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छत्तीसगढ़ में हाथियों के बढ़ते हमलों का विश्लेषण

-शेखर सोनी की कलम से-

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Positive India:Shekhar Soni:
छत्तीसगढ़ मे हाथियों के हमले बढते जा रहे हैं और आज भी वन विभाग इस गंभीर मुद्दे पर कोई कारगर रणनीति नही बना पाया है। हालात यह है कि हाथी नरभक्षी बनते जा रहे हैं और मरने वाले इंसानो की संख्या इस साल तीस के पास पहुंच गई है। आखिर कब थमेगा यह सिल सिला?

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हाथियो पे बताने से पहले यह भी जान लें कि इतिहास क्या कहता है। प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. हेमु यदु के अनुसार हाथी पहले यहां नही थे ।वे बाहर से छत्तीसगढ़ मे आकर बस गये हैं। सरगुजा मे हाथियों ने पहला कदम रखा था । पहले सरगुजा का पूर्व नाम स्वर गजा था। हाथियों की गज दहाड़ के कारण सरगुजा का यह नाम पड़ा । आज से सैकड़ों साल पहले कुछ हाथियों का दल उत्तर पूर्व भारत से घूमता हुआ वर्तमान छत्तीसगढ़ के सरगुजा व जशपुर के पास आ बसा था। जिनमे से दो हाथी यहीं रह गये थे। उनकी ही पीढी आगे चली आ रही है। कुछ हाथी उडीसा से भी यहां घुस आए हैं।

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हाथियों की खास आदत है कि वो कभी एक जगह टिककर नहीं रहते। नए-नए वातावरण घाटियों व हरे चारे की तलाश में हाथीदूर तक घूमना फिरना पसंद करते है। हाथियों के बारे में हजारों किवदंतियां व कहानियां इतिहास में दर्ज है। हाथी जितने क्रूर व खतरनाक होते है उतनी ही जल्दी वे दासतां या गुलामी भी स्वीकार कर लेते है।
तभी तो महावत उन्हें अपने वश में कर लिया करते है। पहले पकड़े गए हाथी को प्रशिक्षित करके सर्कस में भी काम पर रख लिया जाता था। उत्तरपूर्वी चीड़ व देवदार के जंगलों की कटाई में पेड़ के ऊंचे-ऊंचे लट्ठों को गज दंतों से उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाने का काम हाथी बड़ी खूबी व लगन से करते आए है।
राजा महाराजाओं और मुगल सेना में हाथियों की सेना का एक महत्वपूर्ण सामरिक स्थान होता था। प्राचीन भारत में हाथियों को विदर्भ बेहद पसंद था, क्योकि यहां प्रारंभ से बेहद घने साल वन थे, हरा चारा, बांस कटहल व नदी नालों में पर्याप्त पानी उपलब्ध हुआ करता था। तब के आए हाथियों ने आज भी यहां बसेरा बनाया हुआ है, और आज इनकी संख्या तीन सौ तक पहुंच गई है।

आपको बता दे कि पहले गजदंत के लिये हाथियों का जमकर शिकार किया जाता रहा, जिसके कारण भारत में हाथियों की संख्या तेजी से घटती चली गई।
देश में बने कड़े कानून व अंकुश के बाद काफी हद तक हाथियों की जान बचाई जा सकी है लेकिन आज भी खेतों में लगे बिजली के तार व गड्ढों में गिर जाने से हाथियों की मौत हो जाती है। इन घटनाओं के भी ज्यादातर शिकार हाथी के नन्हे मासूम बच्चे हो जाते है जिन्हें यह पता नहीं होता कि खेत में लग्गी बाड़ में करंट भी हो सकता है।

