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जिहाद तो एक आइडियॉलॉजी है इससे कैसे लड़ा जा सकता है?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
जिहाद।
इस्लाम की अवधारणा स्पष्ट है कि अल्लाह ने मनुष्य को अपनी पूजा करने के एकमात्र उद्देश्य के लिये पैदा किया , मनुष्य को संपूर्ण सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ बनाया, यह सारी सृष्टि मनुष्य के लिये निर्मित की ।
पूजा क्या है इसकी अवधारणा स्पष्ट नहीं है । अगर हम हिंदू दृष्टि से देखें तो भगवान का स्मरण, भजन कीर्तन व्रत उपवास आदि सब पूजा की श्रेणी में आता है किंतु इस्लाम में मुसलमान पर मौलवी का ज़बर्दस्त शिकंजा है । अगर ठीक से वुज़ू नहीं किया तो भी नमाज़ क़ुबूल नहीं होगी , एक मिनट पहले इफ्तार कर लिया तो रोज़ा फ़ाके में बदल जायेगा । हर फ़िरके का अलग अलग तर्जे अमल है । शिया हाथ खोल कर नमाज़ पढ़ते हैं, सुन्नी हाथ बाँध कर , सुन्नियों में भी कुछ मसलक हाथ खोल कर नमाज़ पढ़ते हैं ।

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शिया मुसलमान को सऊदी अरब में नौकरी करने के लिये अक्सर तक़ैय्या करना पड़ता है । शेख़ शियों को नौकरी में नहीं रखता । वह अक्सर अपने मुलाज़िमों को उमरा के लिये काबा ले जाता है । अत्यधिक श्रद्धा होने और इस पुनीत अवसर पर भावुक हो कर शिया अपने मसलक में सीखी तरकीब से नमाज़ पढ़ने लगता है और शेख़ की नज़र में आ जाता है । तक़ैया खुल जाता है । फिर वह बहुत मुश्किल में फँस जाता है । शेख उसका पासपोर्ट रख लेता है ।
इस्लाम की दृष्टि में यह जीवन तो परीक्षा काल है । ईमान के साथ साथ आमाल भी अच्छे होने चाहिये तभी जन्नत की संभावना बनती है । ज़रा सा भी कर्तव्य पालन में चूक हुई तो इस्लाम से ख़ारिज होते देर नहीं लगती । अगर कहीं इस्लाम से ख़ारिज हो गये तो निकाह भी खारिज हो जायेगा, कब्रिस्तान में भी जगह नहीं मिलेगी , कोई नमाज़े जनाज़ा भी न पढ़ायेगा ।

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मेरे एक मित्र पता नहीं किन रहस्यमयी परिस्थितियों में मुसलमान हो गये तब से उनकी एक एक गतिविधि पर नज़र रखी जाती है । न वो फेसबुक पर आते हैं, मेरा तो फोन भी नहीं उठाते , हर वक्त शैतान से पनाह माँगते नजर आते हैं ।

सामान्य जीवन जीते हुए इस्लाम की अग्नि परीक्षा से गुज़रना बहुत कठिन है । न जाने कब हलाल की जगह हराम खा जायें । अल्लाह के सिवा किसी और के नाम पर अर्पित प्रसाद भी हराम है । अगर हलवाई ने पहली पूड़ी से भोग लगा दिया तो पूरा खाना हराम हो गया । सूद हराम, नशा हराम और न जाने क्या क्या हराम !

मीर तक़ी मीर लिखते हैं,

जाये है जी नजात के ग़म में !
ऐसी जन्नत गई जहन्नम मे !!

और अगर इतना सब कर के ज़िंदगी गुज़ार भी ले गये तो कयामत तक कब्र में दो फरिश्ते मुंकिर और नक़ीर पूछताछ करेंगे और कब्र का अज़ाब देंगे ।

शबे फुरक़त का जागा हूँ फरिश्तो अब तो सोने दो !
कभी फुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता !!

अब सिर्फ एक ही तरीका बचता है कि जन्नत भी पक्की हो जाये और कब्र में कयामत तक मिलने वाले अज़ाब से भी बच जायें वह है जिहाद !
जिहाद में शहीद होने वाले मुजाहिद को बड़ी रियायतें हैं । एक तो उसको बरजख यानी कब्र के अजाब से छुटकारा मिलेगा । उसके लिये जन्नत के दरवाज़े फौरन खोल दिये जायेंगे । हालाँकि जन्नत की शेष सुविधायें तो कयामत के दिन न्याय होने के बाद ही मिलेंगी मगर प्रवेश मिल जायेगा ।
यह प्रवेश किस रूप में मिलेगा इस पर मत भिन्नता है ।
इसलिये जिहाद यानी अल्लाह की राह पर शहादत एक शॉर्टकट है मगर इसके लिये हिम्मत चाहिये तो हिम्मत बँधाने के लिये मौलवी मौजूद हैं । लाल मस्जिद पर छापे में मौलवी साहब बुर्क़े में बरामद हुए। मौलवी अहमदुल्ला को छोड़ कर मैंने किसी मौलवी को जिहाद करते नहीं सुना ।

ख़ैर दुनिया को जिहाद की इस मानसिकता से जूझना है । मुझे तो कोई उपाय दिखता नहीं । इंसान से लड़ाई हथियारों से लड़ी जा सकती है मगर जिहाद तो एक आइडियॉलॉजी है । कच्ची उम्र के बच्चे इसमें शामिल होते जा रहे हैं और सिलसिला थमता नज़र नहीं आता ।

सब को सन्मति दे भगवान !

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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