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रद्द होती परीक्षाओं की पीड़ा…

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि नौकरी के लिए मुझे ढेर सारी परीक्षाएं नहीं देनी पड़ीं। एक बार टेट की परीक्षा दी, पास हुए और नौकरी मिल गयी। पढ़ाई से नाता-रिश्ता पहले ही टूट सा गया था, सो आगे की सोचे ही नहीं, इसी में संतुष्ट हो गए।
हाँ उसके पहले एक बार एसएससी का एक्जाम दिया था। तब सेंटर पड़ा था लहरियासराय, दरभंगा। दिसम्बर की ठंड में लहरियासराय जाने में दो जगह ट्रेन बदलनी पड़ी थी। बोगी की स्थिति यह कि उस तरह मालगोदाम में बोरे भी नहीं लादे जाते जैसे लड़के लदे थे। स्टेशन पर उतरने के बाद रात वहीं प्लेटफॉर्म पर कटी! जमीन पर प्लास्टिक बिछा कर लेट गए, ओढ़ने को एक पतला कम्बल था और नेपाल की ओर से बर्फ ले कर आती ठंढी हवा थी। वह शायद जीवन की इकलौती रात होगी जब जमीन पर इस तरह सोना पड़ा था।
नींद न आनी थी, न आयी! मेरे जैसे डेढ़ दो हजार लड़के उस प्लेटफॉर्म पर सोये थे, और सब एक दूसरे को देख कर रात काट लिए। अगले दिन उसी तरह ट्रेन में खड़े खड़े वापसी हुई, और सिवान स्टेशन पर उसी तरह कांपते हुए रात कटी।
इसे मेरा सौभाग्य कहिये या दुर्भाग्य; मेरी कमजोरी कहिये या नाकारापन, मैंने और कोई प्रतियोगिता परीक्षा नहीं दी। पर इस देश में असंख्य लड़के हैं जो इस तरह की बीसों परीक्षाएं देते हैं। वैसे ही ट्रेन में खड़े हो कर यात्रा, प्लेटफॉर्म पर सोना, और कम पैसे में कुछ भी खा कर पेट भर लेना! और इतना करने के बाद पता चलता है कि फलां अफसर ने पेपर बेंच दिया। पकड़ लिया गया तो परीक्षा रद्द हो गयी, नहीं पकड़ा गया होता तो सीट बिक गयी होती। मतलब आम विद्यार्थी के लिए कोई चांस नहीं, उसके परिश्रम का कोई मूल्य नहीं।
आप समझ रहे हैं यह कितना बड़ा अत्याचार है? दस दस वर्ष तक लड़के सबकुछ छोड़ कर केवल और केवल परीक्षा की तैयारी करते हैं। कम खा कर, कटपीस वाला टीशर्ट जीन्स पहन कर, तीन फीट चौड़े बेड में घर बना कर… उनके साथ छल करना ईश्वर के साथ छल करने जैसा है हरामखोरों!
जिसने बीपीएससी का पेपर लीक किया है उसे केवल सस्पेंड कर के क्या बिगाड़ लेंगे आप? एक साल में दुबारा ज्वाइन कर लेगा वह। होना तो यह चाहिये था कि आप उस पूरे सिस्टम को बर्खास्त करते, जो बीपीएससी जैसी परीक्षा भी ईमानदारी से नहीं करा पाती। होना तो यह चाहिये था कि पेपर बेंच देने वाले उन नीच हरामखोरों को सरेआम पटना के हड़ताली चौराहे पर बांध दिया जाता और अभ्यर्थी उनके गलीज शरीर को अपनी घिसी हुई चप्पलों से पीट पीट कर साफ करते।

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नीतीश बाबू! आपसे तो अब यह उम्मीद भी नहीं बची कि शर्म करने को कहें… आपको दारू पर नौटंकी करने से फुर्सत मिले तब तो इसके बारे में सोचें भी! पर बहुत घिनौना है यह! बहुत ही घिनौना… थू है आपकी व्यवस्था पर सरकार…

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साभारः सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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