Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
फ्रेम अब पूरा हुआ। भारत रत्न की पंक्ति में केवल अटल जी की तस्वीर अधूरी तो लगती ही थी। आडवाणी जी के बिना न अटल जी की कहानी पूरी होती है, न ही उस दौर की कहानी पूरी होती है जब ये दो लड़ाके राजनीति की दिशा मोड़ रहे थे। भारत रत्नों की पंक्ति में भी अटल जी के बगल में आडवाणी जी की तस्वीर का लगना उनकी मित्रता, उनके साथ का भी सम्मान है… वे संघर्ष में साथ रहे, सत्ता में साथ रहे, और अब यहाँ भी साथ ही रहेंगे।
लालकृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के उन बड़े चेहरों में से हैं जिनकी छवि उनके पद से बहुत अधिक बड़ी थी। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि देश के बहुत से प्रधानमंत्रियों की भी जनता में उतनी पैठ, उतना जनाधार नहीं रहा, जितना आडवाणी जी का था। जिन्होंने भी सन दो हजार के पहले की राजनीति देखी है, वे जानते हैं कि उनका कद कितना विराट है। एक बहुत बड़ा वर्ग जो आज मोदी-योगी से घृणा करता है, वह इनसे अधिक आडवाणी जी से चिढ़ता रहा है।
यदि आप मुझसे पूछें कि आजादी के बाद की भारतीय राजनीति में कौन सी घटना ऐसी है जिसने भविष्य की राजनीति की बिल्कुल ही दिशा बदल दी, तो मैं कहूंगा राम मंदिर आंदोलन और आडवाणी जी की रथयात्रा। जिस हिंदुत्व की धारा में सारा देश एकजुट हुआ है, वह धारा उनकी ही बहाई हुई है। आज देश की राजनीति का जो रङ्ग है, वह आडवाणी जी का दिया हुआ है।
आडवाणी जी राष्ट्रवादी राजनीति में संघर्ष का सबसे प्रमुख चेहरा हैं। उनकी यात्रा राजनीति को टोपी से तिलक तक लाने की यात्रा रही है। सत्तर के दशक में जब देश की संसद संविधान की प्रस्तावना में जबरन ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द घुसा रही थी, तब कोई सोच भी नहीं सकता था कि दिन लौटेंगे। पर दिन लौटे! और दिन लौटाने वालों में सबसे बड़ा नाम आडवाणी जी का है। दो सीट वाली पार्टी को देश की सबसे बड़ी पार्टी बनाने में की राह में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
हम जैसे लोग जो सदैव आडवाणी जी के प्रशसंक रहे, उन्हें उच्च पद पर देखने के आकांक्षी रहे, उनके लिए यह उल्लास का अवसर है। बहुत बहुत बधाई आडवाणी जी को, महादेव उन्हें निरोग रखें, प्रसन्न रखें… और बहुत बहुत बहुत बधाई उन्हें भारत रत्न दिलाने वाले भारत के प्रधानमंत्री को भी, जिन्हें राजनैतिक गलियारे में सदैव आडवाणी जी का शिष्य माना जाता रहा है।
साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।