विकास दिव्यकीर्ति ने माता सीता की तुलना अधम पशु के जूठन से क्यो की?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
फ्रांस में कोई शिक्षक बस केवल नाम ले लिया था, एक विद्यार्थी ने गर्दन उतार दिया। भारत में न केवल नाम लिया जाता है, बल्कि किसी अधम पशु के जूठन से तुलना की जाती है। माता सीता की तुलना। और कक्षा के छात्र ठहाके लगाकर हंसते हैं। बस यहीं तो वक्ता को बोलने का अनुज्ञापत्र मिल जाता है।
मैं विकास दिव्यकीर्ति का हाल फ्रांस के शिक्षक जैसा होने को संकेत नहीं कर रहा। लेकिन उन छात्रों की बात कर रहा, जिस समाज से वे आते हैं, देवी सीता उस समाज की एक आदर्श मां हैं और अपने ही मां को अपशब्द कहे जाने पर जब बच्चे हसेंगे, तो केवल विकास दिव्यकीर्ति ही क्यों, कोई भी शिक्षक उठकर इतनी बात बड़ी आसानी से कह देगा।
इतना ही नहीं, बयान के समर्थन में एक स्क्रीनशॉट ट्विटर पर शेयर किया जा रहा। जहां एक तरफ ट्विटर पर दृष्टि कोचिंग को बंद करने के लिए हैशटैग चल रहा है, दूसरी तरफ एक आधी अधूरी स्क्रीनशॉट। जबकि मेरे एक फेसबुक मित्र पवन विजय सर ने उस स्क्रीनशॉट का पूरा पन्ना डाला है। पन्ना महाभारत का दिख रहा है, द्रौपदी हरण पर्व। विकास दिव्यकीर्ति बिना लाग लपेट के बड़े स्पष्ट शब्दों में हंस करके, भगवान राम के शब्दों के रूप में कोट करके, देवी सीता के खिलाफ पंक्तियां बोलते हैं। कितना ग्लानिजनक है यह सब कुछ, सनातन समाज के लिए।
तथ्यों का कोई मतलब भी हो तो समझ में आता है। बिल्कुल जैसे लगता है व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से उठाकर अथवा तो मुगलिया लेखकों के इतिहास को उठाकर, शायद जिन्हें मैग्सेसे और पुलित्जर मिलते रहे होंगे, लेकिन क्या मजाल है दो पंक्ति किसी मजहब की असलियत को बताने की जुर्रत करें! शर्मनाक।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)