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अब मुन्तशिर का अर्थ ही अस्त व्यस्त बिखरा हुआ होता है तो क्या ही कहें , इस मूर्ख को

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
जब कोई शायर अपना तख़ल्लुस रखता है तो या तो वह उसके शहर से जुड़ा हुआ होता है या उसकी मनोदशा से । कभी-कभी कुछ शायर अपने नाम के किसी हिस्से को अपना तख़ल्लुस रख लेते हैं ताकि रहती दुनिया तक उनका नाम बाक़ी रहे जैसे मीर तक़ी मीर ।

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ग़ालिब ने पहले अपना तख़ल्लुस असद रखा था जिसका मतलब होता है सिंह मगर कोई और मामूली शायर भी असद तख़ल्लुस के साथ शायरी कर रहा था चुनाँचे उसके घटिया शेरों को ग़ालिब का समझ कर आलोचकों ने ग़ालिब की खटिया खड़ी कर दी , ग़ालिब बेचारे सफ़ाई देते देते परेशान हो गए तो अपना तख़ल्लुस बदल कर ग़ालिब रख लिया । अब भी उनकी बहुत सी ग़ज़लें असद उपनाम से मिलती हैं ।

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अब मुन्तशिर का मायने तो अस्त व्यस्त बिखरा हुआ होता है । जिसकी कोई चीज़ सलीक़े और करीने से न सजी हो गोया राहुल गांधी की दाढ़ी । तो संवाद लेखन में वही पुट झलकता है । एक तो हिंदी उर्दू समेत सभी देशज भाषाएँ संकट के दौर से गुजर रही हैं । कभी के अत्यंत प्रचलित शब्द विलुप्त होते जा रहे हैं । अंग्रेज़ी के मिश्रण ने हिंदी को हिंग्लिश बना दिया । हिंदी में कभी गालियाँ भी बड़ी मीठी होती थीं उर्दू ने तमाम गालियाँ हिंदी में घुसा दीं । अब मनोज मुंतशिर उस भाषा को रामायण में घुसा लाए हैं ।

बजरंग बली की सौम्य अतुलित बल धामं और ज्ञानिनाम अग्रगण्यम् की छवि को इन संवादों ने बहुत चोट पहुँचाई है । इसको वही समझ सकता है जिसने वाल्मीकि रामायण में राम हनुमान भेंट का प्रकरण पढ़ा होगा । जब ऋष्यमूक पर्वत से सुग्रीव के दूत बन कर हनुमान श्री राम का परिचय लेने जाते हैं तो राम चकित हो जाते हैं । वे लक्ष्मण से उनकी संवाद शैली, शब्दों का चयन और पूरी तरह व्याकरण निष्ठ भाषा की जम कर प्रशंसा करते हैं । कभी अवसर मिले तो वाल्मीकि रामायण का किष्किन्धा कांड पढ़िए ।

भाषा से ही किसी के संस्कार शिक्षा दीक्षा और सभ्यता का पता चलता है तिस पर वे रामदूत बन कर लंका गए थे जहां उनकी सम्पूर्ण योग्यता दाँव पर लगी थी । जो संवाद मुंतशिर ने लिखे हैं मैं तो यहाँ हनुमान जी के प्रति श्रद्धा के कारण दोहरा भी नहीं सकता ।

शालीन और शिष्ट भाषा से जितनी चोट पहुँचाई जा सकती है गाली-गलौज से उसकी शतांश भी नहीं ।

जय जय जय हनुमान गुसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)(Title courtesy:Dayanand Pandey)

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