हुआ ।
पंजाब पुलिस के जवानों ने चुनाव की पूर्व संध्या में एक पोलिंग बूथ पर मुझसे शिकायत की कि यूपी पुलिस के जवान पोलिंग बूथ का पहरा देने में सहयोग नहीं कर रहे हैं । उनकी टुकड़ी का एक जवान छत पर मोर्चा जमाये मुस्तैद था एक नीचे से उसे कवर कर रहा था और दो और जवान पोलिंग बूथ में घुसने वालों पर नज़र रखे हुए थे । मैंने उन्हें समझाया कि यह मथुरा है कश्मीर नहीं । अभी तो बैलेट बॉक्स ख़ाली हैं आप आराम से सोइये और सुबह से अपनी मुस्तैदी दिखाइयेगा ।
बैलेट पेपर युग में काउंटिंग में कम से कम चौबीस घंटे लगते थे । इस बीच कोई कर्मचारी बाहर नहीं जा सकता था । कई बार दोबारा काउंटिंग करवाने की नौबत आ जाती थी तो दो दिन तक मतगणना चलती रहती थी । धाँधली के झोल हर स्तर पर थे ।
आज हालत यह है कि किसी दुकानदार को भी अपनी गणित की पढ़ाई पर भरोसा नहीं रह गया है । उसे दो और दो भी जोड़ना होता है तो कैलकुलेटर का इस्तेमाल करना पड़ता है । हमारे समय में प्रतियोगी परीक्षाओं में भी गणना के लिए लॉग टेबल ले जाने की अनुमति होती थी ।
तकनीक की इस प्रगति का इस्तेमाल दुनिया के सबसे विशाल चुनावों में क्यों न हो । ईवीएम मशीन को हैक करना उसी तरह संभव नहीं जैसे कोई आपके कैलकुलेटर को हैक नहीं कर सकता । हैक करने के लिए मशीन का इंटरनेट या किसी अन्य डिवाइस से जुड़ा होना ज़रूरी है । इसीलिए हैक हैक का शोर मचाने वाला कोई व्यक्ति आज तक चुनाव आयोग की चुनौती स्वीकार करते हुए ईवीएम को हैक करने का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन नहीं कर सका ।
तमाम पार्टियाँ इसी ईवीएम के माध्यम से चुनाव जीतती रही हैं पर हारने पर ठीकरा ईवीएम के सिर फोड़ती हैं ।
चुनावी उत्सव आ लगा है । बढ़ चढ़ कर चुनावों भाग लीजिए और भारत को आगे बढ़ाइये ।
जय हिन्द
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)