छत्तीसगढ़ में हाथियों के कई झुंड या दल मौजूद है। हर दल में 20 से 40 हाथी तक होते है। इस समय हाथियों के साथ बड़ी संख्या में छोटे बच्चे भी देखे जा रहे है, मतलब हाथियों की संख्या में आशाजनक बढ़त भी आ रही है। इसके साथ साथ इनका अटैक भी बढ गया है। हर हफ्ते हाथी के हमले से मौत की खबर प्रदेश के हाथी प्रभावित जंगलो से आ रही है। छत्तीसगढ़ में हाथियों के कारीडोर के नाम से सरगुजा, जशपुर कोरबा, धरजयगढ़ व रायगढ़ का रूट शामिल है। इस रूट में कभी कभार बिलासपुर अचानकमार, बारनवापारा व राजधानी के बेहद नजदीक महासमुंद धमतरी का नाम शामिल है। प्रोजेक्ट एलीफेंट को लेकर प्रदेश मे फिलहाल कोई काम होता नजर नही आ रहा है।उधर रोज हाथी हमले कर रहे हैं। ताजा घटना महासमुंद की है जहा बाईक सवार को हाथी ने पटक कर मार दिया। छत्तीसगढ़ मे हाथियों को लेकर केंद्र सरकार की कई योजनाएं आज भी अधर में लटकी हुई है। हालाकि प्रदेश में हाथियों के लिये पर्याप्त चारा व पानी मौजूद है और गत वर्ष तो इतिहास में पहली बार हाथियों के दल ने बस्तर की ओर भी रूख कर दिया था। कांकेर व केशकाल से आगे जाकर हाथी पुन: वापस हो गये थे।
विशेषज्ञों के मुताबिक हाथी इस समय एक जगह टिककर नहीं रह रहे है। वे लगातार अपना ठिकाना बदलते है। एक समय था जब कोरबा हाथियों का गढ़ हुआ करता था लेकिन वर्तमान में हाथी कोरबा से भी अपना स्थायी ठिकाना हटा चुके है। कोरबा के बालको, कोरबा, कुदमुरा, लेमरू पसहरखेत व करतला परिक्षेत्र में हाथी अक्सर डेरा जमाए रहते थे। आज हाथी कोरबा से धरमजयगढ़ व रायगढ़ आते जाते रहते है।
धरमजयगढ़ में इस समय लैलूंगा कापू व छाल में 45 हाथियों का डेरा है कभी यहां सौ हाथियों का डेरा हुआ करता था। इन इलाकों में बांस, कर्रा व कटहल के स्वाद की वजह से हाथी अक्सर डेरा जमाए रहते है। यहां हाथियों को मानव से कभी उतना खतरा भी नहीं रहा।
हाथी कभी कभी मरवाही और अचानकमार टाईगर रिजर्व की तरफ भी निकल जाते है। हाथियों की खास आदत यह है कि एक बार वे अगर किसी रास्ते से गुजर गये तो आजीवन उस रास्ते को कभी नहीं भूलते। प्रदेश में हाथियों के हमले की खबरें लगातार आती है लेकिन किसी को यह नहीं मालूम कि हाथियों के ज्यादातर हमले बदला लेने की मंशा से होते है। मानव द्वारा उनके रास्ते में अवरोध उत्पन्न कर दिए जाने या उन पर हमला करनेकी कोशिश की वजह से हाथी अपनी प्रतिक्रिया देते है। हाथियों के हमले से बचाव पर करोडो खर्च हो चुके पर आज भी हाथी प्रशिक्षित नही है। क्या कमी है इस योजना मे यह समझ से परे है। अगर समय रहते ठोस कदम न उठाया गया तो हाथी के हमले से मौतों का सिलसिला नही थमने वाला।

विशेष:

1)-इस समय कोरबा में नहीं है हाथी:-
बालको वन परिक्षेत्र अधिकारी लक्ष्मीदास पात्रे का कहना है कि कभी बालको कोरबा व लेमरू में हाथियों का जमावड़ा लगा रहता था। इस इलाके में हाथी बहुत उत्पात भी मचाते थी पर इस समय यहां गजदल की सारी गतिविधियां शून्य है।
2)-धरमजयगढ आदर्श स्थल:-
वनमंडलाधिकारी धरमजयगढ़ एस मनीवासगन ने कहा कि इस समय धरमजयगढ़ वनमंडल के कापू, छाल लैलूंगा व प्रापर धरमजयगढ़में 45 हाथियों का दल विचरण कर रहा है। इनके कई दल है और अलग अलग स्थानो पर रह रहे है। देखा जाए तो यह क्षेत्र शुरू से हाथियों की शरणस्थली रहा है।
3)-हाथी यहां से भी हट गये
रेंज अफसर कुदमुरा संजय लकरा बताते है कि इस समय हाथी रायगढ़ धरमजयगढ़ की तरफ ही डेरा जमाए हुए है। पहले की तरह यहां वे महीनों टिककर नहीं रहते।। 4)-दो थे आज तीन सौ लोग जागरूक वन बल प्रमुख राकेश चतुर्वेदी ने कहा कि लोग हाथियों के पास जाने से बचें। यही बचाव का पहला उपाय है। विभाग हाथियों के लिए बेहद सकारात्मक वातावरण तैयार करने मे लगा हैं साथ ही हमले से बचाव का भी । कभी यहां दो हाथी आए थे आज तीन सौ हैं। हम छत्तीसगढ़ मे हाथी को पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाना चाहते हैं पर हाथियों को भी प्रशिक्षण देना होगा।
-ये लेखक के अपने विचार हैं-

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