अहमदाबाद ब्लास्ट केस में 49 शांति दूतों को फांसी अथवा उम्र कैद की सजा का विश्लेषण
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
2002 के मोदी सरकार के गोधरा क्रैकडाउन के खिलाफ देशभर के शांति दूतों ने 2008 में अहमदाबाद में बम ब्लास्ट किया। 56 लोगों की ऑन रिकॉर्ड मृत्यु और सैकड़ों घायल। कायदे से देशभर में विमर्श का मुद्दा क्या होना चाहिए था? आज की दरबारी मीडिया सुल्ली डील एप के पीछे की मानसिकता भी पता लगा लेती है और धर्म के आधार पर रिपोर्टिंग कर सभी हिंदुओं को एकसाथ कटघरे में खड़ा कर देती है।
लेकिन आज 49 शांति दूतों को फांसी अथवा उम्र कैद की सजा मुकर्रर हुई है। असहिष्णुता का रोना रोने वालों ने क्या कभी इन 49 शांतिदूतों के पीछे की मानसिकता पर रिपोर्ट दिखाने की हिम्मत जुटाई? गुजरात के किसी भी मामले को लेकर नरेंद्र मोदी को लगातार घेरा जाता रहा है तो क्या कभी 2008 में हुए बम ब्लास्ट के लिए एक भी सवाल मोदी जी से पूछा गया?
2002 के गोधरा क्रैकडाउन को गोधरा दंगा के रूप में नैरेट किया गया। सारी जांच एजेंसियां कांग्रेस के होते हुए भी नरेंद्र मोदी न्यायालय दर न्यायालय बरी होते चले गए। मामला कहीं नहीं टिका। जबकि आह्मदाबाद मामले का परिणाम आज सबके सामने है।
अकेली प्रज्ञा ठाकुर को भी आखिरकार पूरा सैफरन टेरर नैरेटिव बिग्रेड मिल कर भी कुछ नहीं बिगाड़ पाया। लेकिन दरबार त्याग चुकी मीडिया को गोदी मीडिया कहने वाले नैरिटिव बिल्डर गिरोह आज तक प्रज्ञा ठाकुर को आतंकी बताने से नहीं चूकते। क्या ऐसे डिजाइनर मीडियाकारों में इतनी हिम्मत है कि इन शांति दूतों की मानसिकता पर महज एक खोजी प्राइम टाइम भी कर पाए?
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)