Positive India:Dr.Rajaram Tripathy:
नाम बदलने की राजनीति के मायने ?
👉 स्थान व संस्थानो के नाम बदलकर वोट जुगाड़ने की क्षूद्र राजनीति में कोई भी पार्टी नहीं है पीछे,
👉 प्रदेश में थोक के भाव में बदले जिले, शहरों, स्टेशनों के नाम,पर समस्त मूल समस्याएं आज भी जस की तस,
👉 बस्तर की पहचान मिटाने के बजाय, इसे तो “वर्ल्ड हेरिटेज” का समुचित दर्जा दिया जाना चाहिए,
👉 शहीद महेंद्र कर्मा स्वयं भी “बस्तर विश्वविद्यालय” का नाम बदलने का करते विरोध,
👉 महापुरुषों के नाम पर खूब बनें नए स्कूल,पर ऐतिहासिक बस्तर हाई स्कूल, बस्तर विश्व विद्यालय जेसे संस्थानों का नाम परिवर्तन सर्वथा अनुचित,
साढ़े पांच सौ साल पुराने शेक्सपियर के प्रसिद्ध कथन कि “आखिर नाम में रखा क्या है? गुलाब को चाहे किसी भी नाम से पुकारो रहेगा तो वह गुलाब ही, उसकी खुशबू और खूबसूरती नहीं बदलेगी।इस कथन पर हालांकि कुछ नासमझ आज भी यकीन करते हैं। किंतु ऐतिहासिक शुद्धिकरण के अभियान में शेक्सपियर तथा उनके इस कथन से अब किसी को कोई लेना देना शेष नहीं लगता। अलग अलग कारणों से देश में पिछले कुछ सालों में जिस तेजी से शहरों, जिलों और संस्थानों के नाम बदलने की प्रवृत्ति ने जोर पकड़ा है यह गौरतलब है और चिंताजनक भी।
हाल के वर्षों में गुजरात में देश का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाया गया। उसका नाम रखा गया मोटेरा स्टेडियम । तत्कालीन अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का दस लाख जनता जनार्दन के साथ हमारे ‘एको अहं द्वितीयो नास्ति’ प्रधानमंत्री जी ने ‘न भूतो न भविष्यति’ के अंदाज में जो भव्य स्वागत समारोह किया तो इस स्टेडियम का नाम पूरे देश दुनिया ने जान लिया। हमारे जैसे कम जानकारों ने पहले तो मोटेरा नाम से यही अर्थ लगाया कि संभवतः वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार में सत्ता और शक्ति की धुरी व चाणक्य कहे जाने वाले “मोटा भाई” के नाम से ही मोटेरा शब्द निकला होगा, और निश्चित रूप से इसका गुजराती में कोई सार्थक अर्थ भी होगा। खैर बाद में पता चला कि मोटेरा तो उस जगह का नाम है, जहां यह स्टेडियम बना है । आगे समाचार पत्रों में छपे बड़े-बड़े विज्ञापनों से खुलासा हुआ कि दरअसल इस स्टेडियम का नाम देश की लौह पुरुष के नाम पर ‘सरदार वल्लभभाई पटेल इंक्लेव’ रखा गया है। अब आखिर ये इंक्लेव क्या बला है? क्या इसका इंकलाब कुछ संबंध है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर, इस इंक्लेव से तो आम हिंदुस्तानी को कुछ खास लेना-देना नहीं है। फिर कुछ दिनों बाद पता चलता कि राष्ट्रीय गौरव में बृद्धि के महती दृष्टिकोण से दोबारा इसका नाम बदल कर भारत के प्रधानमंत्री जी के नाम पर “नरेंद्र मोदी स्टेडियम” रख दिया गया। अंत भला तो सब भला, लेकिन विघ्नसंतोषियों का क्या करिएगा , इन्होंने इस पावन कार्य में भी कमियां, खामियां निकालनी शुरू कर दी।
हमारे देश में नाम बदलने का इतिहास काफी पुराना है। ज्यादा पीछे ना जाकर आजादी के बाद की अगर बात करें तो 1956 में हैदराबाद आंध्रप्रदेश हो गया, 1959 में मध्यभारत का नाम मध्यप्रदेश रखा गया। 1969 में मद्रास तमिलनाडु हो गया और 1973 में मैसूर कर्नाटक बन गया। फिर उत्तरांचल से उत्तराखंड, 2011 में उड़ीसा से ओडिशा नाम किया गया। मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, शिमला, कानपुर, जबलपुर सहित नाम बदलने वाले शहरों की लंबी लिस्ट है। देश के बहुसंख्य संस्थान हमारे देश के नव निर्माण के शिल्पकारों के नाम पर रहे गए हैं। आज भी देश की विभूतियों, जननायकों के नाम पर संस्थानों का नामकरण करना एक अच्छी परंपरा है। इससे किसी को इनकार नहीं हो सकता।
