क्या बिहार में भागलपुर दंगा पार्ट टू को कभी नहीं दोहराया जा सकेगा ?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
बिहार में भागलपुर दंगा अब कभी नहीं दोहराया जा सकेगा। कमेंट बॉक्स में एक मित्र ने प्रश्न उठाया कि बिहार को भागलपुर काण्ड पार्ट 2 की आवश्यकता है। भागलपुर काण्ड अक्टूबर 1989 में हुआ था। दरअसल हिंदुओं का जुलूस भागलपुर के परबत्ती इलाके से निकल रहा था, तो जुलूस के ऊपर पत्थरबाजी की गई। इस पत्थरबाजी से मामला जब आगे बढ़ा तो परिणाम कुछ ऐसा आया कि भागलपुर दोबारा कभी वैसे दंगे का गवाह नहीं बन सका। 1989 में 24 अक्टूबर को राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थर इकट्ठा कर रहे एक जुलूस जिसका नाम रामशिला जुलूस था, निकाला गया। पुलिस ने मुस्लिम इलाकों से जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी। क्योंकि 3 महीने पहले एक लोकदेवी ‘विषधर माई’ का वार्षिक जुलूस निकला था और स्थिति दंगा होने होने को हो गया था।
रामशिला जुलूस प्रशासन के मना करने के बावजूद अपने तय रूट से ही निकला। लेकिन जुलूस जब पर्बत्ती इलाके में पहुंचा तो मुस्लिम स्कूल के निकट जुलूस के ऊपर बम फेंका गया। सुरक्षा में लगे पुलिसवाले घायल हुए और सभी सुरक्षाकर्मी बम से निकले हुए धुएं में छिप गए। जुलूस रुका नहीं आगे बढ़ गया। काउंटर में मुसलमानों ने टोलियां बनाकर हिंदू विरोधी और देश विरोधी डरावने नारे लगाने आरंभ कर दिए। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन कांग्रेसी सांसद भागवत झा आजाद ने पैसों का इस्तेमाल कर मुसलमानों को समझा बुझा दिया। क्योंकि भागवत झा की नजर मुसलमानों के वोट बैंक पर थी। बावजूद इसके मुसलमान माने नहीं और दंगा शुरू हो गया।
कामेश्वर यादव पर्बत्ती के पहलवान एक क्षत्रिय यदुवंशी हुआ करते थे। पीड़ित हिंदु उनकी शरण में गए तो कामेश्वर सिंह यादव अपने 200 साथियों के साथ दुर्गा माई के नाम पर म्यान से अपनी अपनी तलवार खींच लीं। मुसलमानों को लगा कि 200 की संख्या कम है और मुसलमानों की संख्या ज्यादा है इसीलिए मुसलमानों ने भी पूरी ताकत के साथ कामेश्वर यादव गैंग का सामना किया। फिर भी मुसलमान कमजोर पड़ गए और 3 दिन तक कत्लेआम हुआ। दंगे की आग चंंधेरी गांव पहुंचा। मुसलमानों को पलायन करना पड़ा। जो पलायन नहीं किए ऐसे 125 लोग शेख मिन्नत के एक बड़े घर में छुप गए। रात भर छिपे रहे। पुलिस आश्वासन देकर गया कि सुबह उन्हें सेना के सहारे सुरक्षित निकाल लिया जाएगा। लेकिन सुबह ऐसा ना हो सका। सुबह दरवाजे पर यादव के साथ दुसाध-कुर्मी सभी जाति के लोग पहुंच गए और उन्हें वापस निकालने के नाम पर उन पर हमला कर दिया। पर्याप्त कैजुअल्टीज हुईं।
रामचंद्र सिंह पुलिस अधिकारी रह चुके थे। उनके नेतृत्व में लगैन गांव में गैंगवार हुआ। इस गैंगवार में सवा सौ से ऊपर लोग मारे गए। लाशों को किसान के खेतों में दफना दिया गया। और 2021 में बंगाल में जब हिंसा हुई तो पीड़ित हिंदुओं को बिहार के लोगों ने ताना दिया, कि क्या बंगाल के लोगों को गोभी की खेती करना नहीं आती? दरअसल 1989 में जिस खेत में लाशें दफन की गई थी, उसके ऊपर गोभी की खेती किया गया था। हिंसा इतना व्यापक रूप ले चुका था कि यह तकरीबन ढाई सौ गांवों को अपनी चपेट में ले चुका था। और 50000 लोग बेघर हुए थे। भागलपुर दंगा को लेकर लगातार जस्टिसों के नेतृत्व में कमेटियों ने जांच रिपोर्ट प्रस्तुत किया। समय-समय पर कईयों को सजा होती रही। कामेश्वर यादव को उम्र कैद मिला।
’90 में जनता दल की सरकार आई। लालू यादव मुख्यमंत्री बने। चुनावी लड़ाई दंगा कराने वालों को सजा दिलाने के नाम पर लड़ी गई। लेकिन जब लालू यादव सत्ता में आए तो जस्टिस आरएन प्रसाद की जांच रिपोर्ट को उन्होंने अपनी राजनीति का संजीवनी बना दिया। उस रिपोर्ट में पुलिस को क्लीन चिट और मुसलमानों को दोषी बताया गया था। इस रिपोर्ट को आधार बनाकर लालू यादव सरकार के बूते कामेश्वर यादव को आखिरकार 2017 में रिहाई मिल गई। कहा जाता है कि लालू यादव की राजनीति ने कामेश्वर यादव की रिहाई से यादव वोट बैंक को साध लिया था। जबकि कामेश्वर यादव के हिंदुत्व समर्थक होने के बावजूद भाजपा ने कभी भी जाती पाती साधने की कोशिश नहीं की। चीफ जस्टिस आरएन प्रसाद की रिपोर्ट में जिसमें मुसलमानों को दोषी बताया गया था, तो इस रिपोर्ट से मुसलमान नाराज ना हो जाए इसके लिए लालू यादव ने आडवाणी जी की राम रथ यात्रा को समस्तीपुर में रूकवा कर मुस्लिम वोट बैंक को साध लिया। इस प्रकार एक दूसरे के खिलाफ यादव मुसलमान ऐसे साथ जुड़े कि एमवाई समीकरण 30 वर्षों तक बिहार जनता पार्टी के दलों का वोट बैंक बना रहा। आज भी बना है। और बिहार को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जाने लगा।
लेकिन जुलूस ऊपर पत्थरबाजी आज भी बंद नहीं हुई। अब बस फर्क इतना है कि लालू यादव के एहसान में बिहार का हर कामेश्वर यादव दब गया और कायरता की हद तक दब गया। अब पत्थरबाजों को जवाब नहीं दिया जाता। अब जिसके ऊपर पत्थरबाजी होती है वह स्वयं पलायन कर जाता है। आज सासाराम में इसलिए पलायन हो रहा है। कहा जाता है एहसान का बोझ कलंक के बोझ से भी भारी होता है और अब किसी कामेश्वर यादव में इतना सामर्थ्य नहीं कि बिहार में हिंदुओं के पलायन को रोकने उठ सके।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)