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मुजफ़्फ़र नगर और कैराना दोनों को बहुत अच्छी तरह क्यों याद है ?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
बीते लोकसभा चुनाव में एक टी वी चैनल पर चल रही चर्चा में सपा के प्रवक्ता से मैं ने कहा कि चुनाव बाद बसपा और सपा में विवाद बहुत होंगे। दोनों एक दूसरे को मारेंगे। सपा प्रवक्ता मेरी यह बात सुनने को तैयार नहीं थे। पर चुनाव बाद वह फिर मुझे मिले और स्वीकार किया कि आप ठीक ही कह रहे थे। सब से ज़्यादा ऐतराज मायावती को था। मायावती का मानना था कि सपा का वोट उन्हें ट्रांसफर नहीं हुआ।

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बहरहाल अभी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए बिगुल ठीक से बजा भी नहीं है पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच जूतमपैजार शुरु हो गई है। घमासान मच गया है। वीडियो वार हो रहा है। मुसलमान कह रहे हैं कि हम जाटों को सबक़ सिखाएंगे। जाट कह रहे हैं कि हम मुसलामानों को सबक़ सिखाएंगे। यह सब खुल्लमखुल्ला हो रहा है। सुविधा के लिए समझ लीजिए कि यहां जाट मतलब राष्ट्रीय लोकदल और जयंत चौधरी हैं और मुसलमान समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव हैं।

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संयोग ही है कि जयंत चौधरी लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स एंड पोलिटिकल साइंस की पढ़ाई कर भारत लौटे हैं। जब कि अखिलेश यादव ने आस्ट्रेलिया से एम टेक हैं। कुल हासिल यह है कि दोनों ही की ज़मीनी राजनीति से कोई रिश्तेदारी नहीं है। उन की राजनीति सिर्फ़ जाट तक सीमित है और इन की राजनीति यादव और मुस्लिम तक है। फिर दोनों ही किसान आंदोलन की मलाई काटना चाहते हैं। किसान आंदोलन में राकेश टिकैत द्वारा लगाए गए नारे अल्ला हो अकबर की याद के साथ। इन की कुल ताक़त यही है। ग़ज़ब इस में यह भी है कि दोनों ही भाजपा की बिछाई बिसात पर खेल रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि कौन किस को सबक़ सिखाता है। और कि जनता किस को सबक़ सिखाती है। क्यों कि मुजफ़्फ़र नगर का दंगा न मुसलमान भूले हैं , न जाट भूले हैं। इसी तरह कैराना भी दोनों को याद है। बहुत अच्छी तरह याद है।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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