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सेवक बनकर शासन में आने वाले मोदी को अब देश का घर घर उन्हें अपने परिवार की सदस्यता क्यों दे रहा?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
लगता नहीं है कि 10 साल हुआ है मोदी सरकार को सत्ता में आए हुए। जैसे लगता है मोदी अभी-अभी सत्ता में आए हैं। अभी ही तो उन्होंने विकास का नारा दिया है और बहुत सारा विनिर्माण बचा हुआ है। अभी ही तो पाकिस्तान को जवाब दिया गया है और उसने हर लब्ज में परमाणु बम बोलना छोड़ा है, अभी तो उसके चार टुकड़े होने बाकी हैं। अभी-अभी तो बालाकोट हुआ है और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त किया गया है, अभी तो पीओके आना बाकी है। अभी-अभी तो राम मंदिर का निर्माण हुआ है, अभी तो काशी और मथुरा का निर्माण बाकी है। अभी-अभी तो भारत ने विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची में पांचवा स्थान हासिल किया है, अभी तो तीसरा स्थान प्राप्त करना बाकी है। 3 ट्रिलियन डॉलर से 5 ट्रिलियन डॉलर का जीडीपी सामर्थ्य हासिल करना है।

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लालू यादव ने बिहार के पटना से बयान दिया, मोदी 10 साल से देश में सत्ता में है और 15 साल से प्रदेश में। इस तरह के बयान अन्य दलों की ओर से भी आते रहते हैं। वे झूठ भी नहीं बोल रहे, उन्हें हकीकत में लगता है कि 10 साल सत्ता में होना कितनी बड़ी बात है और इतना लंबा समय सत्ता में रहते हुए किसी खास मुद्दे पर काम ना हुआ तो सत्ता दल की घेराबंदी की जा सकती है। यह बहुत स्वाभाविक भी है। ऐसा होता भी रहा है। 10 साल मनमोहन सिंह का शासन में होना इस बात का सबसे हालिया प्रमाण है। लोग ऊब जाते हैं शासन से और जब विरोधी इस बात को आम जनता में भुनाते हैं तो यह बात आम जनता को अपील करती है और सत्ता पलट जाती है। लालू यादव और तमाम विरोधी राजनीतिक दल यही तो कर रहे हैं। लेकिन यह बात आम जनता को अपील नहीं कर रही। जिन लोगों ने वोट देकर नरेंद्र मोदी को दिल्ली की सत्ता तक पहुंचाया है, उन लोगों में अभी भी एक अलग ही सियासी ताजगी बनी हुई है। उन्हें 10 साल जैसे 10 दिनों जैसा बीता हुआ लग रहा है। वे व्यग्रता से अगले टर्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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पहले टर्म में सेवक बने मोदी जी ने कहा कि वे प्रधानमंत्री नहीं हैं, वे प्रधानसेवक बनकर कार्य करेंगे। राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम में भी एक नेता को जन सेवक का ही दर्जा दिया जाता है। 5 साल सेवकाई करते हुए मोदी जी ने अगले 5 वर्ष में चौकीदारी की नई जिम्मेवारी उठा ली। मोदी जी ने देश की जनता से यह अपील किया कि वे अब उनके देश की एक-एक संपत्ति की चौकीदारी का जिम्मा उठाना चाहते हैं। लोगों को यह अपील स्वीकार हो गया और मैं भी चौकीदार नारा बनकर एक क्रांति में बदल गया। इसका प्राथमिक श्रेय विपक्ष के नेता राहुल गांधी को दिया जाएगा। लेकिन विपक्ष के रूप में इस तरह की जिम्मेवारी उठाने वाला कोई भी नेता अब सक्षम ना रहा। मोदी जी जैसे एक सक्रिय नेता के लिए यह घाटे की बात है। लेकिन पीएम मोदी कहां मानने वाले हैं, वे बहुत पहले से अपने संबोधन में परिवारजनों शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। और तीसरे टर्म के लिए देश के सभी परिवारों से अपनी सदस्यता जोड़ रहे हैं।

इतने में ही सियासत की नियत देखिए, दूर-दूर तक जहां मोदी के विरोध की राजनीति में कोई आवाज मजबूत होती नहीं दिखाई दे रही; एक-एक कर सभी कमजोर होते जा रहे, इंडिया गठबंधन का बड़े ढंग से टूटने के बाद सॉलिडेरिटी में ना बंगाल की ममता बनर्जी की आवाज रही, ना महाराष्ट्र में किसी ठाकरे चौहान या पवार की, पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सॉलिडेरिटी ना हो सकी, तो वहीं दक्षिण के तेलंगाना में रेवंत रेड्डी ने तेलंगाना में विकास के लिए गुजरात मॉडल को सराहा है, तमिलनाडु में अन्नामलाई ने अलग ही क्रांति ला रखी है, और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मोदी जी की सियासी मित्रता किसी से छुपी हुई नहीं है, ऐसी स्थिति में डूबते विपक्ष को तिनके का सहारा लालू यादव ने प्रश्नकर दिया- मोदी को परिवार कहां है? राहुल गांधी जब विपक्ष की आवाज नहीं बन पा रहे मोदी जी ने मजबूरन किसी क्षेत्रिय नेता के बयान को अपनी राष्ट्रीय राजनीति में अहम स्थान देना पड़ा।

इसी प्रश्न के जवाब में पीएम मोदी ने अपने तीसरे टर्म के नारे को मजबूत कर लिया और सेवक बनकर शासन में आने वाले मोदी को अब देश का घर घर उन्हें अपने परिवार की सदस्यता दे रहा। मोदी जी का राजनीतिक टाइमलाइन इतना सक्रिय रहा है कि भारत के संसदीय राजनीति के इतिहास में इतना सक्रिय राजनीतिक टाइमलाइन किसी भी राजनेता का नहीं देखा गया। इसलिए मोदी के प्रति आम जनता में किसी प्रकार का उबाऊपन नजर नहीं आ रहा। मोदी जी एक पुरानी जिम्मेवारी को जैसे ही पूरा करते हैं, एक नई जिम्मेवारी का ब्लूप्रिंट देश की जनता के सामने रख देते हैं। तब लगने लगता है कि जैसे यह काम तो अभी-अभी समाप्त हुआ है और एक बड़ा काम अभी बाकी है। जिसे मोदी ही पूरा कर सकते हैं। देश में सीएए की जरूरत समझाने वाले भी मोदी जी ही और उसे पूरा करने का भरोसा दिलाने वाले भी मोदी जी ही। इसलिए मोदी जी की हर दिन की राजनीति एक नई राजनीति है। ऐसे में जब उन्होंने नारा दिया अबकी बार चार सौ पार, तो लगता है वास्तव में यह नारा पूरा होने के निकट है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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