Positive India:Vishal Jha:
समाज और शहर में फर्क होता है। समाज में चेतना होती है और शहर जड़ होता है। बनता दोनों ही मानवों से ही है। शहर मानवों के सामूहिकरण से बनता है और समाज मानवों के समाजीकरण से। समाज को बौद्धिक जगत से लगातार गलियां मिलती रही है। ताने मिलते रहे हैं और शहर बसाने की हिमायत की गई है।
समाज पर प्राणी को मानव बनाने की एक बड़ी जिम्मेदारी होती है और इस जिम्मेवारी को समाज निभाता भी आया है। आज भी उतनी ही निष्ठा से निभा रहा है जितनी निष्ठा प्राणी अपने समाज में रखता है। लेकिन बौद्धिक जगत के उकसावे में आकर प्राणी समाज को एक बंधन के रूप में देखने लगता है और इससे छूट कर भागना चाहता है। फिर कहीं जाकर एक स्वच्छंद बसावट का निर्माण कर लेता है।
उज्जैन शहर है समाज नहीं। घटना शहर में हुई और गालियाँ फिर एक बार मानव समाज को। उज्जैन शहर का वही व्यक्ति जब किसी समाज के हिस्से में आ जाएगा तो उसमें अपने आप एक सामाजिक चेतना काम करने लगेगी। उज्जैन काण्ड के लिए दोषी कौन है? दोष तय करना उतना भी मुश्किल काम नहीं है। हर स्तर पर जिम्मेवारी तय की जा सकती है। बशर्ते पलायणवादी विचारधारा का त्याग करके निष्ठा से मसले को देखा जाए तब।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)