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क्या आप मोदी की ‘माया’ पॉलिटिक्स के बारे में जानते है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
कैडर की राजनीति में भाजपा की चांदी है। इस जोन में तो कोई भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकता, लेकिन बाकी के दलों के पास भी अपने-अपने स्ट्रांग पॉइंट्स हैं। किसी के पास जातिवाद है, तो किसी के पास इतिहास और इमोशन है। अटैक पॉलिटिक्स में कांग्रेस आज भी बेहतरीन कर रही है। जब कांग्रेस ने ‘चौकीदार चोर है’ कहा था, तब सच्चाई जो भी हो, लेकिन लगा था भाजपा की राजनीति ऊपर से नीचे तक हिल गई है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने ट्विटर के अपने बायो में ‘मैं हूं चौकीदार’ लिखना पड़ा। उसके बाद भाजपा के सारे मंत्री कार्यकर्ता और समर्थक भी इसी प्रकार काउंटर में उतरे। राहुल गांधी को अदालत में घसीटना पड़ा, उनसे माफी मंगवानी पड़ी। आसान नहीं था ओवरकम।

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फिर राफेल हो चाहे पेगासस का मुद्दा, कुछ समय के लिए ही सही, कांग्रेस की वर्चुअल पॉलिटिक्स के कारण भाजपा को डिफेंसिव मोड में अवश्य आना पड़ा। अब जब बात अडानी अंबानी पर आई है ,तो फिलहाल इतना आसान तो नहीं लग रहा कि भाजपा इस मुद्दे से सहजता से पीछा छुड़ा पाएगी। एक मामूली सी घटना, रवीश कुमार का एनडीटीवी से इस्तीफा देना है। और किंतु नॉन कैडर पॉलिटिक्स की गहराई देखिए, कि जब सिलसिला शुरू हुआ, तो लोकतंत्र की तीन में से दो बड़ी संस्थाएं इंवॉल्व हो गई। संसद से राहुल गांधी का निष्कासन और न्यायालय में अदानी मामले पर जांच को लेकर समिति का गठन। मामूली सी तो बात थी। एनडीटीवी का डूबना रवीश कुमार सहन नहीं कर सके और न्यूयॉर्क जाकर हिंडेनबर्ग के साथ गुल खिला आए।

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मोदी जी कभी अटैक पॉलिटिक्स के लिए नहीं जाने गए। मोदी जी की राजनीति का एक अलग ही स्तर है। विरोधियों की राजनीति को ही अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल कर लेना मोदी पॉलिटिक्स है। विरोधियों की राजनीति जब पीक पर पहुंच जाती है, उसके बाद मोदी नाम के पॉलीटिशियन की पॉलिटिक्स शुरू ही होती है। और विरोधियों के सारे प्रयास को झटके में भुना लेती है। विरोधियों की अदानी पर पॉलिटिक्स तब अपने पीक पर पहुंच जाती है, जब राहुल गांधी को संसद से निष्कासित कर दिया जाता है। इस वक्त तक मोदी राजनीति नहीं करते हैं, नियम और कायदे से मुद्दे का सामना करते हैं। लेकिन राजनीति का बढ़िया जवाब राजनीति ही है। फिर अचानक से राष्ट्रवादी कांग्रेस के शरद पवार एक इंटरव्यू में हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के खिलाफ जाकर अडानी को सपोर्ट करते हैं। इतना ही नहीं, साफगोई से बताते भी हैं कि वे लोग भी टाटा के विरोध की राजनीति करते थे और बाद में समझ में आया कि विरोध गलत था, देश जरूरी है।

मोदी पॉलिटिक्स का ऐसा पत्ता, जिसे शरद पवार के प्रवक्ता तक समझ संभाल नहीं पा रहे। लेकिन जो होना था वो तो हो गया। मोदी पॉलिटिक्स ने महाराष्ट्र में दूसरे मायावती की खोज कर ली। मोदी ने बार-बार प्रमाणित किया है कि अटैक पॉलिटिक्स यदि कांग्रेस का क्षेत्र है, तो काउंटर पॉलिटिक्स में मोदी से माहिर कोई नहीं। सबको मालूम है कि सावरकर का समर्थन करने से मोदी राजनीति का कुछ नहीं बिगड़ जाएगा। लेकिन सावरकर के विरोध से कांग्रेस की महाराष्ट्र में जमीन पूरी तरह खिसक सकती है। इसलिए सावरकर के मुद्दे पर भी राहुल गांधी को ऐसा काउंटर मिला कि उसे दबे पांव अपने सहयोगी दलों से सावरकर के मुद्दे पर चुप्पी की समझौता करनी पड़ी। मोदी के समर्थकों में भी बड़ा लोकतंत्र है। इसलिए मोदी अपने विरोधियों को साधने के लिए तो जाने ही जाते हैं, लेकिन समर्थकों को भी कई बार बैकफुट पर लाए हैं। भारत की राजनीति में तमाम राजनेता हुए, और होंगे, मोदी शायद ना हो।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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