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हत्यारे अतीक़ और अशरफ को इंसाफ दिलाने और मुख्यमंत्री योगी को फंसाने के लिए अमिताभ ठाकुर ने आज PIL लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यो पहुंच गया है?

- सतीश चंद्र मिश्रा की कलम से-

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
दर्जनों हत्याओं, सैकडों जमीन लूट, के 100 से अधिक मुकदमों में नामजद अतीक़ अहमद और अशरफ की मौत के गम में अपनी छाती कूटते हुए, अपनी खोपड़ी पटकते हुए, उस हत्यारे अतीक़ और अशरफ को इंसाफ दिलाने, मुख्यमंत्री योगी को फंसाने के लिए अमिताभ ठाकुर आज PIL लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। हालांकि इस अमिताभ ठाकुर का सच आठ वर्ष पूर्व लिख चुका हूं। लेकिन आज उमड़े इस के अतीक़ प्रेम के कुकर्म पर पुनः इसका शर्मनाक सच उजागर कर रहा हूं। इसे पढ़कर आपके मन में अमिताभ ठाकुर को लेकर उपजे सभी भ्रम और सवाल समाप्त हो जाएंगे।
दरअसल केजरीवाल की टक्कर का खिलाड़ी और उससे बड़ा कलाकार है अमिताभ ठाकुर। 2021 में उत्तरप्रदेश पुलिस से मुख्यमंत्री योगी द्वारा खदेड़ा गया पुलिस अधिकारी है अमिताभ ठाकुर। सोशल मीडिया में अपने पक्ष में प्रायोजित हुल्लड़ और हुड़दंग कराता रहा है। 8 वर्ष पूर्व मुलायम सिंह यादव की नाराजगी के परिणामस्वरूप इसके विरुद्ध जब FIR दर्ज हुई थी इसने तब भी अपने पक्ष में सोशल मीडिया में प्रायोजित हुल्लड़ और हुड़दंग कराया था। मैंने उस समय भी 12 जुलाई 2015 को अमिताभ ठाकुर की वास्तविकता का उल्लेख अपनी पोस्ट में किया था। संयोग से उस पोस्ट में मैंने उन शैलेन्द्र कुमार सिंह का भी उल्लेख किया था, जो कुख्यात माफिया सरगना मुख्तार अंसारी के खिलाफ लड़ी गयी अपनी जंग के कारण पिछले दिनों बहुत चर्चा में रहे हैं।
दुर्दांत हत्यारे अतीक़ और अशरफ के लिए आंसू बहाते हुए उन हत्यारों को इंसाफ दिलाने जो अमिताभ ठाकुर आज सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है, वो 2004 में भी वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी था और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की रिकॉर्ड तोड़ चमचागिरी में जुटा हुआ था जब
फ़रवरी 2004 में तेज तर्रार ईमानदार तेवरों वाले एक नौजवान पुलिस उपाधीक्षक(डिप्टी एसपी) ने एक कुख्यात अपराधी को सेना के एक भगोड़े से लाइट मशीनगन खरीदते हुए लाइट मशीनगन सहित रंगे हाथों पकड़ा था. पुलिस उपाधीक्षक(डिप्टी एसपी) ने इस पूरे केस की अपनी पड़ताल में कुख्यात बाहुबली सरगना विधायक मुख़्तार अंसारी को इस पूरे केस का सूत्रधार सरगना पाया था. परिणामस्वरूप उन्होंने मुख़्तार के विरुद्ध पोटा के तहत कार्रवाई कर मुख़्तार की फिरफ्तारी की अनुमति तत्कालीन सपा सरकार से मांगी थी. अनुमति देने के बजाय उन्हें उस केस से मुख़्तार का नाम हटा देने का आदेश दिया गया था, जिसे मानने से उन्होंने इनकार कर दिया था. इसके जवाब में सरकार ने वाराणसी स्थित पुलिस की उस स्पेशल टॉस्क फ़ोर्स(STF) का ऑफिस ही खत्म कर दिया था जिस STF में वह डिप्टी एसपी तैनात था. इसके अलावा वाराणसी जोन और रेंज के आईजी, डीआईजी को भी हटा दिया था. इस अत्यंत कठोर और कुटिल सरकारी कार्रवाई के जवाब में उस नौजवान डिप्टी एसपी ने उस सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ सीधे मोर्चा खोल दिया था और उस केस में मजबूत साक्ष्यों की आधिकारिक लिखापढ़ी कर के मुख़्तार को नामजद करने के बाद अपना त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप दिया था. वो केस आज भी न्यायलय में है उन डिप्टी एसपी से मेरी मुलाक़ात यदाकदा होती रहती है और वो पूर्ण आत्मविश्वास से कहते हैं कि, सरकारी संरक्षण के चलते केस में देर चाहे जितनी की जाए लेकिन जिस दिन फैसला होगा उसदिन मुख़्तार को सजा जरूर होगी क्योंकि मैंने अपनी जाँच के बाद ऐसे दस्तावेज़ी सबूत आधिकारिक तौर पर जमा कराये हैं जिन्हें नकारना असम्भव होगा और मैं खुद उस केस का प्रमुख गवाह भी हूं। उस नौजवान डिप्टी एसपी का यह इकलौता कारनामा ही नहीं था बल्कि अपने छोटे से कार्यकाल में कई दिग्गज राजनीतिज्ञों से सीधे टकरा कर उन्हें और उनके गुर्गों को जेल भिजवाने के कई अभूतपूर्व कारनामों को उन्होंने अंजाम दिया था।
