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Breaking: भारत सरकार मवेशियों के आयात और निर्यात का एक विधेयक लेकर आई है।

-सुशोभित की कलम से-

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Positive India:Sushobhit:
अप्रैल 2014 में गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने बिहार में एक रैली को सम्बोधित करते हुए ‘पिंक रिवोल्यूशन’ की मलामत की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि यूपीए सरकार वधशालाओं और माँस निर्यात को बढ़ावा दे रही है। साथ ही बाँग्लादेश में बड़े पैमाने पर मवेशियों की तस्करी पर भी आपत्ति जताई थी।

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आज पूरे नौ साल बाद भारत न केवल दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बीफ़ निर्यातक है, बल्कि बीते एक दशक में भारत में हर तरह के माँस- विशेषकर पोल्ट्री- की खपत पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। इसके समर्थन में तमाम डाटा उपलब्ध हैं। बीते नौ सालों में पिंक रिवोल्यूशन को समाप्त करना तो दूर, उलटे माँसभक्षियों को हर तरह का सपोर्टिव इको-सिस्टम मुहैया कराया गया है। और बाँग्लादेश में गायों की तस्करी भी बदस्तूर जारी है, और सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं है। गायों से लदे ट्रक टोल-नाकों से आराम से गुज़र जा रहे हैं।

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अब नई ख़बर सुनिये। भारत सरकार मवेशियों के आयात और निर्यात का एक विधेयक लेकर आई है। आपने इस बिल के बारे में नहीं सुना होगा, क्योंकि मीडिया की इस बारे में बात करने में रुचि नहीं है। कारण, जानवर न टीवी देखते हैं न अख़बार पढ़ते हैं और वे मीडिया के ग्राहक नहीं हैं, तो उसे इससे क्या। सरकार भी इनकी क्यों परवाह करेगी, जानवर वोट जो नहीं देते। जानवरों से किसी समुदाय या लिंग की अस्मिता भी नहीं जुड़ी। गाय ज़रूर एक धार्मिक मसला है। लेकिन बाक़ी तमाम जानवरों के जीने-मरने की किसी को चिंता नहीं है। 78 प्रतिशत भारतीय बेशर्मी से माँसभक्षण कर रहे हैं, इनमें पर्यावरणविद्, प्रकृतिप्रेमी, पशुप्रेमी, कवि, चिंतक, आध्यात्मिकजन और प्रेमीगण भी शामिल हैं।

भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने इस लाइवस्टॉक इम्पोर्टेशन एंड एक्सपोर्टेशन बिल के बारे में विगत 7 जून को एक अधिकृत ज्ञापन जारी किया है, जिसे मंत्रालय की वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है। अव्वल तो यहाँ पर यह पशुपालन शब्द ही कुत्सित है। यह अंग्रेज़ी के एनिमल हसबैंड्री का अनुवाद है। किंतु हिंदी में पालन का मतलब होना है देखरेख करना। पालन के साथ लालन की युति जुड़ी है, यानी अपने बच्चों की देखभाल। पालन के साथ पोषण भी जुड़ा है। किंतु यह मंत्रालय पशुओं के शोषण और हत्या पर केंद्रित है। अगर मंत्रालय का नाम पशुपालन से बदलकर पशुवध कर दिया जाए तो क्या आपत्ति है? देखिये भाषा की आड़ में कैसे छल किए जाते हैं।

मंत्रालय के संयुक्त सचिव जी.एन. सिंह के हवाले से जारी किए इस ज्ञापन में कहा गया है कि हम लाइवस्टॉक इम्पोर्टेशन एक्ट 1898, जिसे 2001 में संशोधित किया गया था, को पुन: प्रभावी बनाने जा रहे हैं। उसके आलोक में लाइवस्टॉक एंड लाइवस्टॉक प्रोडक्ट्स इम्पोर्टेशन एंड एक्सपोर्टेशन बिल, 2023 तैयार किया जा रहा है।

ड्राफ़्ट-बिल की शब्दावली देखिये : इसमें जानवरों को ‘कमोडिटी’ कहकर पुकारा गया है। कमोडिटी? ख़रीद-फ़रोख़्त की वस्तु? बुद्धि, चेतना, संवेदना से सम्पन्न प्राणपुंज और निर्दोष, मूक जीव इस सरकार के लिए कमोडिटी हैं? क्या यही भारतीय संस्कृति है, जिसका हवाला सरकार और उसके समर्थक रात-दिन सोते-जागते देते हैं? जानवरों के आयात-निर्यात के लिए भूमि, आकाश और जल- तीनों मार्गों को खुला रखा गया है। लाइवस्टॉक यानी कौन-से जानवर? भाषा की बेईमानी फिर से देखिये। ड्राफ़्ट में लिखा गया है- ऑल बोवाइन एनिमल्स। बोवाइन यानी? गाेवंश लिखने में सरकार को शर्म आती है इसलिए बोवाइन लिखा है। लेकिन बैल शब्द तो साफ़ लिखा है, भैंस लिखा है, कैटल लिखा है। प्रश्न है यह बैल और कैटल कहाँ से आएँगे? उत्तर है, ये डेयरी इंडस्ट्री द्वारा कच्चे माल की तरह सप्लाई किए जाएँगे।

बहुत बढ़िया ‘पिंक रिवोल्यूशन’ हो रही है, मोदी जी के राज में, नहीं?

इतना ही नहीं, बोवाइन के साथ ही इक्वाइन एनिमल्स भी निर्यात होंगे। इनमें घोड़े, खच्चर, गधे आदि शामिल हैं। साथ ही ओवाइन श्रेणी (बकरियाँ, भेड़ें), कैनाइन श्रेणी (कुत्ते), स्वाइन श्रेणी (सुअर), एवीयन श्रेणी (पक्षी) के प्राणियों के साथ लैब-एनिमल्स के भी आयात-निर्यात की योजना है।

लाइवस्टॉक प्रोडक्ट्स क्या? विधेयक का ड्राफ़्ट कहता है, फ्रेश मीट, टिश्यू, ओर्गन्स ऑफ़ बोवाइन (इसे बीफ़ कहने में राजनैतिक ख़तरा है), पोल्ट्री, पिग (पोर्क शब्द का इस्तेमाल भी ख़तरे से ख़ाली नहीं), शीप, गोट, और इतना ही नहीं, एम्ब्रियोज़ (यानी पशु-भ्रूण) का भी आयात-निर्यात किया जाना है। यानी बड़े पैमाने पर क्रूरता, अत्याचार, हृदयहीनता को क़ानूनी जामा पहनाने की तैयारी सरकार की चल रही है।

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के संयुक्त सचिव जी.एन. सिंह ने इस सम्बंध में gagan.garg@nic.in और gn.singh13.@nic.in पर परामर्श निमंत्रित किए थे। मैंने इसके विरोध में ईमेल लिख दिया है। बहुत सारे अन्य वीगन साथियों ने भी भेजा है। पीपल फ़ार्म ने भी इस बारे में वीडियो बनाकर अपील की है। एक मनुष्य के रूप में आपके दायित्व आप जानें। टिप्पणियों में भारत सरकार के मसौदा विधेयक की लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ।

साभार:सुशोभित-(ये लेखक के अपने विचार है)

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