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बस टुकड़े-टुकड़े हो कर फ्रिज या सूटकेस में जाने से बचना स्वरा भास्कर

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
बहुत बधाई अनारकली ऑफ़ आरा की अभिनेत्री स्वरा भास्कर। बस टुकड़े-टुकड़े हो कर फ्रिज या सूटकेस में जाने से पहले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की याद रखना। वैज्ञानिक और देश प्रेमी पिता की लाज भी बचाए रखना। इस लिए भी कि एक झूठे मसले CAA-NRC विरोध में देश में आग लगाने वाले के रुप में तुम्हारे शौहर फहद अहमद को लोग जानते हैं। बाक़ी तुम्हारी अपनी ज़िंदगी है , अपनी पसंद है। तुम्हें अपने ढंग से जीने का पूरा हक़ है। मित्र अविनाश दास निर्देशित बेहतरीन फ़िल्म अनारकली ऑफ़ आरा की अभिनेत्री स्वरा भास्कर के लाजवाब अभिनय को हम सर्वदा याद रखते हैं। रखेंगे। बस जैसे उस फिल्म में बतौर अभिनेत्री उस अय्यास वाइस चांसलर को सार्वजनिक रुप से नंगा किया था , असल ज़िंदगी में भी वह अंदाज़ याद रखना।

वैसे ही जैसे एक रिफाइन के विज्ञापन में भिंडी की सब्जी को परोसती दिखी थी स्वरा भास्कर , वह तुर्शी भी बनाए रखना। किसी हिज़ाब के व्याकरण और तलाक़ के फ़रेब नीचे दब न जाना। नौटंकी कही जाने वाली बड़बोली राखी सावंत भी एक लिहाज से अच्छी अभिनेत्री हैं पर उन का हश्र अभी-अभी हमारे सामने उपस्थित है। बहुत सारे आफ़ताब सरीखे प्रेमी हत्यारे हमारे सामने उपस्थित हैं। हमारे भोजपुरी समाज में बेटी को बछिया और स्त्री को गाय जैसी सीधी उपमा भी दी जाती रहती है। और तुम गाय काटने और खाने वालों के हाथ में हाथ लिए हुई दिख रही हो। सो सावधान रहना स्वरा भास्कर। इस लिए भी कि फहद अहमद ने कुरआन ज़रुर पढ़ी होगी। जिस कुरआन में स्त्रियों को पुरुषों की खेती बताया गया है।

किसी विज्ञापन में भिंडी की सब्जी बनाना तक तो ठीक है पर पुरुषों की खेती बनाना ठीक बात नहीं है। सेक्यूलरिज़्म की छौंक में बेवकूफी भरे बयान जारी करना और और किसी शौहर की बेग़म बन कर जीना दोनों दो बात है। क्यों कि सभी नरगिस को सुनील दत्त नहीं मिलते। तो तुम अपने दांपत्य में दब कर वायसलेस मत हो जाना। बेगम हमीदा की रिपोर्ट वॉयस आफ वायसलेस हम ने पढ़ रखी है। और बड़ी-बड़ी खातूनों को वायसलेस भी देखा है। लखनऊ में रहता हूं , सो देखता ही रहता हूं। अकसर देखता रहता हूं। देश में और भी तमाम उदाहरण सामने हैं। किस-किस का नाम लूं , किस-किस का न लूं। बरसों पहले मजाज लखनवी ने ऐसे ही तो नहीं लिखा :

हिजाब ऐ फ़ितनापरवर अब उठा लेती तो अच्छा था
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था

तेरी नीची नज़र खुद तेरी अस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेज़ी आजमा लेती तो अच्छा था

तेरी चीने ज़बी ख़ुद इक सज़ा कानूने-फ़ितरत में
इसी शमशीर से कारे-सज़ा लेती तो अच्छा था

ये तेरा जर्द रुख, ये खुश्क लब, ये वहम, ये वहशत
तू अपने सर से ये बादल हटा लेती तो अच्छा था

दिले मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था

तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मोत का तारा है
अगर तू साजे बेदारी उठा लेती तो अच्छा था

तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।

तो अपने आँचल से एक परचम बना कर जीना सीख लोगी स्वरा भास्कर , ऐसा यक़ीन है। टुकड़े-टुकड़े हो कर फ्रिज या सूटकेस में जाने से बचना। बहुत सी लड़कियां फ्रिज में चली गई हैं। जाती ही जा रही हैं। सिलसिला थम ही नहीं रहा। मुंबई से दिल्ली आ कर मेहरौली के जंगल में टुकड़े फेंके जा रहे हैं। सो सावधान ! अगेन बहुत-बहुत बधाई !

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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