वर्तमान में पुराने नाम बदल कर नवीन नामकरण के द्वारा राष्ट्र गौरव में वृद्धि की। होड़ में उत्तर प्रदेश ने पूरे देश में बाजी मारी है। अब चूंकि योगी जी स्वयं पहले अजय सिंह बिष्ट हुआ करते थे, शुद्धिकरण व सन्यासीकरण के उपरांत नाम बदलकर ही वह भी योगी आदित्यनाथ हुए हैं, तो उनका नाम बदलकर शुद्धिकरण कार्य के प्रति अतिउत्साह स्वाभाविक भी है। कुछेक बानगियां पेश हैं। फैजाबाद रेलवे जंक्शन का नाम बदलते हुए अयोध्या कैंट किया गया। इससे पहले इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज, फैजाबाद जिले का अयोध्या और मुगलसराय का नाम दीनदयाल उपाध्याय नगर किया ही गया था। जिले बांदा का नाम महर्षि बामदेव के नाम पर हो रहा है। फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या हो ही गया है।
कानपुर का पनकी स्टेशन अब नाम पनकी धाम हो गया है।
अलीगढ़ को हरिगढ़ बनाने तथा मैनपुरी का नाम एक मयन ऋषि के नाम पर करने की कोशिश जारी रही है।
अब झुमका बरेली के बाजार या एयरपोर्ट में नहीं गिरेगा बल्कि नाथनगरी में गिरेगा क्योंकि अब बरेली एयरपोर्ट नाथनगरी हो गया है तो गोरखपुर एयरपोर्ट (महायोगी गोरखनाथ), आगरा एयरपोर्ट अब दीनदयाल उपाध्याय एयरपोर्ट बन गए हैं। मुगलसराय स्टेशन का नाम एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनयदयाल उपाध्याय के नाम कर दिया गया।गो रखपुर के उर्दू बाजार का नाम हिंदू बाजार तथा मियां बाजार का नाम माया बाजार हो गया है।
उत्तर प्रदेश में बहन मायावती ने भी अपने कार्यकालों में थोक भाव में जिलों व संस्थानों का नाम परिवर्तन दलित संतों व महापुरुषों तथा अपने राजनीतिक गुरु कांशीराम के नाम पर किया था। कासगंज का नाम कांशीराम नगर किया तो अमेठी जिले को छत्रपतिशाहूजी नगर बना दिया।अमरोहा को ज्योतिबा फुले नगर, हाथरस को महामाया नगर, संभल का नाम भीमनगर, कानपुर देहात का नाम रमाबाई नगर, हापुड़ का नाम पंचशील नगर, तो शामली का नाम प्रबुद्धनगर रखा गया। नोएडा गौतमबुद्ध नगर हो गया तो फैजाबाद जिले के एक भाग को अंबेडकरनगर नाम दे दिया।
बहरहाल अब योगी जी एक बार फिर से कुर्सी पर मजबूती से विराजमान हुए हैं , तो उनके “नामबदल अभियान” के द्वारा राष्ट्रीय गौरव में उत्तरोत्तर वृद्धि तथा अपना व प्रदेश के सर्वांगीण विकास करने की लिस्ट में सैकड़ों संस्थान, जिले, शहर, मुहल्ले, स्टेशन, सड़कें शामिल होंगी। इस दिशा में योगी जी का पिछला कार्यकाल भी बहुत गौरवशाली तथा परिणाममूलक रहा है । जो इलाहाबाद पवित्र संगम स्थल पर सदियों से बसे होने के बावजूद, अपने अशुद्ध अनुचित नाम मात्र के कारण अभी तक स्वयं अपवित्तर था,अब वह प्रयागराज बन कर पहले ही ज्यादा तथा सर्वविध पवित्तर हो गया है । अब लक्ष्मणपुर बनने के लिए बने ठने तैयार बैठे बेचारे बेताब लखनऊ की भी मुरादें जल्द ही पूरी होने वाली हैं।
छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश शिवराज सिंह चौहान उर्फ मामा जी ने भी होशंगाबाद नगर का नाम परिवर्तित कर नवीन नामकरण करते हुए उसे पवित्र नर्मदापुरम बना दिया है। भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का उद्धार कर रानी कमलापति स्टेशन और मिंटो हाल का उद्धार उसका नाम बदल कर कुशाभाऊ ठाकरे सभागार करके मध्यप्रदेश भी अब गुलामी के कलंको से मुक्ति की ओर अग्रसर है। इस क्रम की अगली कड़ी में सीहोर जिले का नसरल्लागंज, रायसेन जिले का औबेदुल्लागंज, सुल्तानपुर, गौहरगंज, बेगमगंज सहित अन्य कई शहरों व कस्बों के नाम शामिल हैं।
कहावत है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। सो पड़ोसी मध्य प्रदेश की देखा देखी नाम बदलने की होड़ में छत्तीसगढ़ भी अब पीछे नहीं है, पर यहां का किस्सा कुछ अलग है। यहां भी कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम बदलने को लेकर काफी उठापटक्क्म हुई है। इसी कड़ी में बस्तर जिले के एकमात्र तथा सबसे पुराने विश्वविद्यालय “बस्तर विश्वविद्यालय” का नाम भी बदलकर शहीद महेंद्र कर्मा जी के नाम पर रखा गया है। मैंने और महेंद्र कर्मा जी ने भी इसी विश्व विद्यालय में शिक्षा पाई थी। यह विश्वविद्यालय बस्तर की अनूठी वैश्विक पहचान का जीवंत प्रतीक था। बस्तर को आज भी पूरा विश्व 5000 साल पुरानी जीवित जनजातीय व्यवस्था के रूप में जाना जाता है। इस तरह से बस्तर की पहचान मिटाने के बजाय, इसे तो वर्ल्ड हेरिटेज का समुचित दर्जा दिया जाना चाहिए। बस्तर को अगर इसका सही दर्जा मिले तो विश्व में छत्तीसगढ़ बस्तर के नाम से जाना जाएगा । इसलिए बस्तर की विशिष्ट पहचान को मिटाने की जाने अनजाने की गई कोशिशें क्षम्य नहीं हैं। मेरा विश्वास है कि मेरे मित्र शहीद महेंद्र कर्मा स्वयं भी इस विश्वविद्यालय का नाम बदलने के पक्ष में बिल्कुल भी खड़े नहीं होते। महेंद्र कर्मा जी के आदर्शों तथा उनकी शहादत को अक्षुण्ण रखने हेतु उनके नाम पर अमरकंटक के अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी विश्व विद्यालय की तर्ज पर एक सर्व सुविधा युक्त विश्व स्तरीय नये अंतरराष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय की स्थापना बस्तर में करना शायद ज्यादा उचित कार्य होगा। इसी तरह प्रदेश के सभी बड़े नामी पुराने सरकारी हाई स्कूलों का नाम बदलकर स्वामी आत्मानंद जी के नाम पर रखा जा रहा है, जो कि उचित नहीं है। बस्तर के जगदलपुर शहर के 107 साल पुराने ऐतिहासिक “बस्तर हाई स्कूल” का नाम भी परिवर्तित किया जा रहा है जिसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता। निःसंदेह आत्मानंद जी एक महान संत , समाजसेवी तथा विचारक थे, तथा उनके नाम पर नई बेहतरीन शिक्षण संस्थाएं स्थापना करना सचमुच एक स्तुत्य कार्य है। किंतु मैं स्वामी आत्मानंद जी को जितना जानता समझता रहा हूं ,उसके अनुसार यह दावे से कह सकता हूं कि वह भी इस तरह से पुराने स्थापित लोकप्रिय नामों को मिटाकर नाम परिवर्तन की अनुमति कदापि नहीं देते।
