Positive India:Dr Pradeep Bhatnagar:
कल 15 मार्च को रिलीज़ हो रही फिल्म बस्तर : द नक्सल स्टोरी का प्रीमियर शो सपत्नीक देखकर अभी लौटा हूं। फिल्म में छत्तीसगढ़ के माओवादियों, नक्सलियों की वीभत्स आतंकवादी गतिविधियां, उनकी भारत विरोधी साजिशें और इस काम में विदेशी ताकतों का खुला सहयोग सब खुलकर सामने आता है।
बस्तर : द नक्सल स्टोरी सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म है। देश में अराजकता फैलाकर देश को कमजोर करने और फिर तोड़ने की विदेशी ताकतों की साजिशों की कहानी है। भारत को कमजोर करने और भारत की खनिज सम्पदा को लूटने के लिए नकली मूल्यों के साथ कैसे देश के ही लोगों को एक दूसरे के खिलाफ लड़ाया जाता है और पैसों के बल पर भारत के बुद्धिजीवियों को कैसे दुर्दान्त नक्सलियों के पक्ष में खड़ा किया जाता है, की पूरी कहानी फिल्म परत दर परत खोलती है।
फिल्म का एक संवाद है, ‘कामरेड माओ कहते हैं, भारत पर राज करना है तो हमें जुडिशरी और जर्नलिज्म में घुसपैठ करनी होगी। कुछ यूनिवर्सिटीज को अपने लिए सुरक्षित करना होगा’। अब याद कीजिए भारत में इन क्षेत्रों से जुड़े बुद्धिजीवियों की हरकतें कैसी रही है।
इसी तरह एक और संवाद है- अगर हमें लाल किले पर तिरंगे की जगह लाल परचम फहराना है तो हमें पूरे सिस्टम में घुसकर दीमक की तरह उसे खोखला करना होगा। यह भी याद कीजिए कैसे नक्सल समर्थकों ने भारत के पूरे सिस्टम में घुसकर उसे खोखला किया गया।
फिल्म की मुख्य भूमिका में आईपीएस अफसर के रूप में अदा शर्मा ने शानदार अभिनय किया है। दूसरे अन्य कलाकारों का भी अभिनय अच्छा है। फिल्म का एक गीत वन्दे वीरम अच्छा है। सुदीप्तो सेन का निर्देशन कमाल का है।
कुल मिलाकर नक्सली आतंकवाद के विभिन्न आयामों को समझने के लिए यह फिल्म देखी जानी चाहिए। फिल्म सार्थक बौद्धिक विमर्श को तो प्रेरित करती ही है, पैसा, सुरा और सुंदरी के लिए बिक जाने वाले भारत के बुद्धिजीवियों की विश्वसनीयता पर सोचने को विवश करती है।
#बस्तरदनक्सलस्टोरी
साभार:डॉ प्रदीप भटनागर-(ये लेखक के अपने विचार हैं)