तारिक फ़तह से जितने लोग मुहब्बत करने वाले हैं उससे कम नफ़रत करने वाले भी नहीं हैं
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
तारिक फ़तह से जितने लोग मुहब्बत करने वाले हैं उससे कम नफ़रत करने वाले भी नहीं हैं । तारिक कभी इस्लाम की आलोचना नहीं करते थे बल्कि इस्लाम के नाम पर झूठे गौरव और पाखंड की बखिया उधेड़ देते थे । अच्छा से अच्छा मौलवी उनके छोटे से चुभते हुए तर्क से तिलमिला कर रह जाता था ।
एक बानगी देखिए,
एक मौलवी साहब औरंगज़ेब की बहुत तारीफ़ें कर रहे थे और उसे सच्चा और अनुकरणीय मुसलमान साबित कर रहे थे ।
तारिक फ़तह ने उससे सिर्फ़ एक सवाल किया कि अगर औरंगज़ेब एक सच्चा मुसलमान था तो क्या उसने हज की थी ?
मौलवी साहब बग़लें झाँकते नज़र आने लगे और उनकी सारी पिछली तारीफ़ों पर फ़तह साहब के एक सवाल ने पानी फेर दिया ।
किसी मुसलमान पर हज उतना ही बड़ा फ़र्ज़ है जितने कि नमाज़ रोज़ा और ज़कात । इनमें से कोई एक दूसरे की भरपाई नहीं कर सकता । चारों ही अलग अलग फ़र्ज़ हैं । कोई भी मुस्लिम जब बालिग़ हो जाए और हज करने के लायक़ स्वास्थ्य और आमदनी हो तो हज तुरन्त फ़र्ज़ हो जाती है । अल्लाह ने औरंगज़ेब को ९६ साल की लम्बी उम्र दी , बचपन से बुढ़ापे तक तंदुरुस्त रखा । पहले शाहज़ादा फिर बादशाह बनाया । हज में दुनियावी मसायल की वजह से कोई माफ़ी नहीं है । अगर सामर्थ्यवान होते हुए भी ९६ साल की उम्र तक औरंगज़ेब हज नहीं करता तो या तो उसका हज के फ़र्ज़ होने पर ईमान नहीं है या उसे ईश्वर पर भरोसा नहीं है कि वह हज करने गया तो वापस उसकी गद्दी उसे मिलेगी या नहीं । उसका पंजवक्ता नमाज़ी होना और टोपियाँ सिल कर रोज़ी कमाना सब बेकार गया । हज को महत्व न देना और उसको टालना दोनों ही गुनाहे कबीरा यानी घोर पाप हैं ।
तारिक फ़तह के ऐसे ही तर्कों की वजह से मेरे दिल में उनके लिए बहुत क़द्र थी । अफ़सोस कि आज वह नहीं रहे ।
ख़ुदा मग़फ़िरत करे
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)