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‘द वैक्सीन वार’ में दिखाया गया है कि टूलकिट गैंग कितना नीच है

-अजीत भारती की कलम से-

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Positive India:Ajeet Bharti:
‘द वैक्सीन वार’ में लिब्रांडुओं की बखिया उधेड़ी गई है। विवेक जी की टीम ने लेखन और निर्देशन में इस हिस्से को महत्व दिया है और सरलता से दिखाया है कि लोगों को समझ में आए कि ये टूलकिट गैंग कितना नीच है।

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सामान्यतः, निर्देशकों को उनकी टीम कह देगी कि इन्हें इग्नोर करो, हीरो मत बनाओ, पर मुझे लगता है कि सूचना के माध्यम से आक्रमण करना भी इन्फो-वार लड़ने का उचित तरीका है।

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चाहे मीडिया के जोकर हों, फायजर के हाथों बिके इन्फ्लूएंसर्स हों, मोदी विरोध में भारत-विरोधी बन चुके सोशल मीडिया हैंडल्स हों, उनको इस फिल्म में खोल कर रख दिया गया है ताकि लोग देख सकें कि ये लोग कैसे काम करते हैं।

विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन की यह पहचान बन चुकी है कि घटनाओं को बिना नाटकीयता के, जैसे है वैसे ही दिखा देना। कई बार प्रतीकात्मकता के चक्कर में हर व्यक्ति उस बात को समझ नहीं पाता है।

विस्तृत समीक्षा तो शीघ्र ही करूँगा, पर #TheVaccineWar देख कर मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि आप गौरवान्वित होंगे कि हमारे समय की एक सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि पर किसी ने ऐसी फिल्म बनाई है, जो भारतीय सिनेमा के पन्नों में अमिट छाप छोड़ेगी। ऐसी कहानियाँ कोई छूना नहीं चाहता क्योंकि इसे कहने के चक्कर में कई सिनेमेटिक सीमाएँ व्यवधान उत्पन्न करती हैं, और बीच में हताश होने के पूरे अवसर रहते हैं।

अब तो आप लोग इसकी बुकिंग कीजिए और देखिए। ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद से एक निर्देशक के तौर पर विवेक अग्निहोत्री में आपको बड़ा परिवर्तन दिखता है कि उनकी आर्ट बड़ी हुई है।

पल्लवी जोशी को यदि श्रेय न दिया जाए तो मेरी सत्यनिष्ठा पर प्रश्न उठेंगे। प्रोडक्शन का भार उनके ऊपर था, और यह दिखता है कि उन्होंने कितनी सुंदरता से उस हिस्से को निभाया है।

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साभार: अजीत भारती:(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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