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जर्मनी के सर्वकालिक महान फ़ुटबॉल खिलाड़ी फ्रांत्स बेकेनबॉउर का पिछले दिनों निधन हो गया। अंग्रेज़ी अख़बारों ने उनके क़द के अनुरूप उन पर विपुल सामग्री दी। लेकिन हिन्दी अख़बारों ने सुध भी नहीं ली। इन पंक्तियों के अधिकतर पाठकों को सूचना नहीं होगी कि बेकेनबॉउर अब इस दुनिया में नहीं हैं, या इससे भी बदतर, बेकेनबॉउर नाम का कोई खिलाड़ी भी कभी था!
जबकि 1970 के दशक में केवल योहान क्राएफ़ से उनकी टक्कर थी, कोई और उनके आसपास न था। 1974 का विश्वकप फ़ाइनल बेकेनबॉउर की वेस्ट जर्मनी और क्राएफ़ की नीदरलैंड्स के बीच खेला गया। वह उस समय के दो सबसे बड़े खिलाड़ियों का खिताबी मुक़ाबला था। नीदरलैंड्स की टीम ‘टोटल फ़ुटबॉल’ खेलती थी और अपने अविश्वसनीय प्रिसीज़न के लिए ‘क्लॉकवर्क ऑरेंज’ कहलाती थी। माराडोना का कहना था कि “वह टीम अपनी पीठ से भी देखने में सक्षम थी और वह मानो घास पर दौड़ती नहीं, उससे दो इंच ऊपर तैरती थी!”
उस विश्वकप में क्राएफ़ की उस टीम ने अर्जेन्तीना को 4-0 से परास्त किया था। जाइरज़ीनियो और रीवेलीनो की विश्व चैम्पियन ब्राज़ील को हराकर वे फ़ाइनल में पहुँचे थे। उन्हें अपराजेय समझा जाता था। फ़ाइनल में खेल शुरू होते ही क्राएफ़ ने एक पेनल्टी जीती और नीदरलैंड्स 1-0 से आगे हो गई। इसके बाद बेकेनबॉउर ने मोर्चा बाँधा और डचों को अगले नब्बे मिनटों तक गोलचौकी की गंध भी नहीं आने दी। जर्मनी 2-1 से फ़ाइनल जीती। योहान क्राएफ़ ‘द-ग्रेटेस्ट-फ़ुटबॉलर-नेवर-टु-विन-द-वर्ल्ड-कप’ कहलाए।
इसके बाद बेकेनबॉउर ने एक और विश्वकप जीता, इस बार कोच के रूप में। 1990 में उन्होंने विश्वविजेता डिएगो माराडोना की अर्जेन्तीना को हराया। वे फ़ुटबॉल-इतिहास के केवल उन तीन खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्होंने खिलाड़ी और कोच के रूप में विश्वकप जीते हैं। एक अन्य ब्राज़ील के मारियो ज़गालो का भी संयोग से इसी माह निधन हुआ है।
फ़ुटबॉल की दुनिया में 1950 का दशक डी स्तेफ़ानो और पुस्कस का था, 1960 का दशक पेले और गरीन्चा का, 1970 का दशक क्राएफ़ और बेकेनबॉउर का, 1980 का दशक माराडोना, प्लातीनी और वान बास्तेन का, 1990 का दशक बैजियो और रोमारियो का, 2000 का दशक जिदान, रोनाल्डो (नज़ारियो) और रोनाल्डीनियो का था और उसके बाद का फ़ुटबॉल-इतिहास लियोनल मेस्सी का है। इन तमाम नामों में ऑड-वन-आउट खोजिये? मैं बताऊँ? ये सभी फ़ॉरवर्ड और अटैकिंग मिडफ़ील्डर थे, सिवाय बेकेनबॉउर के- जो एक डिफ़ेंडर थे। ठीक है, क्लासिक नम्बर 4 (सेंटर हाफ़) न सही, पर बॉल-प्लेइंग डिफ़ेंडर- कह लीजिये एक फ़ॉल्स 10!
