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क्या ग़ज़वा ए हिंद का एजेंडा उनकी हदीसों में दर्ज है कि हो कर रहेगा?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
भारत के हज़ार वर्षों के इतिहास का सार यह है कि भारत पर आक्रमण करने वाले तुर्कों, मुग़लों और अफ़ग़ानों को अपने देश में रहते हुए भारतीय राजाओं से कभी कोई ख़तरा नहीं रहा । उन्हें पता था कि हिंदू राजाओं की भारत से बाहर निकल कर दिग्विजय करने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है ।

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वे आराम से शक्ति एकत्र करते थे और भारत पर आक्रमण कर के अपनी संचित शक्ति को आज़माते थे । पराजित होने पर लौट जाते थे और फिर और ताक़त के साथ हमला करते थे । भारत उनके लिये ऊँची कूद वाले एथलीट के लिये सेट किये गये बार की तरह था जो अपनी जगह स्थिर था , बस खिलाड़ी को तब तक प्रयास करते रहना था जब तक कि वह उस बार को छलाँग लगा कर पार न कर जाये ।

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अरबों के प्रारंभिक आक्रमणों के समय गुर्जर प्रतिहार , राष्ट्रकूट और पाल नरेशों के भारत में शक्तिशाली राजवंश थे लेकिन भारत की अद्भुत जलवायु छोड़ कर अफ़ग़ानिस्तान के ठंडे रेगिस्तानों को विजय करने की उनकी कोई युद्धाकांक्षा ही नहीं थी । जब तक इस्लाम अरब तक विस्तृत हुआ तब तक भारत उन्हें रोकने में सफल रहा । ७१२ में मुहम्मद बिन कासिम के बाद अरबों को भारत में कोई सफलता नहीं मिली । लेकिन जब इस्लाम ने तुर्किस्तान को मुसलमान बना लिया तब आक्रमण सिंध की बजाय अफ़ग़ानिस्तान की ओर से होने लगा ।

न ग़ज़नवी के आक्रमणों का कोई प्रतिकार हुआ न मुहम्मद ग़ोरी के । ११९१ की पहली लड़ाई में ग़ोरी को पराजित करने के बाद भी पृथ्वीराज ने आगे बढ़ कर तुर्कों का समूल नाश नहीं किया । चाणक्य की उस नीति वह भूल गया कि शत्रु और रोग का समूल नाश न करने पर वे फिर उठ खड़े होते हैं और अगली बार उन्हें आपकी शक्ति का अंदाज़ा भी हो चुका होता है ।

आपकी सैकड़ों वार की विजय व्यर्थ है किंतु उनकी एक विजय आपका सर्वनाश कर देगी । बहमनी सुल्तानों को अनेक बार पराजित करने वाला विजयनगर साम्राज्य तालीकोट में केवल एक बार हार कर इतिहास के पृष्ठों में गुम हो गया ।

भारत के हज़ारों वर्षों के इतिहास में सत्तर वर्ष कुछ भी नहीं होते । विजयनगर और पृथ्वीराज की तरह हम अब भी आक्रमणकारियों पर विजय पाते रहते हैं और उन्हें शक्ति संचय के लिये छोड़ देते हैं । अंग्रेज़ जब भारतीय राजाओं को पराजित करते थे तो उन्हें यूँ ही नहीं छोड़ देते थे । पाराभूत राज्यों में उनका रेज़ीडेंट रहता था और उन्हें वह नये किले नहीं बनाने देते थे । मुग़लों ने भी चित्तौड़ के किले का कभी नवनिर्माण नहीं करने दिया ।

स्वतंत्र भारत की शत्रुओं पर अब तक की सारी विजयें व्यर्थ हैं । आज भी भारत के किसी शत्रु को भारत से अपने भूक्षेत्र पर कब्ज़े को ले कर कोई भय नहीं है जबकि उनका ग़ज़वा ए हिंद का एजेंडा उनकी हदीसों में दर्ज है कि हो कर रहेगा ।

हम सिर्फ़ ज़ोर देखने के लिये बने हैं बाज़ू ए क़ातिल का !

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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