Positive India:Vishal Jha:
अजमल कसाब के दर्जे का आतंकवादी है मोहम्मद पाजी। जिसे युद्ध भूमि से लाल सिंह अपने कंधे पर उठा कर लाता है और उसका सेना के हॉस्पिटल से इलाज होता है। फिर वह भाग निकलता है। दिल्ली के किसी भारे की जगह में टेलीफोन बूथ चला कर गुजारा करता है। लाल सिंह सेवानिवृत्ति के बाद जब चड्डी बनियान सिलकर इकट्ठा कर लेता है, तब उसकी मार्केटिंग एक बड़ी समस्या होती है।
आतंकवादी मोहम्मद पाजी मार्केटिंग का जिम्मा संभालता है और देखते ही देखते हैं भारत का एक बहुत बड़ा कपड़ा कारपोरेट खड़ा हो जाता है, कंपनी का नाम रूपा। इंडिया टुडे के कवर पेज पर लाल सिंह के साथ इस आतंकवादी की भी तस्वीर एक बेहतरीन कारपोरेट के रूप में छपती है।
दरअसल ये फिल्म भारत के अंतःकरण में एक ग्लानि पैदा करने की कोशिश करता है कि अगर देश लाल सिंह चड्ढा बन जाए तो अजमल कसाब भी भारत के लिए एक बड़ा कारपोरेट खड़ा कर सकता है। लेकिन भारत में तो फांसी दे दी जाती है। रोहिंग्या मुसलमानों को आतंकवादी कहा जाता है।
जब मोहम्मद पाजी भारत से वापस चला जाता है तब लाल सिंह चड्ढा को मोहम्मद पाजी की उतनी ही याद आती है जितनी अपनी मां और दोस्त रूपा की। तनिक अंदाजा लगाइए, फिल्म किस दर्जे का है? जिस व्यक्ति ने अपने मुंह से कहा कि मुझे भी देश से प्रेम है, लेकिन सच तो यह है कि इस स्तर के देश विरोध का फिल्मांकन फिल्म जगत के इतिहास में कोई पहली बार हुआ है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)