बेकेनबॉउर लीबेरो पोज़िशन में खेलते थे। आप सोचेंगे, यह कौन-सी पोज़िशन है? क्योंकि आधुनिक फ़ॉर्मेशन में ज़ोनल-मार्किंग और ऑफ़साइड ट्रैप के कारण लीबेरो चलन से बाहर हो गए हैं। आज डिफ़ेंस लाइन में अमूमन दो सेंटर बैक होते हैं और दो अन्य फ़ुलबैक्स लेफ़्ट और राइट विंग को असिस्ट करते हैं। लेकिन 30-40 साल पहले लीबेरो एक अटैकिंग-स्वीपर हुआ करता था, जो पाँच डिफ़ेंडरों की बैकलाइन में दो सेंटर-बैक और दो विंग-बैक के पीछे खेलता था, और अलबत्ता उसका मुख्य काम डिफ़ेंसिव-ऑर्गेनाइज़ेशन था, लेकिन उसे आगे बढ़कर खेलने की भरपूर आज़ादी भी होती थी। इसीलिए उसे लीबेरो यानी आज़ाद आदमी कहा जाता था, जबकि शेष डिफ़ेंडर मैन-मार्किंग की ज़िम्मेदारी का निर्वाह करते थे। लीबेरो को आप एक छुपा रुस्तम भी कह सकते हैं, जो डीप-लाइंग प्लेमेकर की तरह खेलता था।
लीबेरो अकसर काउंटर-अटैक की शुरुआत करता था। वह गेंद को लेकर दौड़ता और मिडफ़ील्ड में पहुँचकर नम्बर 10 की भूमिका में आ जाता। डीप पोज़िशन से अटैक की शुरुआत करने की शैली योहान क्राएफ़ को भी बहुत पसंद थी, जिसकी आज़माइश वह टोटल फ़ुटबॉल में करते थे।
बेकेनबॉउर बहुत नज़ाकत और नफ़ासत से खेलते थे। खेल पर उनका सम्पूर्ण नियंत्रण हुआ करता था। वे डिफ़ेंडर और मिडफ़ील्डर की एक हाईब्रिड शैली में खेलते और बेहद रचनात्मक थे। अपने आभामण्डल के कारण वे ‘द काइज़र’ कहलाते थे। काइज़र यानी एम्परर। 1966 के विश्वकप में वे अटैकिंग मिडफ़ील्डर के रूप में खेले और 4 गोल करके सबको चकित किया। तब बॉबी चार्लटन ने कहा था कि बेकेनबॉउर को देखकर लगता था मानो वह कह रहे हों, मुझसे गेंद लेने की कोशिश करना फ़िज़ूल है, आप केवल अपना वक़्त ज़ाया करेंगे। बॉबी की टीम इंग्लैंड ने 1966 के विश्व कप फ़ाइनल में बेकेनबॉउर की जर्मनी को हरा दिया था।
1970 के विश्व कप में जर्मनी और इटली के बीच खेला गया ‘गेम ऑफ़ द सेंचुरी’ कौन भुला सकता है, जिसमें बेकेनबॉउर का कंधा टूट गया था और वे पटि्टयाँ बाँधकर मैच खेले थे। वह सेमी फ़ाइनल था और काइज़र के जीवट के बावजूद जर्मनी को 4-3 से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन 1972 में यूरो और 1974 में विश्व कप जीतकर बेकेनबॉउर ने अपना नाम किंवदंतियों में शुमार कर लिया।
एदुआर्दो गालेआनो ने बेकेनबॉउर के बारे में लिखा है, ‘‘अटैक और डिफ़ेंस पर उनका समान रूप से दबदबा था। बैकलाइन में मक्खी भी उनकी नज़र बचाकर भीतर प्रवेश नहीं कर सकती थी और जब वह फ़ील्ड के दूसरी तरफ़ जाते तो धधकती हुई आग बन जाते थे!’’
योहान क्राएफ़ ने जब अपनी ड्रीम-11 बनाई थी, तो उसमें बेकेनबॉउर को ससम्मान शामिल किया था– ज़ाहिर है लीबेरो पोज़िशन में।
आधुनिक फ़ुटबॉल में सेंटर बैक मोर्चा बाँधकर खेलते हैं, जबकि लेफ़्ट और राइट बैक ‘फ़्लाइंग-फ़ुलबैक्स’ की तरह धावा बोलते हैं। बैकलाइन में पाँच की बजाय चार क्षेत्ररक्षक अब 4-4-2 या 4-3-3 के फ़ॉर्मेशन में हुआ करते हैं। अगर कोई होल्डिंग मिडफ़ील्डर डीप में जाकर खेले और उसका पास-डिस्ट्रीब्यूशन आला दर्जे का हो, तो उसे आप एक बॉल-प्लेइंग डिफ़ेंडर कह सकते हैं। अलबत्ता लीबेरो सरीखी लपट तो उसमें होने से रही। उसमें भी बेकेनबॉउर जैसी डिग्निटी, निष्ठा और रचनात्मकता के साथ खेलने वाला लीबेरो आज कैसे मिले?
ऐसे खिलाड़ी बार-बार पैदा नहीं होते!
‘काइज़र’ को सलाम!
Courtesy:Sushobhit.