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पचास हजार करोड़ का डिमांड केंद्र सरकार के सामने भगवंत मान ने क्यों रख दिया?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
पचास हजार करोड़ का डिमांड केंद्र सरकार के सामने भगवंत मान जी ने रख दिया और एक झटके में फ्रीवीज के सारे मुद्दे गायब। यह शानदार राजनीति है। विमर्श उलझ गया, मांग जायज है या नाजायज बताने को लेकर। सत्ता में आते ही अब कोई प्रश्न कैसे पूछे कि जो फ्री वादा किया गया था वह कब पूरा होगा?

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जबकि खुलकर केजरीवाल कहते रहते हैं सरकार में पैसे बहुत हैं। काम करने की नियत होनी चाहिए। पंजाब चुनाव को लेकर भी इनलोगों ने कर्ज और काम दोनों का गुणा गणित बताया था। कहा था कि सारा कैलकुलेशन कर लिया गया है। सत्ता में आते ही अब वायदे पूरे करने का वक्त था। लोग पूछते कि हजार रुपया प्रतिमाह कब से दिए जाएंगे? लेकिन भगवंत मान ने बस एक लाइन में पूरा आज का विमर्श ही पलट कर रख दिया।

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दूसरा उपाय भी क्या था? अब दूसरे राज्यों को कब्जाने की बारी है। गुजरात जैसे राज्यों में चुनाव है। वायदे नहीं पूरा करेंगे तो क्या लेकर आम आदमी पार्टी दूसरे राज्यों में उतरेगी। नया शिगूफा छोड़ दिया गया। राज्य तो पौने तीन लाख के कर्ज में डूबा हुआ है। जिन्होंने वोट दिया अब उन्हें अपनी संवेदनाएं दान करनी चाहिए। सत्ता में खालिस्तान वालों ने भी पूंजी लगाए हैं, आखिर उनके भी कुछ लस्ट होंगे।

केंद्र में जब भाजपा सत्ता में आई थी, यही हाल देश का था। सोचिए मोदी ने बिना किसी के सामने हाथ फैलाए कैसे देश को संभाला होगा? कर्ज भी चुकाया। देश को रक्षा के क्षेत्र में मजबूत भी बनाया। विश्व में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले सूची में लाकर ऊंचा खड़ा कर दिया। विदेश नीति ऐसी मजबूत बनाई के दिन भर के लिए रशिया अपना युद्ध रोक दे। परमाणु बम की धमकी देने वाला पड़ोसी मोदी की प्रशंसा में लगातार तीन दिनों तक बोल पड़े। देश की जनता का विश्वास भी जीता। एक तरफ मुफ्त में राशन भी दिया, तो दूसरी तरफ वैश्विक महामारी में भी देश में स्वास्थ्य का प्रबंधन विश्व में सबसे बेहतर रखा।

आखिर यह सब चमत्कार थोड़ी है? पुरुषार्थ से संभव होता है ये सब। जिसने अपने जीवन को तपस्या बना लिया हो, वही एक डूबते देश को विश्व पटल पर लाकर खड़ा कर सकता है। शायद इसी कारण से भारत का प्रधानमंत्री ग्लोबल लीडर के लिस्ट में प्रथम है। राजधर्म वास्तव में पुरुषार्थ से ही निभाया जा सकता है। पाखंड से नहीं।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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