इसी क्रम में प्रदेश की कला राजधानी कोंडागांव जिसने आधे दर्जन से ज्यादा राष्ट्रपति पुरस्कारधारी विभूतियां इस प्रदेश को दिया है। यह कोंडागांव बस्तर का बहुत पुराना गांव था तथा धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे होने के कारण तथा यहां की अद्वितीय आदि शिल्पिकारों की बदौलत एक छोटे शहर में परिवर्तित हो गया है। कालांतर में प्रशासनिक कसावट के दृष्टिकोण से, 2011 में यह जिला भी बन गया है। अब संभवत वोट के राजनीतिक गणित के चलते अचानक शासन-प्रशासन के द्वारा इसे एक नया नाम “कोंडानार” दिया जा रहा है। बाकायदा हमारे इसके भव्य बोर्ड लगाए गए हैं। सोशल मीडिया पर इसका एक एप भी संचालित है।शासकीय योजनाओं में भी यह नाम सोद्देश्य प्रचलित किया जा रहा है। इस बिन मांगे दिए गए इस नए नाम से तो बेचारे अधिकांश कोंडागांव निवासी भी अनभिज्ञ हैं। यह अलग बात है कि एक बार फिर शेक्सपियर की तर्ज पर, जिले का नाम कोंडानार हो अथवा कोंडागांव इससे उसके निवासियों को भला क्या फर्क पड़ता है? उन्हें तो मुझे फर्क पड़ता है स्वास्थ्य, शिक्षा,पानी, बिजली, सड़क, यातायात की सुविधाओं से दिन और रात की अपनी सुरक्षा से।
किसी भी तरह के ऐतिहासिक स्थल, वस्तु का लंबे समय से बहु प्रचलित,स्थापित नाम बदलने से पहले नाम बदलने के जनता के हर क्षेत्रों का समुचित प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों से बनी एक कमेटी होनी चाहिए तथा नाम बदलने के पीछे समुचित कारणों का पूरी पारदर्शिता के साथ खुलासा होना चाहिए एवं साथ ही जो प्रचलित पुराने नाम है, उनको लेकर जन भावनाओं का भी सम्मान होना चाहिए। इसके लिए अंतिम रूप से जन सुनवाई होना भी जरूरी है। वैसे राज्यों या शहरों का नाम बदलने के लिए तो एक निर्धारित विधिक प्रक्रिया है जिसके तहत प्रदेश की अनुशंसा तथा केंद्र की स्वीकृति आदि भी लेनी होती है।
दरअसल यह सब गोरखधंधा जनता का ध्यान रोजगार महंगाई शिक्षा स्वास्थ्य सड़क आदि के बुनियादी मुद्दों से हटाने के लिए किया जाता है। अगर नाम बदलने से ही विकास होता है, और सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं, तो लखनऊ का नाम मैलबर्न अथवा रायपुर का नाम वियना या एडीलेड क्यों नहीं रख दिया जाता। क्या लखनऊ या रायपुर का नाम बदल देने से वहां का प्रदूषण ,गंदगी,मच्छर, यातायात तथा अन्य सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी ?
नामों में ज्यादातर बदलाव राजनीतिक कारणों से किए जाते हैं। लेकिन इसके लिए कभी ऐतिहासिक भूलों को दुरुस्त करने का कुतर्क दिया जाता है तो कभी औपनिवेशिक गुलामी से बाहर निकलने का तर्क दिया जाता है। नाम बदलने से सरकारों को फायदा ये होता है कि उन्हें कम से कम खर्च में कम से कम समय में अधिकाधिक सुर्खियां बटोरने को मिल जाती हैं। नए नाम देकर, तथा इस नए नाम के साथ हमेशा-हमेशा के लिए जन्मदाता की हैसियत से संलग्न होकर अमरत्व प्राप्ति की जिजीविषा भी इसके पीछे छुपी होती है। नाम बदलने की खेल के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण , इसके द्वारा दूसरे गंभीर विषयों से जनता का ध्यान भटकाना भी होता है।
हम राजनीतिक पार्टियों को देश तथा समाज की परिस्थितियों को बेहतर बनाने के लिए चुनते हैं। और यह सब कुछ सरकार जनता यानी कि हमारे आपके पैसे से ही करती है। राजनीतिक पार्टियों को चुने जाने के बाद पूरी पारदर्शिता के साथ अपने घोषणापत्र में किए गए सभी वायदों पर अमल करना चाहिए न कि, जनता को बेवकूफ बनाने के लिए नाम बदलने की बाजीगरी का गोरखधंधा।
विशेष परिस्थितियों को छोड़कर इस नाम बदलने की क्षूद्र राजनीतिक प्रवृत्ति पर विराम लगना ही चाहिए।
डॉ राजाराम त्रिपाठी-स्वतंत्र स्तंभकार(ये लेखक के अपने विचार हैं)