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क्या पवन खेड़ा में सुर्खाब के पर लगे हैं ?

-अजीत सिंह की कलम से-

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Positive India:Ajit Singh:
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बारे में तो मैं कुछ नहीं बोलूंगा,क्योंकि अवमानना के लपेटे में आकर मुझे जेल नहीं जाना….फिर भी कांग्रेसी नेता पवन खेड़ा के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह अपने दरवाजे खोले और जिस मुस्तैदी से चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सारे मामले में हस्तक्षेप कर उसके लिए अंतरिम जमानत की व्यवस्था कराई,उससे यह सवाल अवश्य पैदा होता है कि क्या यह विशेष सुविधा आम आदमी के लिए भी उपलब्ध है ?
अगर हां,
तो क्या सर्वोच्च न्यायालय मेरे शहर के उस सब्जी बेचने वाले का भी केस लेगा जिसकी सब्जी को सड़क पर फेंक कर निगम अधिकारियों ने उसकी रेहड़ी को बुलडोजर से सिर्फ इसलिए कुचल दिया था कि दुकान ना होने के कारण वह सड़क पर सब्जी बेचकर अपने बाल बच्चों का पेट पाल रहा था?

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वह न चोर,न जालसाज,न धोखेबाज, न लुटेरा,सिर्फ मेहनतकश…और ईमानदारी से पैसा कमाने की इतनी बड़ी सजा ?

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प्रशांत भूषण या सिंघवी को फीस देने की औकात तो उस गरीब की है नहीं, तो क्या सर्वोच्च न्यायालय suo-moto उसका केस लेगा?

खैर उसे छोड़िए,
क्या चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ देश के उस प्रत्येक सामान्य गरीब आदमी को पवन खेड़ा जैसी राहत दिलाएंगे, जो पुलिस से पीड़ित है,निर्दोष होते हुए भी डंडे की मार से घायल और हफ्ता न दे सकने के कारण काल कोठरी में बंद है?
अगर नहीं,तो क्यों नहीं ?

क्या सिर्फ इसलिए कि पवन खेड़ा के कोई खास किस्म के सुर्खाब के पर लगे हैं, जिनसे आम आदमी महरूम है और जिनके अभाव में वह गरीब हाई कोर्ट सहित समस्त निचली अदालतों की अवहेलना कर सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटा सकता ?

सीधे दरवाजा खटखटाने और अपनी मर्जी से आधी रात में भी जजों को काम पर लगाने का विशेषाधिकार क्या सिर्फ आतंकियों और नेताओं को ही है ?

पवन खेड़ा की गिरफ्तारी पर मंगलवार तक रोक संबंधी अंतरिम जमानत का अर्थ यह नहीं है कि उसको फिर गिरफ्तार किया जा सकता है…यह भी एक सुविधा है कि तब तक पवन खेड़ा, जिसका कद आज राहुल गांधी से भी बड़ा नजर आ रहा है, हाई कोर्ट जाकर विधिवत अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दे सके।

सलाह या चेतावनी:
कई हलकों में बड़ा शोर है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पवन खेड़ा को चेतावनी भी दी गई है…क्या चेतावनी है?
भाषा की मर्यादा?
प्रधानमंत्री के पिता श्री को अपमानित करना क्या सिर्फ भाषा की मर्यादा के अंतर्गत आता है जिसके बारे में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है, “there has to be some level of discourse?”
प्रश्न है : पवन खेड़ा द्वारा निर्लज्जतापूर्वक,जानबूझकर कटाक्ष करते हुए दिया गया बयान क्या केवल भाषा दोष है या उसके कुछ और भी मायने हैं ?

एक और महत्वपूर्ण सवाल!! संविधान की दृष्टि में सभी नागरिकों को,चाहे गरीब हो या अमीर, समान अधिकार हैं फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशेषों को विशेष सुविधा प्रदान करना क्या संविधान का उल्लंघन नहीं है?

सवाल से अधिक यह जिज्ञासा है देश के आम नागरिक की..और मेरी भी।

जवाब भी तो मिलना चाहिए,
कौन देगा ??????

साभार-अजीत सिंह-(ये लेखक के अपने विचार है)

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