लेकिन अमिताभ ठाकुर ने उन शैलेंद्र सिंह का साथ नहीं दिया था। उनके समर्थन में एक शब्द और मुख्तार व मुलायम के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला था।
शैलेन्द्र कुमार सिंह जी की ही भांति इस अमिताभ ठाकुर के नाम के साथ एक भी ऐसा कारनामा नहीं दर्ज़ है जहां उसने अपने पद की शक्ति और अधिकार का प्रयोग कर के राजनीति या अपराध जगत के किसी मठाधीश को गिरफ्तार कर के सींखचों के पीछे पहुँचाया हो। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के रूप में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान मुख्तार अंसारी और अतीक़ अहमद सरीखे हत्यारे माफियाओं का पूरा चरमकाल इसने देखा पर उन माफियाओं और उनके गॉडफ़ादर सत्ताधारी नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई की कोशिश करना तो दूर की बात, इसने कभी एक शब्द नहीं बोला था। हां, प्रदेश में किसी भी चर्चित अपराधिक घटना के घटनास्थल का दौरा किसी पुलिस अधिकारी की हैसियत से करने के बजाय व्यक्तिगत रूप से करता था, मीडिया में सनसनीखेज बयानबाजी करना कभी नहीं भूलता था।
इसी लखनऊ में हुए लगभग आधा दर्जन अत्यंत जघन्य अपराध जब चर्चित हुए तो चर्चा की उस गंगा में अमिताभ ठाकुर ने अपने बयानों के हाथ जमकर धोये लेकिन समय के साथ उन अपराधों के विरुद्ध कार्रवाई के नाम पर उड़ाई गयी धूल का शिकार बने उन अपराधिक घटनाओं के पीड़ितों का हाल सरकार के साथ साथ अमिताभ ठाकुर और उनकी “एक्टिविस्ट”/नेता पत्नी ने भी कभी नहीं पूछा।
PIL को धंधा बनाने के लिए इसकी की नेता/एक्टिविस्ट पत्नी इतनी कुख्यात हो चुकी थी कि जो PIL केवल एक रू फ़ीस के साथ दायर करने का नियम है, उसके लिए इसकी नेता/एक्टिविस्ट पत्नी पर न्यायालय ने 25000 रू फ़ीस देने की बंदिश लगाई हुई है।
मुलायम सिंह यादव की उनको धमकी वाला जो ऑडियो इसने सोशलमीडिया में वाइरल किया था उसमे इसे मुलायम सिंह द्वारा पुरानी घटना की याद दिलाते हुए सुधर जाने की सलाह दी जा रही थी, मुलायम सिंह द्वारा इसको यह भी याद दिलाया जा रहा था कि “उसबार तुम्हारे घरवालों की सिफारिश पर तुमको छोड़ दिया था।”
अमिताभ ठाकुर ने कभी नहीं बताया कि वो पूरा मामला क्या था.?
अंत में उल्लेख कर दूँ कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अमिताभ ठाकुर की “एक्टिविस्ट”/नेता पत्नी लखनऊ से AAP का टिकट मांगने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए थीं। और अपनी नेता पत्नी के लिए ये अमिताभ ठाकुर मीडिया में जमकर लॉबिंग करने में जुटा हुआ था।
इसीलिए इस राजनीतिक प्रशासनिक मानवाधिकार एक्टिविस्ट की खाल में छुपे मुख्तार, अतीक़ और अशरफ सरीखे माफियाओं के हमदर्द, पक्षकार, पैरोकार अमिताभ ठाकुर को बेनकाब करना जरूरी था।
अंत में याद दिला दूं कि, इस अमिताभ ठाकुर के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने वाले मुलायम सिंह यादव यदि दूध के धुले नहीं थे तो अमिताभ ठाकुर भी चरणामृत का नहाया नहीं था।

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साभार:सतीश चन्द्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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