क्या राष्ट्रवादी काजल हिंदुस्तानी की गिरफ्तारी के बाद कई और काजल हमारे बीच आएंगी ?
विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
काजल हिंदुस्तानी से वर्चुअल समाज उतना परिचित नहीं है, जितनी कि मूर्त सभाएं। किसी मिलियन आंकड़े में सोशल मीडिया पर उनके फॉलोअर्स भी नहीं। हाँ, ट्विटर पर हम लोगों में से जुड़े लोग उन्हें अवश्य जानते हैं। छोटी सी उनकी फॉलोअर लिस्ट में स्वयं पीएम मोदी भी दाखिल हुए हैं। काजल हिंदुस्तानी जमीन पर कार्य करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता हैं। लेकिन वक्ता भी उतनी ही प्रखर हैं। जब वह बोलती हैं तो सभा में बैठा अंतिम व्यक्ति भी उनको सुनता है। ऐसा समझना ठीक होगा कि हिंदुत्व और राष्ट्र विमर्श के मुद्दे पर कोई भी जनसभा उनको सुने बिना वापस लौटने को राजी ना हो।
विश्व हिंदू परिषद के मंचो पर वे एक नियमित वक्ता रही हैं। आत्मरक्षा में शस्त्र उठाने का आह्वान करने पर उनके ऊपर मामला दर्ज हो जाता है और उनकी गिरफ्तारी हो जाती है। बिहार सरकार में आरजेडी विधायक नेहलुद्दीन ने कहा कि सासाराम के मुसलमान आत्मरक्षा में बम बना रहे थे। नेहलुद्दीन पर किसी ने शिकायत दर्ज नहीं कराई, गिरफ्तारी तो दूर। इसका कारण क्या है? इसका कारण शस्त्र उठाने के आवाहन से लेकर इसके इस्तेमाल के बीच की एक लम्बी दूरी है। बम बनाना शस्त्र का इस्तेमाल है। हिंदुत्व अभी आवाहन मोड में है। आवाहन पर विवाद हो सकता है, इस्तेमाल पर विवाद का क्या काम? इस्तेमाल तो जब होता है तब सारा ध्यान डिफेंस की ओर चला जाता है। हमें आवाहन से इस्तेमाल के बीच की एक लंबी यात्रा तय करनी है।
काजल हिंदुस्तानी की गिरफ्तारी विवाद और न्याय के बीच संघर्ष भर की बात नहीं है। इस मुद्दे पर अटककर सरकार और प्रशासन के खिलाफ बातें करना हमारी परिपक्वता नहीं है। क्योंकि काजल हिंदुस्तानी अगर हमारी पसंदीदा हैं, तो वे नरेंद्र मोदी के भी उतनी ही पसंदीदा हैं। दरअसल काजल हिंदुस्तानी की गिरफ्तारी हम से पूछना चाहता है कि हम हमारा लक्ष्य साधने का क्या तरीका तय करते हैं? और उसमें हम कितना दृढ़ हैं? दो स्पष्ट रास्ते हैं हमारे पास – पहला, जिस कट्टरता से हमें लड़ना है, इसके लिए उसी द्वारा तय किए गए कट्टर तरीकों को अपनाना। और दूसरा, हिंदुत्व का अपना ऑर्गेनिक तरीका, जिसमें बुध्द भी है और युद्ध भी, जिसमें प्रेम भी है और त्याग भी, जिसमें वध भी है और बलिदान भी। एक रास्ता मजहब का है और दूसरा धर्म का।
काजल हिंदुस्तानी इन दोनों मार्गों की संधि पर खड़ी हैं। और उनकी गिरफ्तारी, मजहबी हो जाने अथवा धार्मिक हो जाने के बीच का ही एक संघर्ष है। इस संघर्ष का अपना एक ठहराव अपना एक आनंद है। यहां से आगे बढ़ने पर यात्रा हमें सोचने का वक्त भी नहीं देगा। मजहबी हो जाना कठिन नहीं है। धार्मिक हो जाना कठिन। दोनों से ही हिंदुत्व की प्राप्ति हो सकती है। लेकिन दोनों से प्राप्त हिंदुत्व की तस्वीरें बहुत अलग अलग होगीं। काजल हिंदुस्तानी के गिरफ्तारी अथवा नूपुर शर्मा पर प्रतिबंध का अर्थ यह नहीं कि अब ऐसे लोग हमारे बीच खत्म हो गए। बल्कि इन दो लोगों का कानूनी आत्मसमर्पण, ऐसे 200 अतिरिक्त लोगों के खड़े होने के लिए पर्याप्त है।
बीजेपी आरएसएस का प्रयास हिंदुत्व को धार्मिक स्वरूप देने का है। तो यहां पर दो बातें संभव हैं- काजल की गिरफ्तारी से कई और काजल और नूपुर हमारे बीच आएंगी। और आवाहन से इस्तेमाल तक की यात्रा तय करेंगी। फिर काजल जैसे राष्ट्रवादियों की गिरफ्तारी अपने आप तब बंद हो जाएगी, जब काजल की आवाज लाख दस लाख नहीं, बल्कि करोड़ों जन की आवाज बन जाएगी। दूसरा, यह कि आगे जो वक्ता आएंगे, वे काजल की तरह बोलना बंद कर देंगे और वध के साथ बलिदान की कीमत चुकाते हुए यात्रा तय करेंगे। हमें सोचना है अवसर अभी शेष है, कि हमें कौन सा रास्ता अख्तियार करना है? लक्ष्य तो एक ही है, हिंदुत्व।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)