सोचिए एंडरसन ने कैसे पहले से शॉर्टसेल में लाखों शेयर बेच कर रिपोर्ट उछाली होगी फिर सिर्फ़ एक दिन में कितने करोड़ कमाए होंगे ?
- राजकुमार गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
एक आदमी था जो रेलवे स्टेशन के गिरहकटों और उठाईगीरों पर ही नज़र रखता था । जब भी कोई गिरहकट जेब काट कर बाहर निकलता तब वह चुपचाप उसके कंधे पर हाथ रख कर अपना हिस्सा वसूल लेता था ।
अपने आस पास की दुनिया को ग़ौर से देखना भी एक धंधा है मगर इसमें जोखिम बहुत है । चोरों गिरहकटों से दुश्मनी रखना कभी भारी भी पड़ सकता है इसलिए अपनी सुरक्षा का पुख़्ता इंतज़ाम रखना चाहिए ।
हिंडनबर्ग रिसर्च वाले नाथन एंडरसन का भी यही फ़न है । दुनिया भर की कम्पनियाँ कई तिकड़में आज़मा कर अपने शेयरों की क़ीमत बढ़ाती रहती हैं । बहुत पहले सत्यम कम्प्यूटर्स ने फ़र्ज़ी आँकड़े दिखा कर बढ़ चढ़ कर मुनाफ़ा दिखाया । शेयरों की क़ीमत से ही कम्पनी का मूल्यांकन होता है और उन्हें आसानी से वित्तीय संस्थानों से क़र्ज़ मिल जाता है या वे एफ़पीओ निकाल कर जनता से पूँजी जुटा लेती हैं । रेगुलेटरी अथॉरिटी लाख नज़र रखें फिर भी ऐसे घपलों को पकड़ नहीं पातीं ।
नाथन एंडरसन की पैनी नज़रें पहले अमेरिकी कम्पनी निकोला पर पड़ीं जिसको उसने तब धर दबोचा जब वह इलेक्ट्रिक वेहिकल बनाने के लिए स्टार्ट अप लॉन्च कर रही थी । उसने जनरल मोटर्स से कॉन्ट्रैक्ट करके अपनी गुडविल बनाई और अपने शेयर की क़ीमत ६५ डॉलर तक ले गई और फ़ोर्ड मोटर्स को टक्कर देने लगी । एंडरसन ने सबूतों सहित रिपोर्ट छापी कि निकोला के पास इलेक्ट्रिक वेहिकल की टेक्नोलॉजी ही नहीं है और उसके डाइरेक्टर मिल्टन ने कई तरह के फ़्रॉड करके निवेशकों को धोखा दिया है । इससे पहले एंडरसन ने निकोला के शेयरों की भारी मात्रा में शॉर्ट पोज़ीशन ले ली थी । रिपोर्ट छपते ही निकोला के शेयर धड़ाम होकर ६५ डॉलर से ३ डॉलर पर लुढ़क गए और एंडरसन ने अपनी पोज़ीशन बराबर करके करोड़ों डॉलर का मुनाफ़ा कमाया ।
शॉर्ट सेलिंग शेयर मार्केट की वह रणनीति है जिसमें आपके पास एक भी शेयर न हो तो भी आप पूँजी लगाकर कितने भी शेयर बाज़ारू क़ीमत पर बेच सकते हैं और शेयर की क़ीमत नीचे आने पर वापस ख़रीद कर मुनाफ़ा गोट में रख सकते हैं । इन्हें बाज़ार की भाषा में मंदड़िया कहा जाता है ।
२०१४ में मोदी सरकार आने की आहट सुनते ही अड़ानी ग्रुप के शेयर उछाल मारने लगे थे । अप्रैल २०१४ में एक ही दिन में अड़ानी एंटरप्राइज़ २०% उछल ५००₹ के आस पास पहुँच गया । जून २०१५ में अड़ानी ने अपने ग्रुप का पुनर्गठन किया और अडानी पॉवर, अड़ानी ट्रांसमिशन, अड़ानी पोर्ट्स आदि कई कम्पनियाँ बना कर अपने व्यापार को डाइवर्सीफाई करके बिसात बिछा ली । अड़ानी को मोदी का करीबी माना जाता है । बहरहाल मोदी राज में अड़ानी का व्यापार खूब फला फूला । अडानी ग्रुप की कंपनियों के भाव बेतहाशा बढ़े । शेयर पूँजी बढ़ी तो बैंकों ने खुल के क़र्ज़ भी दिया । अड़ानी अब दुनिया के तीसरे सब से बड़े रईस हो गये । जिस तेज़ी से अड़ानी ने तरक़्क़ी की वह आश्चर्य जनक थी । इसलिए वह ग्लोबल मंदड़िया एंडरसन की नज़र में आ गए । उसने दो तीन साल अड़ानी ग्रुप पर जम कर रिसर्च की । कंपनी ने घपला किया या नहीं यह तो बाद की बात है सेंसेक्स तो सेंटीमेंट्स से चलता है ।
एंडरसन ने अड़ानी ग्रुप को उस समय तारपीडो किया जब वह अपना एफपीओ ला रहे थे और अगले हफ़्ते बजट पेश हो रहा था । अड़ानी के सारे शेयर कल लोअर सर्किट पर लग गए । यद्यपि शेयरों को गिरने से बचाने के लिए
एलआई सी और अड़ानी के शुभचिंतकों ने निचले स्तरों पर भारी ख़रीदारी की । यहाँ तक कि अड़ानी एंटरप्राइज़ का शेयर गिर कर एक बार फिर संभला लेकिन सेंटिमेंट बहुत ख़राब थे तो आख़िर में लोअर सर्किट पर ही बंद हुआ ।
ऐसी ही एक परिस्थिति में धीरूभाई अंबानी नें रिलायंस को गिरने से रोकने में भारी ख़रीदारी की और बाज़ार के मंदड़ियों पर अपना सिक्का जमा लिया । उसके बाद अंबानी ने मुड़ कर नहीं देखा और रिलायंस भारतीय स्टॉक मार्केट का बेताज बादशाह बन गया । अनिल अंबानी ने मगर उनका नाम डुबो भी दिया ।
गौतम अड़ानी अगर इस तूफ़ान से बचने में कामयाब हो जाते हैं तो आगे उनका बहुत सुंदर भविष्य है । लेकिन एंडरसन की रिसर्च तगड़ी है । अगर कल किसी मंदड़िये ने सिर्फ़ एक कम्पनी अड़ानी एंटरप्राइज़ के सौ शेयर शॉर्टसेल किए होंगे तो भी पचास हज़ार आराम से कमाए होंगे । सोचिए जिस एंडरसन ने पहले से शॉर्टसेल में लाखों शेयर बेच कर रिपोर्ट उछाली होगी उसने सिर्फ़ एक दिन में कितने करोड़ कमाए होंगे ।
बिना किसी लागत के दुनिया भर की कम्पनियों की कमज़ोरियों पर नज़र रख कर ही कितना पैसा कमाया जा सकता है एंडरसन इसके उदाहरण है ।
सही अर्थों में बुद्धिजीवी यही लोग है । हम जैसों का जीना भी कोई जीना है ।
साभार: राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)