हमारा एक दूसरे के दस पर भारी का उनका दावा 100% सच क्यो है?
-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
“हमारा एक दूसरे के दस पर भारी” का उनका दावा
100% सच है, बस…..
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ लेकिन छोटे भाई का पैजामा, बड़े भाई का कुर्ता पहनने वाले लुटेरे उस स्वतंत्रता का एक हिस्सा लूट कर ले गए.
“छोटा पैजामा-बड़ा कुर्ता” गिरोह की उस लूट और डकैती के बावजूद भारत आज दुनिया की आर्थिक, सामरिक राजनीतिक महाशक्ति बनने की स्पर्धा में शामिल है।
लेकिन बाबर, अकबर औरंगज़ेब सरीखे डकैतों लुटेरों के वंशज, छोटा पैजामा, बड़ा कुर्ता पहनने वाले वो लुटेरे केवल 75 साल में ही सर्टिफाइड इंटरनेशनल भिखारी हो चुके हैं। उनकी ग्लोबल भिखमंगई का इंटरनेशनल डंका पूरी दुनिया मे बहुत धूमधाम से बज रहा है।
हिन्दूस्तान में भी अभी कुछ हफ्ते पहले ही केवल खैरात बांटनी बंद कर दी गयी तो बाबर, अकबर औरंगज़ेब सरीखे डकैतों लुटेरों के वंशज यहां भी भूखों मरने की कगार पर खड़े हो गए।
अतः “हमारा एक दूसरे के दस पर भारी” वाली बात सच तो है लेकिन उसका अर्थ यह है कि उनका एक भिखारी दूसरों के दस भिखारियों पर भी भारी है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)