हिजाब की किताब फाड़ने के लिए मुस्लिम समाज को फिर एक शाहबानो क्यों चाहिए ?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
यह हिजाब की किताब फाड़ने के लिए मुस्लिम समाज को फिर एक शाहबानो चाहिए। जो पूरी ताक़त से इस हिजाब की किताब को फाड़ दे। मुस्लिम औरतों की तरक़्क़ी के लिए यह बहुत ज़रुरी है। देश की तरक़्क़ी के लिए बहुत ज़रुरी है। याद रखिए कि यह शाहबानो ही थी जिस ने कांग्रेस की जड़ों में चाणक्य की तरह ऐसा मट्ठा डाला कि तब 1986 में 400 सांसदों वाली कांग्रेस अब आहिस्ता-आहिस्ता घट कर 44 पर आ गई है। धूमिल ने लिखा है :
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो
जिस के मुंह में लगाम है
तो जिसे हिजाब की किताब में दबाया जा रहा है , वही इस हिजाब की किताब को फाड़ सकता है। मुस्लिम स्त्री ही फाड़ सकती है। कोई पुरुष नहीं। मुस्लिम पुरुष तो हिजाब की किताब की आड़ में उसे ग़ुलाम बनाने का अभ्यस्त है। उसे तो हिजाब की किताब बहुत शूट करती है।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)