Positive India:Sarvesh Tiwari:
कुछ तस्वीरें बहुत सुन्दर होती हैं। इतनी सुन्दर कि उनपर मोटी किताब लिख दी जाय फिर भी बात खत्म न हो… इस तस्वीर को ही देखिये, जाने कितने अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर हैं इस तस्वीर में…
स्त्रियों के पांव बहुत सुन्दर होते हैं। इतने सुन्दर, कि सभ्यता उन पांवों की महावर वाली छाप अपने आँचल में सँजो कर रखती है। पुरुषों के पांव उतने सुन्दर नहीं होते…उभरी हुई नशें, निकली हुई हड्डियां, फ़टी हुई एड़ियां… ठीक वैसे ही, जैसे मोर के पांव सुन्दर नहीं होते…
मैं ठेंठ देहाती की तरह सोचता हूँ। एक आम देहाती पुरुष अपने पैरों को केवल इसलिए कुरूप बना लेता है, ताकि उसकी स्त्री अपने सुन्दर पैरों में मेहदी रचा सके। स्त्री के पांव में बिवाई न फटे, इसी का जतन करते करते उसके पांव में बिवाई फट जाती है।
स्त्री नख से शिख तक सुन्दर होती है, पुरुष नहीं। पुरुष का सौंदर्य उसके चेहरे पर तब उभरता है जब वह अपने साहस के बल पर विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल कर लेता है।
ईश्वर ने गढ़ते समय पुरुष और स्त्री की लंबाई में थोड़ा सा अंतर कर दिया। पुरुष लंबे हो गए, स्त्री छोटी गयी। इस अंतर को पाटने के दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो स्त्री पांव उचका कर बड़ी हो जाय, या पुरुष माथा झुका कर छोटा हो जाय… बाबा लिखते हैं, जब राजा जनक के दरबार में स्वयम्बर के समय माता भगवान राम को वरमाला पहनाने आयीं, तो प्रभु उनसे ऊंचे निकले। माता को उचकना पड़ता, पर प्रभु ने स्वयं ही सर झुका लिया। दोनो बराबर हो गए… वहीं से तो सीखते हैं हम सबकुछ… स्त्री पुरुष सम्बन्धों में यदि प्रेम है, समर्पण है, सम्मान है, तो बड़े से बड़े अंतर को भी थोड़ा सा उचक कर या सर नवा कर पाट दिया जा सकता है।
दरअसल सम्बन्धों में सत्ता देह के अनुपात की नहीं होती। दो व्यक्तियों के बीच बराबरी न सौंदर्य के आधार पर हो सकती है, न शारीरिक शक्ति के आधार पर… बस सम्वेदनाओं में समानता हो तो दोनों बराबर हो जाते हैं। सियाराम के सौंदर्य की बात तो कवियों की कल्पना से तय होती रही है, तत्व यह है कि वियोग के दिनों में वन वन भटक कर भी राम हर क्षण सीता के रहे, और स्वर्ण लंका की वाटिका में रह कर भी सीता हर क्षण बस राम की रहीं… दोनों की सम्वेदना समान थी, सो दोनो सदैव बराबर रहे…
गांव के बुजुर्ग कहते हैं, पुरुष की प्रतिष्ठा उसकी स्त्री तय करती है और स्त्री का सौंदर्य उसका पुरुष… दोनों के बीच समर्पण हो तभी उनका संसार सुन्दर होता है।
वैसे सौंदर्य की परिभाषा में तनिक ढील दें तो मनुष्य के सबसे सुंदर अंग उसके पांव ही होते हैं। इतने सुंदर, कि उन्हें पूजा जाता है।
साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख(ये लेखक के अपने विचार है)