300 साल पुराने शिव मंदिर को कांग्रेस की गहलोत सरकार ने बड़े अपमान के साथ क्यो ढ़ाह दिया?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
दिल्ली से लेकर बंगाल तक हुई हिंसा में केंद्र सरकार का रूख लोगों को बिल्कुल प्रभावहीन दिख रहा है। खासकर जब जहांगीरपुरी में पत्थर चले तब अमित शाह को उनके कठोर कार्रवाई वाली छवि की दुहाई पड़ने लगी। अमित शाह और मोदी की जोड़ी ने गुजरात से लेकर दिल्ली तक तकरीबन दो दशक तक काम किए हैं। ऐसे दो दशकों में तो कई राजनीतिक दल तक का उत्थान और निर्वाण दोनों हो जाता है।
अमित शाह और मोदी अब राजनीतिक सक्रियता के अवसान की दिशा में हैं। लेकिन सिरे से कोई खारिज नहीं कर सकता कि भाजपा की राजनीति के माध्यम से इन दोनों नेताओं ने लोक, धर्म और राष्ट्र के लिए अपने पुरुषार्थ में कभी किसी तरह के गुंजाइश रखे हों। इतने वक्त अगर किसी पंथ मजहब का प्रतिनिधित्व मिल जाए तो मोदी-शाह जैसे नेता कितने ही पाकिस्तान और खालिस्तान बनाकर रख दें, लोग देखते रह जाएंगे। अब जिन्ना को ही देखा जाए, उतनी काबिलियत ना होते हुए भी पाकिस्तान बांट कर अलग कर लिया तो बस केवल मजहबी दुहाई के नाम पर। मोदी और अमित शाह राष्ट्र, धर्म-संस्कृति और विकास के दो दशकों के सफलतम एजेंडे के बावजूद आज गाली सुन रहे हैं। तो बस सवाल सीधा है, प्रतिनिधित्व किसका किया जा रहा?
अलवर में 300 साल पुराने शिव मंदिर को म्युनिसिपल बोर्ड के निर्णय का आड़ लेकर कांग्रेस की गहलोत सरकार ने बड़े अपमान के साथ ढ़ाह दिया। भाजपा के म्युनिसिपल बोर्ड ने अतिक्रमण हटाने का निर्णय 2013 में दिया था। लेकिन स्थल चिन्हित करना और हटाने का तरीका तय करना पीडब्ल्यूडी व स्टेट का अधिकार क्षेत्र है। राम मंदिर को तोड़कर बाबरी ढांचा बनाया गया तो भारत की अदालत के निर्णय में उस अवैध ढांचे के लिए भी अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराया गया। लेकिन जूते पहन कर शिवलिंग को ड्रिल करके काटना और मूर्तियों को बड़े अपमान से खंडित करना बिन प्रायोजित नहीं हो सकता। ससम्मान विस्थापन और पुनः प्राण प्रतिष्ठा के लिए हमारे सनातन धर्म में सहिष्णुता तो है ही। लेकिन राजस्थान के हिंदुओं के साथ-साथ देश भर की जनता ने एक बार फिर कांग्रेस रूपी औरंगजेब का क्रूर रूप देखा और कुछ ना कर पाया।
अलवर के शिव मंदिर मामले पर हिंदुओं में सबसे बड़ा बेचारापन मैं देख रहा हूं कि वे इस दफा मोदी-शाह को भी दोषी नहीं ठहरा पा रहे। सवाल है कब तक दोषी ठहराएंगे? कहां-कहां ठहराएंगे? ये फकीर झोला उठाकर चल दियें तो दोषी ठहराने के लिए किसी और का बंदोबस्त है या नहीं? असल बात है भगवान शिव की सोमनाथ मंदिर पर 1025 ईसवी में इस्लामिक आक्रमण से लेकर हजार साल बाद 2022 में भी सनातनधर्मियों की स्थिति वही है। एक गजनबी ने गहलोत तक का सफर पूरा कर लिया, लेकिन सनातनधर्मी आज तक वहीं के वहीं हैं।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)