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आधुनिक इस्राइल का जन्म भारतीय सैनिकों की हैफ़ा विजय से ही हुआ है

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
प्रथम विश्व युद्ध से पहले समूचा मध्यपूर्व जिसमें ईराक़ सीरिया जॉर्डन लेबनान सब शामिल था तुर्की के उस्मानी ख़िलाफ़त का अंग था । वही ख़लाफ़त जिसकी सुरक्षा के लिये भारत में ख़िलाफ़त आंदोलन हुआ था । इस महायुद्ध में लगभग ६ करोड़ अस्सी लाख सैनिकों ने भाग लिया था जिनमें भारतीय रियासतों की सेना भी थी ।

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इस युद्ध में सबसे अद्भुत लड़ाई हैफ़ा की है जो आज इस्राइल का तीसरा सबसे बड़ा शहर है । भारत की जोधपुर हैदराबाद और मैसूर की घुड़सवार सेना को मेजर दलपत सिंह के नेतृत्व में हैफ़ा पर कब्जा करना था । हैफ़ा की रक्षा में जर्मनी और तुर्की की सेनायें तैनात थीं । भारतीय सैनिकों के पास पारंपरिक हथियार तलवार और भाले थे । उन्हें यह तो पता था की दुश्मनों के पास बंदूकें हैं लेकिन इसका भान उन्हें नहीं था कि उनके पास मशीनगनें भी होंगी । समय रहते सेना नायक को पता लग गया कि जर्मनों के पास मशीनगनें हैं तो मेजर दलपत सिंह को वापस लौटने का आदेश हुआ लेकिन फिर मेजर ने कहा कि रणक्षेत्र से पीठ दिखा कर लौटना राजपूती परंपरा नहीं है अब या तो हैफ़ा पर कब्जा होगा या वीरगति को प्राप्त होंगे ।

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हैफ़ा में भारतीय घुड़सवारों ने विकट पराक्रम दिखाया । तलवारो और मशीनगनों के बीच युद्ध इसके बाद फिर कभी नहीं देखा गया । शाम तक चौआलीस भारतीय सैनिक मारे गये जिनमें मेजर दलपत सिंह राठौर भी थे । १३५० जर्मन और तुर्की सैनिकों को बंदी बना लिया गया और हैफ़ा पर विजय प्राप्त की गई ।

उन दिनों नई दिल्ली में राजधानी का निर्माण हो रहा था । हैफ़ा विजय के सम्मान में तीन मूर्ति चौक तथा तीन मूर्ति भवन बनाया गया जहाँ भारत का कमांडर इन चीफ़ निवास करता था और जो आज़ादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का आवास बना ।

अंग्रेज़ों से होते हुए हैफ़ा अंत में इस्राइल के आधिपत्य में आया । इस्राइल आज भी हैफ़ा मुक्ति में भारतीय सैनिकों के योगदान को याद करता है । बेंजामिन नेतानयाहू जब भारत आये थे तब तीन मूर्ति स्मारक गये थे जिसका नाम अब बदल कर तीन मूर्ति हैफ़ा चौक रख दिया गया है ।

इस्राइलियों को सदियों भटकने के बाद अनेक देशों में अनेक यातनायें सहने के बाद गैस चैम्बरों में अपने पूर्वजों को खो देनेके बाद अपना खोया हुआ देश वापस मिला है । अरब इस्राइल संघर्ष उनके लिये अस्तित्व की लड़ाई है । या तो वे जीतेंगे या मिट जायेंगे । भागना अब उनके लिये विकल्प नहीं है ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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