Positive India:Vishal Jha:
कोई भी भावना पहली दफा जिस आवाज में कही जाती है, वही आवाज उस भावना की सबसे ईमानदार प्रतिनिधि है। भोला(Bhola) कैथी नाम से तमिल में 2019 में बनी फिल्म है। क्षेत्रीय फिल्मों में कहानियों के जो भाव होते हैं, उस भाव को छूना क्षेत्रिय भाषा से ही बेहतर संभव है। और बॉलीवुड उसका ट्रांसलेशन करता है। क्योंकि बॉलीवुड के पास ट्रांसलेशन से ज्यादा का सामर्थ्य भी नहीं। फिर जब किसी भाव को उसकी अपनी प्राकृतिक आवाज से दूसरी भाषा में ट्रांसलेट करके ले जाया जाता है, तब ही उस कहानी की पहली मृत्यु हो जाती है। बड़ी बात है कि तमिल वालों ने कैथी को बनाने में महज 25 करोड़ खर्च किये और 4 गुना से अधिक की कमाई कर ली। इतनी सी बात में बॉलीवुड 100 करोड़ कैसे खर्च कर देता है? फिल्म की जो आत्मा है वह तो मर चुकी होती है। उसके पार्थिव को बॉलीवुड जितना बेहतर सजा ले!
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे नाम बॉलीवुड का बेंचमार्क है। लेकिन आज ऐसे नामों पर किसी को लज्जा आ जाए, तो जागृति की बात है। ट्विटर पर जेम्स ऑफ बॉलीवुड नाम से एक अकाउंट है। ऐसे कई अकाउंट हैं जो पूरी थ्रेड लिखता है, कि कौन सी फिल्मों के कौन से गाने विदेशी मुल्कों के किस फिल्म से चुराए गए हैं? गाने के केवल बोल बदल जाते हैं। संगीत और नृत्य की एक-एक सांस तक मैच कर जाती है। यदि बॉलीवुड अपनी मेधा से कुछ करता, तो जो परिणाम आते, ऑर्गेनिक होते। बनावटी होना तो मुर्दा होना है। और मुर्दे की कही कोई पूछ होती है? दुनिया में यही कारण है बॉलीवुड के कृतियों को कचरे के भाव भी मोल नहीं दिया जाता।
पठान फिल्म को लेकर बॉलीवुड इतना जज्बाती हो गया, उसे लगा पठान हिट कराने का मतलब है बॉलीवुड को जिंदा कर लेना। उन्हें लगा पठान हिट कराने का मतलब है बहिष्कार करने वाले भारतीयों के मुंह पर थूकना। इसी जज्बात में उन्होंने अपने पैसे से फिल्म भी बनाई और अपने ही पैसे मजहबी इबादतगाहों के जरिए भारत के कोने कोने में पहुंचाया। फिल्म की कमाई इतनी अधिक हो गई कि भारतीय सिनेमा का इतिहास टूट गया। लगा बॉलीवुड जिंदा हो उठा। फिर आज अजय देवगन के साथ क्या हो गया? अजय देवगन तो कभी बहिष्कार के हत्थे भी नहीं चढ़े। तमाम विरोध प्रतिरोध को ताक पर रखकर जब उन्होंने दृश्यम-2 को प्रमोट करने की बारी आई, चादर लेकर पहुंच गए दरगाह अजमेर शरीफ। इतना कॉन्फिडेंस अजय देवगन लाए कहां से? इसी कॉन्फिडेंस का नतीजा है कि 100 करोड़ की भोला में पैसे लगा दिए।
भोला का फ्लॉप होना एक फिल्म का फ्लॉप होना भर नहीं है। भोला का फ्लॉप होना बस अजय देवगन की स्टारडम का फ्लॉप होना नहीं है। भोला का फ्लॉप होना बॉलीवुड के बहिष्कार पर केवल एक मुहर भर नहीं है। बल्कि भोला का फ्लॉप होना बॉलीवुड का फ्लॉप होना है। भोला के फ्लॉप होने का मतलब नकली और सड़ी हुई मेधा और बालीवुड नेपोटिज्म का फ्लॉप होना भी है। दाऊद नेक्सस का फ्लॉप होना भी है। भोला के फ्लॉप होने का मतलब फिल्म के नाम पर स्टंट दिखाने का बहिष्कार है। भोला के फ्लॉप होने का मतलब निष्प्राण कहानियों के पार्थिव का बहिष्कार है। इस फ्लॉप का मतलब बॉलीवुड का लैंडमार्क पतन है। इस फ्लॉप का मतलब एक जीवित मेधा की खोज भी है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)