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जनसंख्या वृद्धि देश में सुराज स्थापना का पहला लक्षण हैं

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
बिबिध जंतु संकुल महि भ्राजा ।
प्रजा बाढ़ि जिमि पाइ सुराजा ॥
जनसंख्या वृद्धि देश में सुराज स्थापना का पहला लक्षण हैं । वरना स्वतंत्रता प्राप्ति से मात्र चार वर्ष पूर्व बंगाल के अकाल में लगभग बीस लाख लोग काल के गाल में समा गये थे और वह अकाल ब्रिटिश सरकार की लापरवाही का परिणाम था ।

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संतोष तो स्वर्ग में भी नहीं मिलता मोक्ष की कामना देवताओं को भी रहती है लेकिन भारत के इतिहास की गहराइयों में दूर दूर तक झांकने पर भी इतनी शांति भारत में किसी काल में रही हो इसका पता नहीं चलता । संभवतः सम्राट अशोक के काल में रही हो लेकिन अशोक युग के इतिहास की विस्तृत जानकारी अभी हो नहीं पाई है । अभी मात्र सौ साल पहले मस्की अभिलेख में पहली बार अशोक का नाम सामने आ पाया था जिससे इतिहासकारों ने भारत के कोने कोने में फैले स्तंभ और शिलालेखों का संबंध अशोक से जोड़ा था ।

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अशोक के बाद का सारा इतिहास आपसी संघर्षों की गाथा है । कभी शक सातवाहन संघर्ष कभी कुषाणों और हूणों का भारत के भीतर तक आक्रमण । दक्षिण के राज्यों में भी निरंतर अशांति का ही माहौल रहा ।

इस्लामी युग तो हिंदुओं के लिए साक्षात् नर्क था । सल्तनत युग में हिंदुओं पर इतने अत्याचार हुए कि अकबर ने जब हिंदुओं को शासन सत्ता में भागीदार बनाया तो इतिहासकारों ने उसे महान घोषित कर दिया । निरंतर ऊबड़ खाबड़ पहाड़ों की यात्रा में कहीं मैदान आ जाये रास्ते में तो जो राहत महसूस होती है वह कुछ अकबर काल में हुई । राजा मानसिंह के प्रयासों से मथुरा वृंदावन बनारस और जगन्नाथ पुरी के मंदिरों का पुनरुद्धार हुआ । गोवर्द्धन में सूरदास और काशी में तुलसीदास को धर्म स्थापना का अवसर मिला । लेकिन अकबर हिंदू मुसलमान दोनों की आलोचना का शिकार हुआ । मुसलमान तो उसे विशुद्ध काफिर मानते हैं । शेख़ अहमद सरहिंदी ने अकबर की सुलह कुल नीति के विरुध्द जिहाद छेड़ दिया और अंततः अकबर का पड़पोता औरंगज़ेब पूरी तरह कट्टरता पूर्वक अकबर का हटाया जज़िया दोबारा शुरू करके भारत को पूरी तरह इस्लामी राज बनाने के लिए जिहाद करने लगा ।

औरंगज़ेब युग में सर्वाधिक धर्मांतरण हुए । शिवाजी के सेनापति को मुसलमान बना लिया गया मगर कुछ साल बाद वे फिर शिवाजी के प्रयासों से अपने धर्म में वापस आ गये ।

इस्लामी युग में मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं की गवाही तक नहीं सुनी जाती थी और यही शरीयत का क़ानून है । बलात्कार के विरूद्ध महिला की गवाही का कोई मूल्य नहीं है । तो ऐसा अंधा युग भारत ने सैकड़ों साल देखा है । और हर तरह का दुख झेला है ।

अंग्रेज सभ्य लोग थे पर उन्हें अपने मतलब से मतलब था किसी भी तरह मुल्क पर हुकूमत बनाए रखना । उन्होंने मुसलमानों हिंदुओं को कभी एक नहीं होने दिया और अंबेडकर को हिंदुओं के अंदर फूट डालने के लिए इस्तेमाल किया । उन्हें तीनों गोलमेज़ सम्मेलनों में बुलाया गया । मुसलमानों को कम्यूनल अवार्ड दे दिया और अंबेडकर को भी दलितों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उकसाया । गाँधी ने किसी तरह आमरण अनशन करके उन्हें मना लिया ।

प्रजा का हाल अंग्रेज़ी राज में घोर दरिद्रता का रहा लेकिन उसे न्याय मिलता था । ठगों और पिंडारियों को स्लीमन ने जड़ से मिटा दिया ।

देशवासियों के समेकित प्रयास से देश स्वतंत्र हुआ और तबसे कोई माने या न माने देश में सुराज आया हुआ है । यह गाँव गाँव में आशा बहनें और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का कहीं नामो निशान भी न था । विकास खंडों का तो कोई विचार भी किसी के मन में नहीं आया था । हाँ नहरें ज़रूर अंग्रेजों ने बनवाईं लेकिन फसल का मोटा हिस्सा लगान में उन्हीं के पास जाता था । ये हर ज़िले में कलेक्टर सिर्फ़ लगान वसूलने के लिए ही बैठा था । बड़े बड़े ज़मींदार उसे कोर्निश बजाते थे । आज आज़म खां कलक्टर से जूता पॉलिश कराने का इरादा रखते हैं । भला इतना सुंदर युग कभी पहले रहा होगा ।

अपनी तमाम ढाँचागत बुराइयों के बावजूद भारतीय लोकतंत्र में एक अख़बार बेचने वाला बालक धनुषकोडि से चल कर देश का राष्ट्रपति बन सकता है और एक मामूली चायवाला प्रधानमंत्री बन सकता है । पेट्रोल पंप पर तेल भरने वाला मामूली कर्मचारी रिलायंस जैसा विशाल उद्योग खड़ा कर सकता है ।

यह स्वतंत्रता इतनी सहजता से नहीं मिली है । हमसे पहले वाली पीढ़ी ने ग़ुलामी का प्रथमदृष्ट्या अनुभव किया था इसलिए वे लोग आज़ादी की क़ीमत जानते थे । नेताओं का जनता में अपार सम्मान था और अपवाद छोड़ दें तो सभी ईमानदार और सर्वसुलभ होते थे । राजेंद्र प्रसाद ने तो राष्ट्रपति भवन से अपनी पत्नी को वह सूप तक नहीं ले जाने दिया जो उन्होंने महादेवी वर्मा से कह कर इलाहाबाद से मंगाया था ।

देखते देखते पचहत्तर साल पूरे हो गये । आज़ादी से पूर्व की पीढ़ी अब विदा ले चुकी है । अब बैटन नौजवानों के हाथ में है ।
लेकिन हम इनके हाथों में एक मज़बूत और आत्मनिर्भर भारत सौंप रहे हैं ।

तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सँभाल के

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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