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“ब्राह्मण और बनियों भारत छोड़ो “ जेएनयू का नया नारा है क्या?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
“ब्राह्मण और बनियों भारत छोड़ो “ जेएनयू का नया नारा है । शायद नारा लगाने वाले ठाकुरों से डरते हैं । क्षत्रियों से उलझना कोई नहीं चाहता । मुग़ल भी मिट गए मगर राजपूत वंश अपने अपने ठिकानों पर जमे हुए हैं । अमरकोट में जहाँ अकबर का जन्म हुआ था यद्यपि आज वह स्थान पाकिस्तान में है पर सोढा राजपूत आज भी वहाँ पूरी शान से डटे हुए हैं जबकि अकबर के वंशज चिराग़ लेकर खोजने पर भी नहीं मिलते ।

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सदियों पूर्व भारतीय समाज में श्रेणियों का गठन हुआ जिसके सदस्य सामूहिक रूप से किसी कौशल या व्यवसाय में निपुण होते थे । यह श्रेणियाँ वंशानुगत ढंग से अपने व्यावसायिक कौशल को सुरक्षित रखती थीं । जातक साहित्य में कई श्रेणियों का उल्लेख मिलता है । दंतकार श्रेणी हाथीदांत की कलाकारी में निपुण थी इसी तरह चर्मकार, बढ़ई , स्वर्णकार सरीखी कई श्रेणियाँ थीं जिन्होंने भारत की आर्थिक स्थिति को सँभाल रखा था । कालांतर में ये जातियाँ बन गईं । छुआ-छूत बहुत बाद में आई । श्रेणी प्रमुख को श्रेष्ठि कहते थे जो आज सेठ कहलाता है ।कालांतर में इन्हीं व्यवसायी श्रेणियों से वणिक समुदाय का उदय हुआ जो आज तक समाज के वाणिज्य व्यवसाय को संभाले हुए है ।

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जाति प्रथा के विकास में ब्राह्मण को कोई उत्पादक कार्य नहीं मिला , उसके ज़िम्मे केवल अध्ययन अध्यापन और पूर्वजों द्वारा अर्जित ज्ञान के संरक्षण का काम आया । वे न धन संचय कर सकते थे न कोठी बनवा सकते थे । गुरुकुलों और आश्रमों में रह कर समाज के बालकों को शिक्षा देना उनका काम था । अल बरूनी ने अपनी किताबुल हिंद में ब्राह्मणों का विशद वर्णन किया है ।

ब्राह्मणों को इस त्याग के बदले केवल सम्मान मिला । इतना सम्मान कि उनकी निर्धनता को देखते हुए फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने जब ब्राह्मणों पर जज़िया लगाया तो शेष हिंदू समाज उनकी तरफ़ से जज़िया अदा करने को तैयार हो गया ।

फ़्रांसिस ज़ेवियर ने हिंदुओं के धर्मांतरण में एकमात्र बाधा ब्राह्मणों को ही माना । तमाम धार्मिक पुस्तकों और पुस्तकालयों को जला देने के बाद भी ब्राह्मणों ने अपनी वाचिक परंपरा से बहुत सारे ग्रंथों को संरक्षित कर लिया ।

जब जातियों ने अपने बंधन कठोर कर लिए तो उन्होंने स्वयं अंतर्जातीय विवाह बंद कर दिए । अगर एक सुनार जाति का व्यक्ति बढ़ई या लुहार जाति में विवाह नहीं करता तो इसमें ब्राह्मणों का दोष नहीं है लेकिन अम्बेडकर को अपनी पुस्तिका Anhilation of cast में ब्राह्मणों की ही कन्या चाहिए । अंबेडकर ने स्वयं एक ब्राह्मण महिला से विवाह किया लेकिन उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसकी वह हक़दार थीं । रामबिलास पासवान की विजातीय पत्नी से उत्पन्न चिराग़ पासवान की भी यही दशा रही । इसका दायित्व ब्राह्मण पर नहीं है ।

ब्राह्मण बनिया भारत छोड़ो ! नारा भी उसी गति को प्राप्त हो जाएगा जिसको बसपा का यह नारा उपलब्ध हुआ,

तिलक तराज़ू और तलवार
इनको मारो जूते चार

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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