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दुनिया के किसी देश में संघीय राजधानी की ऐसी दुर्दशा नहीं, जितनी केजरीवाल ने दिल्ली की कर दी

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
दिल्ली को २००१ में ही संसद पर हमले के तुरंत बाद ही फिर से केंद्र शासित प्रदेश बना दिया चाहिए था । यह दोहरी शासन व्यवस्था किसी के भी हित में नहीं है । आज हाल यह है कि न तो दिल्ली पूरी तरह से केंद्र शासित क्षेत्र है और न पूर्ण राज्य । जब से केजरीवाल सरकार आई है केंद्र और इस अर्द्ध राज्य में रस्साकशी चलती ही रहती है ।

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दुनिया के किसी देश में संघीय राजधानी की ऐसी दुर्दशा नहीं है । अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन ( डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कोलंबिया) में मेयर और कौंसिल की व्यवस्था चलती है जिस पर संघ का पूरा नियंत्रण रहता है । यद्यपि वाशिंगटन में कार्यपालिका न्यायपालिका और विधायिका का पृथक्करण लागू हैं फिर भी संघीय विधायिका को कभी भी हस्तक्षेप करने का अधिकार है ।

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जिस शहर में देश का राष्ट्रपति प्रधानमंत्री संसद और सर्वोच्च न्यायालय स्थित हो वहाँ और उसके आस पास के क्षेत्र पर केंद्र सरकार का निर्विवाद नियंत्रण होना ही चाहिए । पता नहीं किस झोंक में दिल्ली को एनसीटी बना कर अर्द्ध राज्य बना दिया गया । लोकतंत्र को इतना भी विस्तार देना उचित नहीं है कि राजधानी की सुरक्षा ही ख़तरे में पड़ जाए ।

दिल्ली एक अभिशप्त शहर है । यह कई बार उजड़ा और बसा है । मुहम्मद तुग़लक़ों ने इसकी बड़ी दुर्दशा की है । यहाँ अक्सर दोहरी शासन व्यवस्था बनती बिगड़ती रही है । कभी यहाँ मराठों का राज था और मुग़ल बादशाह उनका कठपुतली था । पानीपत की हार के बाद कुछ दिनों तक रोहिल्ला पठानों का बोलबाला रहा मगर फिर सिख चढ़ आए । सरदार बघेल सिंह ने दिल्ली पर क़ब्ज़ा करके शीशगंज और बंगला साहिब जैसे कई गुरुद्वारों का निर्माण कराया । मराठों ने फिर रुहेलों को बरेली तक खदेड़ा और दिल्ली पर आधिपत्य कर लिया । १८०३ में दिल्ली की जंग में कम्पनी ने मराठों को पराजित कर स्थाई रूप से दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया । मुग़ल बादशाह लालक़िले और पुरानी दिल्ली तक सीमित हो गया । १८५७ में बादशाह भी बेतख़्तो ताज होकर रुसवा हुए और अंग्रेजों की भारत विजय पूरी हुई ।

दिल्ली भारत की राजधानी है और उसको उतना ही गौरवपूर्ण शहर दिखना भी चाहिए । आज दिल्ली का अर्थ घोर अराजकता है । कभी लाल क़िले पर घोड़े दौड़ा दिये जाते हैं कभी गली मोहल्लों में चाकू छुरियाँ चलती हैं , छतों पर कड़ाबीनें फ़िट करके दूर दूर तक पेट्रोल बम फेंके जाते हैं । यह सब शोभा नहीं देता । न इतनी ढील ठीक है न इतना लोकतंत्र ।

चेहरे पे सारे शहर के गर्द ए मलाल है
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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