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मेनस्ट्रीम मीडिया श्रद्धा मामले पर इन्वेस्टिगेटिंग ट्रायल जैसा व्यवहार क्यो कर रहा है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India: Vishal Jha:
श्रद्धा(Shraddha) मामले पर सोशल मीडिया अपनी बात लगभग फिनिश कर चुका है। मेनस्ट्रीम मीडिया अटका हुआ है। बहुत दुख होता है श्रद्धा मामले पर मेनस्ट्रीम मीडिया की कवरेज मेधा देखकर। अफसोस होता है। मेनस्ट्रीम मीडिया मामले पर इन्वेस्टिगेटिंग ट्रायल जैसा व्यवहार कर रहा है। जबकि अपराध के इन्वेस्टिगेशन का काम इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी का है। मेनस्ट्रीम मीडिया को अपराध की मानसिकता पर स्थिर होकर विमर्श करनी चाहिए।

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गौरक्षा के नाम पर बमुश्किल एक दो घटनाएं हुई होंगी। उन गिने-चुने एक दो घटनाओं को लेकर वामपंथी मीडिया ने पूरे धर्म को कटघरे में खड़ा करने का कोई प्रयास नहीं छोड़ा। एक असत्य सी घटना पर पूरी एक नैरेटिव स्थापित कर दे, यही वामपंथी मीडिया की काबिलियत है। अपनी इसी काबिलियत के वजह से आज भी उसका दबदबा पूरे मीडिया समाज में है। जैसे लग रहा राष्ट्रवादी मीडिया अभी पत्रकारिता सीख रहा है।

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यहां जब श्रद्धा का गला कलमा पढ़कर काटा जाता है, सर तन से जुदा का स्पष्ट रूप से मामला है। सर को जुदा कर फ्रिज में रखा जाता है। आंत का कीमा बनाया जाता है। कीमा किस मानसिकता का व्यंजन है? इस मानसिकता के खिलाफ विमर्श उठने से पहले ही हमारा राष्ट्रवादी मीडिया भटक जाता है। आरंभ तो करता है लेकिन स्थापित नहीं कर पाता। ठीक है कि प्राइमटाइम के कुछ एंकर्स के काम प्रशंसनीय हैं। फिर भी एक समेकित मीडिया को मुद्दे पर क्या तहकीकात करना है, सीखना पड़ेगा।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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