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पाकिस्तान का अन्न संकट :क्या भारत को बीस लाख टन गेहूं देना चाहिए ?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
आपमें से बहुतों ने सन ६४-६५ का अन्न संकट नहीं देखा होगा, मैंने देखा है । तब अमेरिका के पब्लिक लॉ 480 ( pl480) के अंतर्गत हमें रुपये के बदले गेहूँ बेचा जाता था । हमारे पास विदेशी मुद्रा भी नहीं थी । यह गेहूँ भी राशन से मिलता था ।

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फिर एक बार वियतनाम में अमेरिकी बमबारी की भारत ने आलोचना कर दी तो अमेरिका ने गेहूँ बंद करने की धमकी दी । भारत ने प्रतिवाद किया कि जिस भाषा का प्रयोग हमने किया है उसी भाषा का प्रयोग पोप और यूएन सेक्रेटरी जनरल ने भी किया है । पर अमेरिका ने सख़्ती से कहा कि पोप और यूएन सेक्रेटरी जनरल हमारे गेहूँ पर नहीं पलते हैं , वे कुछ भी कह सकते हैं ।

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ग़रीब जनता की भूख मिटाने के लिए हमें यह अपमान का घूँट भी पीना पड़ा । लाल बहादुर शास्त्री ने देश से एक समय उपवास करने की अपील की और हरित क्रांति और ऑपरेशन फ़्लड की नींव रखी , वे जीवित नहीं रहे पर हरित क्रांति ने हमें अन्न में आत्मनिर्भर बना दिया और ऑपरेशन फ्लड ने देश में दूध की नदियाँ बहा दीं ।

इस्लाम कहता है कि वह शख़्स मोमिन नहीं है जिसका पड़ोसी भूखा सो जाये । पाकिस्तान ने ऐन उसी वक़्त हम पर हमला किया जब हमारा सारा अमला जनता की भूख मिटाने में व्यस्त था । गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंत राय मेहता का नागरिक हवाई जहाज़ पाकिस्तान ने उस समय नष्ट कर दिया जब वे मीठापुर के दौरे पर थे और वे मारे गए । हमारे भूखे शेरों ने फिर भी पाकिस्तान को ६५ की जंग में धूल चटा दी ।

ख़ैर हम तो वसुधैव कुटुंबकम के मानने वाले हैं । राष्ट्रीय स्वयं संघ भी उन्हीं सनातन सिद्धांतों का अनुयायी है । पाकिस्तान की जनता पर अन्न संकट है । संघ चाहता है कि भारत उसे कम से कम २० लाख टन गेहूं भेजे । गाँधी चाहते थे पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपए दिए जायें । न गाँधी किसी संवैधानिक पद पर थे न संघ है मगर भारत ने पचपन करोड़ रुपये दिए । हम तो दधीचि और रंतिदेव की परंपरा से आते हैं ।

बीस लाख टन गेहूं भी देना ही चाहिए ।

मेरे दुख दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाये

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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