Positive India:Rajkamal Goswami:
पिता एक बिगड़े हुये जागीरदार थे । छ: शादियाँ मगर वाहिद औलाद हुई जिसका नाम रखा अब्दुल हई । अब ऐसे बाप का क्या भरोसा कब किसे फिर ब्याह लाये तो बच्चा माँ के कदमों तले जन्नत महसूस करते हुए पला बढ़ा । माँ सरदार बेगम का आख़िर तलाक हो गया । इकलौते बच्चे के लिये ख़ूब कोर्ट कचहरी हुई मगर बच्चे ने माँ के साथ रहना पसंद किया और फिर माँ का हो कर रह गया कभी शादी नहीं की ।
साहिर लुधियानवी(Sahir Ludhianvi) की ज़िंदगी बड़े तीख़े मोड़ों वाली पहाड़ी बस के सफर की तरह है कि गहरी खाइयों और ऊँचे पहाड़ों के बीच हिचकोले लेते हुए चली जाती है । मुल्क तकसीम हुआ तो साहिर लाहौर में सवेरा के एडीटर थे , नई नई पाकिस्तानी सरकार ने वारंट निकाल दिया तो भाग के भारत आ गये और फिर मुड़ कर नहीं देखा । फिल्मी गानों में जब साहित्य का आनंद लेना हो तो साहिर को सुनिये ।
अपनी एक नज़्म जागीर में एक पुश्तैनी जागीरदार के मनोभावों को चित्रित करते समय उनके सामने उनके पिता के ही ग़ुरूर का अहसास रहा होगा ,
ये लहकते हुए पौधे ये दमकते हुए खेत
पहले अज्दाद की जागीर थे अब मेरे हैं ।
ये चारागाह ये रेवड़ ये मवेशी ये किसान
सब के सब मेरे हैं सब मेरे हैं सब मेरे है ॥
मैं उन अज्दाद का बेटा हूँ जिन्होंने पैहम ।
अजनबी क़ौम के साये की हिमायत की है ॥
ग़दर की साअते नापाक से लेकर अब तक
हर कड़े वक़्त में सरकार की ख़िदमत की है ॥
साहिर का आज जन्मदिन है । महिला दिवस भी । साहिर ने महिलाओं की पीड़ा का बचपन से एहसास किया था और अपने गीतों में उसे शिद्दत से बयान भी किया ।
साहिर लुधियानवी को आज उन के जन्मदिन पर नमन !
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)