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हमास ने इस्राइल से युद्धविराम और वार्ता की क्यों पेशकश की?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
हमास ने इस्राइल से युद्धविराम और वार्ता की पेशकश की ।
हमास को शायद अपने उन दोस्तों पर बहुत भरोसा रहा होगा जिन्होंने उन्हें हज़ारों मिसाइलें उपलब्ध कराईं , इंटेलिजेंस और तकनीकी ट्रेनिंग दी ।

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बहरहाल अमेरिका ने अपना जंगी विमान वाहक जहाज़ इस्राइल के तट पर तैनात कर दिया ताकि समुद्र के रास्ते तुर्की से मदद न आ सके । ईरान पीठ पीछे से ही मदद कर सकता था , अमेरिका का रुख़ देख कर वह फ़िलहाल सीधे युद्ध में नहीं उतरना चाहता । अगर ईरान में हिम्मत होती तो वह तभी युद्ध छेड़ देता जब क़ासिम सुलेमानी को निशाना बनाया गया था । दूसरे के कंधे पर बंदूक़ रख कर चलाना बहुत आसान होता है ।

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हिज़बुल्ला ग्रुप ने थोड़ी बहुत हिम्मत की लेबनान की तरफ़ से गोलीबारी की , पर मुँहतोड़ जवाब पा कर वह भी चुप हो गया ।

रह गया हमास अकेला । अभी तो दो दिन भी नहीं हुए इस्राइल का ग़ुस्सा तो इतनी जल्दी ठंडा होने वाला नहीं है । वह तो ग़ाज़ा का नामोनिशान मिटाने का संकल्प लेकर युद्धरत है । वैसे भी हमास सुन्नी है और ईरान शिया । ताक़तवर सुन्नी मुल्क तो तुर्की और पाकिस्तान हैं । अगर पाकिस्तान एटम बम दे दे और किसी को भनक न लगे तो खेल अब भी पलट सकता है । हाँ बाद में पाकिस्तान का हाल ग़ाज़ा से भी बदतर हो सकता है । ईरान बेचारा इससे ज़्यादा मदद नहीं कर सकता । एक मुल्क और है क़तर जिसके पास हमास की मदद के लिए पैसा बहुत है मगर पिछले कुछ महीनों से वह इस्राइल के साथ भी काफ़ी नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है ।

कुल मिलाकर हमें तो अपने मुल्क की फ़िक्र है । इस्राइल ने तो पहली घुसपैठ देखी है हमें तो रोज़ ही किसी न किसी से दो चार होना पड़ता है । इसीलिये हम घटनाक्रमों पर पैनी नज़र बनाए हुए हैं ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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