Positive India:Vishal Jha:
स्मृति ईरानी जब सदन में बोलती हैं तो सदन के भीतर तो ठीक, सदन के बाहर भी लोगों के सदमे आने शुरू हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे स्मृति ईरानी सुषमा स्वराज जी की रिक्त सीट को भरती हुई प्रयास कर रही हैं। स्मृति ईरानी ने अपने व्यक्तित्व को स्थापित भी किया है। कैसे?
स्मृति ईरानी सदन के जिस सीट पर बैठती हैं, वह सीट उन्हें कोई राजनीतिक कृपा भक्ति से नहीं मिला है। वो किसी रसूखदार खानदान की बड़ी पुश्तैनी सीट है। वही सीट, जहां राहुल गांधी का पुश्तैनी अधिकार था, अमेठी। स्मृति भाजपा में आईं तो भाजपा ने उन्हें अमेठी जैसी चुनौतीपूर्ण सीट थमा दी। स्मृति ईरानी ने छोटे से 5 वर्ष के राजनीतिक कार्यकाल में अपनी कर्मठता को एस्टेब्लिश किया और राहुल गांधी को सीधे 2000 किलोमीटर दूर भागना पड़ा, वायनाड।
राहुल गांधी कल लोकसभा सदन में आकर बोलने वाले थे। सदन में चाइनीज दलों ने पूरा माहौल बना रखा था। उन्होंने ऐसा माहौल बना रखा था कि जैसे राहुल गांधी आएंगे और जब बोलेंगे तो सदन हिलने लगेगा। लेकिन चीनी प्यादों को तब बहुत लज्जा झेलनी पड़ी जब ऐन वक्त पर राहुल गांधी आना कैंसिल कर दिए। इसका वजह भी बहुत हास्यास्पद है।
राहुल गांधी चाहते हैं कि वह सदन में जब बोलें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद हों। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री के काउंटर में बोलने के लिए हैसियत होनी चाहिए। वह तो चीनी मीडिया वाले प्यादे बड़ी कोशिश से राहुल गांधी को मुकाबले के फ्रेम में दिखाने की कोशिश करते हैं, अन्यथा सच तो यही है कि राहुल गांधी को जवाब देने के लिए स्मृति ईरानी पर्याप्त हैं। और प्रमाणित हैं।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)