मौज मस्ती के महापर्व होली पर ही विदा हो गया मौजमस्ती, हंसी ठहाकों का “कैलेंडर”…. “पप्पू पेजर”
-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
मौज मस्ती के महापर्व होली पर ही विदा हो गया मौजमस्ती हंसी ठहाकों का “कैलेंडर”…. “पप्पू पेजर”….
वह साल था 1987, बॉलीवुड में श्रीदेवी का सितारा बुलंदियों पर था। अमरीश पुरी और अनिल कपूर अपने अभिनय जीवन के शिखर पर थे। तीनों सितारों का जादू देश के सिर पर चढ़ कर बोल रहा था। इसी वर्ष इन तीनों सितारों से सजी कॉमेडी/फैंटेसी फ़िल्म “मिस्टर इंडिया” रिलीज हुई थी। फ़िल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान बना दिये थे। लेकिन इन तीन सितारों की तत्कालीन लोकप्रियता की आंधी के बीच एक नए हास्य कलाकार की छोटी सी भूमिका का जादू पूरे देश के सिने प्रेमियों पर छा गया था।
वह भूमिका थी फ़िल्म “मिस्टर इंडिया” में कैलेंडर नाम से अनिल कपूर व दस अनाथ बच्चों के रसोईया की थी। इस भूमिका को निभाया था सतीश कौशिक ने।
क्योंकि उस दौर को मैंने देखा है, इसलिए यह कह सकता हूं कि, मिस्टर इंडिया फ़िल्म में अगर टाइटल रोल ने अनिल कपूर को, “मोगैम्बो” की भूमिका ने अमरीश पुरी को तथा नायिका सीमा की भूमिका ने श्रीदेवी को लोकप्रियता की नयी बुलंदियों पर पहुंचा दिया था, तो कैलेंडर की अपनी भूमिका से सतीश कौशिक ने मनोरंजन की दुनिया के नए सितारे के उदय का ऐलान कर दिया था। सुपर हिट फिल्म मिस्टर इंडिया का “कैलेंडर” हो, या सुपर फ्लॉप फ़िल्म दीवाना मस्ताना का “पप्पू पेजर” हो, सतीश कौशिक की इन भूमिकाओं को लोग आज भी याद करते हैं। यह उस दौर की बात है जब कादर खान, शक्ति कपूर की जोड़ी हास्य के नाम पर अश्लीलता फूहड़ता भोंडेपन की सारी हदें पार कर रही थी। इन सारी विकृतियों से दूर रहते हुए सतीश कौशिक ने दर्शकों को लगभग दो दशकों तक जमकर गुदगुदाया था। आज भी वह सक्रिय थे। फ़िल्म निर्देशन में भी उन्होंने हाथ आजमाया लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी।
साधारण सामान्य निम्न मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि तथा बेहद सामान्य चेहरे और बेडौल शरीर के साथ ग्लैमर की दुनिया में अपना विशेष स्थान बना गए, अपनी विशेष छाप छोड़ गए सतीश कौशिक ने बहुत जल्दी इस दुनिया को अलविदा कह दिया और पीछे छोड़ गए आनंद फ़िल्म के उस कालजयी डॉयलॉग का संदेश…. बाबू मोशाय, ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे🙏🏻